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This Article is From Sep 08, 2014

जम्मू-कश्मीर में बाढ़ की तबाही

Ravish Kumar
  • Blogs,
  • Updated:
    नवंबर 20, 2014 12:33 pm IST
    • Published On सितंबर 08, 2014 21:24 pm IST
    • Last Updated On नवंबर 20, 2014 12:33 pm IST

नमस्कार... मैं रवीश कुमार। पद्मा सचदेव हैं, जम्मू कश्मीर से आती हैं और मशहूर साहित्यकार हैं। उनसे मैंने पूछा कि आपने झेलम में ऐसी तबाही देखी है। उनका जवाब था बाढ़ तो देखी है, मगर बहुत बाढ़ नहीं देखी है। मुझे तो वह नदी सुस्त गाभिन गाय की तरह लेटी हुई लगती है। धीरे-धीरे बहती है। चिनाब की तरह हिलोरें नहीं उठती उसमें। झेलम नाम तो पाकिस्तान के पंजाब के एक कस्बे से पड़ा है, जिसके किनारे से झेलम गुज़रती है। भारतीय उपमहाद्वीप की पुरानी नदियों मे से एक है झेलम जिसे वितस्ता भी कहते हैं। कश्मीर में इसका अपभ्रंश नाम व्यथ भी है। जैसे आप व्यथा बोलते हैं।

इस नदी के आचार व्यवहार के बारे में हमने वरिष्ठ पत्रकार जवाहर लाल कौल से भी पूछा। उन्होंने भी अपनी यादों को टटोल कर कहा कि झेलम तो बहुत शांत नदी है। इसमें बाढ़ तो आती थी मगर ये हमारे आंगन में ऐसे घुसती थी, जैसे अनुमति लेकर आई हो। कौल साहब ने बताया कि आज़ादी के बाद की यह बड़ी तबाही है। 90 के दशक में श्रीनगर में बाढ़ आई थी, मगर उसका स्केल बहुत छोटा था। झेलम या वितस्ता की सहायक नदी दूध गंगा जो श्रीनगर के पास झेलम में मिलती है, वह उग्र हो गई और बांध तोड़ दिया। कौल साहब ने यह भी कहा कि श्रीनगर की जो डल लेक है, उसका स्तर झेलम से ऊपर था। डल का पानी झेलम में जाता था, लेकिन अब झेलम का पानी डल में आने लगा है।

जिन लोगों ने जम्मू और श्रीनगर को देखा है वे बता रहे हैं कि पचासों पुलों का बह जाना बता रहा है कि लोग भूल गए थे कि इस राज्य में नदियां भी बहती हैं। सैंकड़ों किलोमीटर की सड़कें बह गई हैं। हमारी इंजीनियरिंग से लेकर प्रबंधन तक की पोल खुल गई है।

आखिर शांत सी बहने वाली झेलम इतनी उग्र क्यों हो गई? वह कोसी की तरह क्यों दहशत पैदा कर रही है? श्रीनगर के किसी भी मोहल्ले का नाम लीजिए डूबा हुआ है। जम्मू के आस-पास के कई जिले बाढ़ की चपेट में हैं। पुंछ, रजौरी, उधमपुर में भी जानमाल का नुकसान हुआ है। दस लाख लोग प्रभावित बताए जा रहे हैं।

जम्मू शहर का पठानकोठ से संपर्क टूट गया है। प्रशासन ने तवी नदी पर बने तीन पुलों को बंद कर दिया। चौथे पुल में भी नुकसान होने की खबर आई है।

तबाही इतनी व्यापक है कि बिना सेना के कुछ नहीं हो सकता था। लाजवाब काम किया है सेना ने। सेना और एनडीआरएफ ने मिलकर विषम परिस्थितियों में राहत एवं बचाव का काम किया है। क़रीब तीस हज़ार लोगों को सुरक्षित जगहों पर पहुंचाया गया है। यह ऑपरेशन पिछले साल के केदारनाथ हादसे की तरह तो नहीं है, मगर काफी बड़े स्तर पर चल रहा है।

एक वक्त तो श्रीनगर के राम मुंशी बाग में जलस्तर पचीस फीट ऊपर चला गया। यह ऐतिहासिक है। यहां 17 फीट के बाद बाढ़ मान ली जाती है। अगर राम मुंशी बाग में जल स्तर 26 फीट गया तो डल में पानी भर जाएगा, जो पहले से ही भरा हुआ है।

राम मुंशी बाग के अलावा संगम आशम में जल स्तर मापा जाता है। तीनों जगहों पर स्केल ही डूब गया है। संगम में भी जल स्तर खतरे के निशाने से दसियों फीट ऊपर बह रहा है।

कई जगहों से पानी के कम होने की खबर आ रही है, लेकिन अब यहां पानी बढ़ा तो डल और झेलम का पानी मिलकर श्रीनगर को गहरा नुकसान पहुंचा देंगे। यहां की सड़कों पर गाद जमा हो गई है। हाईकोर्ट, सचिवालय, लाल चौक सब डूब चुके हैं। अस्पताल भी डूब गए हैं और इन तक पहुंचने का रास्ता भी।

राहत की बात इतनी है कि श्रीनगर में पानी के कम होने की खबरें आने लगी हैं, फिर भी कुछ इलाकों में काफी पानी जमा है। आज बारिश भी नहीं हुई है, फिर भी खतरा टला नहीं हैं।

बड़ी मात्रा में जम्मू-कश्मीर को राहत सामग्री की ज़रूरत है। पटना, गांधीनगर, ग़ाज़ियाबाद और दिल्ली से नावें पहुंचाई गई हैं। कानपुर से तंबू। वायुसेना के 23 विमान और 29 हेलिकॉप्टर अनवरत बचाव कार्य में लगे हैं।

1992, 95 और 96 में भी बाढ़ आई थी, लेकिन इन वर्षों की तुलना में इस बार दस−दस फीट पानी ज्यादा बह रहा है तो आप कल्पना कर सकते हैं कि झेलम और उसकी सहायक नदियां कितने गुस्से में हैं।

मौसम विभाग ने कहा है कि आज से जम्मू कश्मीर में हल्की बारिश तो होगी, मगर मूसलाधार नहीं। हो सकता है इससे कुछ राहत पहुंचे मगर जो आफत आ चुकी है उससे निपटना आसान नहीं है।

पूरे राज्य में सड़कें बह गई हैं। कई ज़िलों का आपस में और श्रीनगर का कई ज़िलों से संपर्क टूट गया है। छह दिनों तक होने वाली मूसलाधार बारिश से राज्य में कितना नुकसान हुआ है इसका तुरंत अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता। फोन, बिजली और पीने के पानी की सप्लाई सब ठप्प हैं। सेना और एनडीआरएफ सेटेलाइट फोन से काम चला रहे हैं।

उधमपुर के एक गांव में भूस्खलन के कारण बीस से ज्यादा घर बह गए। 30 से ज़्यादा ग्रामीण मलबे में ही दब गए। हमारे न्यूज़ रूम में लगातार लोग फोन कर सूचना दे रहे हैं कि उनके अपने श्रीनगर या जम्मू में कहां कहां फंसे हैं। बचाव दस्ता अभी भी सारे लोगों तक नहीं पहुंच सका। लोगों के पास ज़रूरी चीज़ें समाप्त हो चुकी हैं।

इस वक्त जब सारा राज्य बाढ़ में फंसा हुआ है, और केंद्र राज्य मिलकर लोगों तक पहुंचने का प्रयास कर रहे हैं हम बस यही जानना चाहेंगे कि वहां हुआ क्या? क्या कोई विशेष बदलाव आया कि झेलम ने श्रीनगर को डूबा दिया। साठ साल में ऐसी बाढ़ की नौबत क्यों आई? राहत और बचाव के लिए अभी क्या कुछ किया जा सकता है?

प्रधानमंत्री ने इस राष्ट्रीय आपदा घोषित किया है। ज़ाहिर है तबाही इतनी हुई है कि इससे उबरने में जम्मू कश्मीर को कई महीने लग जाएंगे।

(प्राइम टाइम इंट्रो)

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