आरोप के जवाब में सुषमा के आरोप, क्या सुषमा की सफ़ाई काफ़ी है?

आरोप के जवाब में सुषमा के आरोप, क्या सुषमा की सफ़ाई काफ़ी है?

लोकसभा में सुषमा स्‍वराज और राहुल गांधी

नई दिल्‍ली:

स्पीकर सुमित्रा महाजन जी, एक न्यूज़ एंकर होने के नाते आज आपकी पीड़ा को भी समझ रहा था और आपकी चुनौती को भी। मुल्क की निगाहें आपकी तरफ थीं कि कहीं आपसे तराजू का पलड़ा उनकी तरफ तो नहीं झुक रहा है जो कभी आपके अपने थे या उनकी तरफ तो नहीं झुक रहा है जो आपको शक की निगाह से देख रहे होंगे। घमासान बहस में जब आरोप तीर की तरह इधर से उधर चल रहे थे आपने अपना काम बखूबी संभाला। हम अंदाज़ा कर सकते हैं कि आपके लिए भी आज का दिन यादगार रहा होगा। मेरी तरफ से आपको बधाई। इंगलिश में बिग थैक्यू मैम।

प्रधानमंत्री मोदी सदन में नहीं थे लेकिन लोकसभा में न होना उन्हें भी खला होगा। उनके जैसे सक्रिय राजनेता ने आज की बहस से खुद को कैसे दूर रखा होगा यह सोच कर तनाव और रोमांच दोनों होता है। अफसोस उन्हें भी होना चाहिए जिन्होंने लोकसभा की बहस नहीं देखी।

इस मसले का तनाव और थकान सुषमा स्वराज के चेहरे पर दिख रहा था। खुद को न समझे जाने की बेबसी, दूसरों को समझा देने की बेचैनी उन्हें आज युद्ध जैसे मोर्चे के बीच ले गई। एक ऐसे वक्त में जब आपको हमला करते वक्त उसके खिलाफ भी निर्मम होना पड़ता है जिसके साथ एक किस्म का राजनीतिक शिष्टाचार बन जाता है। बुधवार की बहस में ये तमाम रिश्ते धाराशायी होने लगे। एक दूसरे के परिवारों पर हमले होने लगे।

संसद न चलने से अपने ख़िलाफ़ बनते जन दबाव के कारण कांग्रेस को भी बहस के लिए राज़ी होना पड़ा। जिस इस्तीफे की शर्त पर बहस नहीं हो रही थी वो बहस भी हुई और इस्तीफा भी नहीं हुआ। संसद दांव पर लगाकर सरकार ने विपक्ष को ही हताश कर दिया। आम तौर पर विपक्ष सरकार को हताश कर दिया करता है। सुबह बहस के लिए कांग्रेस से हाथ जोड़ कर अपील करने वाले संसदीय कार्यमंत्री वेंकैया नायडू बहस पूरी होते ही कांग्रेस को घेरने लगे। लतीफा सुनाकर लजाया तो नाम ले लेकर गिनाया।

कर्नाटक के गुलबर्ग से दूसरी बार सांसद बने, दस बार लगातार विधानसभा चुनाव जीते 73 साल के मपन्ना मल्लिकार्जुन खड़गे का भी काफी कुछ दांव पर लगा था। साधारण से दलित परिवार में जन्मे खड़गे पर ज़िम्मेदारी थी विदिशा की सांसद सुषमा स्वराज जैसी अनुभवी और तेज़ तर्रार नेता को घेरने की। अपनी छिटकती संभलती हिन्दी के ज़रिये खड़गे ने सात आठ सवाल पूछे।

- पहला सवाल पूछा कि ब्रिटेन के साथ खतो-किताबत को जारी क्यों नहीं कर रही सरकार।
- दूसरा सवाल कि भारतीय उच्चायोग से संपर्क की सलाह क्यों नहीं दी ललित मोदी को।
- तीसरा सवाल ललित मोदी को पहले भारत आने पर ज़ोर क्यों नहीं दिया।
- चौथा सवाल कि हाई कोर्ट में पासपोर्ट का केस हारने पर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील क्यों नहीं की। अपील न करने का फैसला किसका था।
- पांचवा सवाल कि ललित मोदी को लंबे समय का वीज़ा या रेज़ीडेंसी परमिट कैसे दिया गया।
- छठा सवाल नया पासपोर्ट जारी करने के मामले में क्या कदम उठाए।
- और सातवां कि ललित मोदी कहते हैं कि वे सुरक्षा कारणों से भारत नहीं जा रहे हैं तो क्या भारत सरकार उनकी सुरक्षा नहीं कर सकती है।

खड़गे ने कहा कि सुषमा स्वराज ने खुद गलती मानी है इसलिए हम उनका इस्तीफा मांगते हैं। क्यों कहा कि अगर ललित मोदी को दस्तावेज़ मिलते हैं तो भारत ब्रिटेन के संबंधों पर असर नहीं पड़ेगा।

थोड़ा हंगामा तब हुआ जब खड़गे इस मामले में वसुंधरा राजे को भी घसीटने लगे कि ललित मोदी को बसने के लिए भारत सरकार से छिपा कर ज़रूरी दस्तावेज़ क्यों दिये। संसद में मुख्यमंत्री का नाम नहीं लिया जाता है, राज्य के मुख्यमंत्री के बारे में चर्चा नहीं हो सकती है इसलिए उन्हें मना किया गया। मगर किसी न किसी संदर्भ में वसुंधरा का संदर्भ आता ही रहा। सदन की सदस्य होती तो जवाब मिलता कि ऐसे किसी गुप्त दस्तावेज़ पर दस्तखत किया है या नहीं। जवाब देने की बारी सुषमा स्वराज की थी। उनका भाषण भी कम धुआंधार नहीं था।

सुषमा स्वराज ने कहा कि मेरी कोई गलती नहीं है। ऐसी महिला की मदद करना जो भारत की नागरिक है, जो 17 वर्षों से कैंसर से ग्रस्त है, जो किसी अपराध में लिप्त नहीं है, उसकी मदद करना गुनाह है, मैं ये गुनाह कबूल करती हूं। मेरे सामने विचाराधीन यही था कि "अगर ब्रिटिश सरकार उसको यात्रा दस्तावेज़ दे देती है, देने का फैसला कर लेती है तो क्या हम दोनों देशों के रिश्ते खराब होंगे? उस पर मैंने मौखिक संदेश भिजवाया कि ब्रिटिश सरकार अपने नियमों के अनुसार ललित मोदी की अर्ज़ी पर विचार कर सकती है। अगर ब्रिटिश सरकार यात्रा दस्तावेज़ देने का फैसला करती है तो हमारे संबंध खराब नहीं होंगे। इसलिए ये मुद्दा ही नहीं है।

सवाल उठ रहे थे कि क्या विदेश मंत्री ने इस मौखिक आदेश की जानकारी मंत्रालय में किसी को दी, इसका जवाब नहीं मिला। सवाल उठा कि ललित मोदी की मदद की गई तो जवाब में कहा गया कि उनकी पत्नी एक भारतीय नागरिक हैं उनकी मदद हुई और ये गुनाह है तो कबूल है। इसके बाद सुषमा स्वराज का भाषण दूसरा मोड़ लेता है।

पहले अपने पति और बेटी के बारे में सफाई देती हैं कि वे कहीं से भी ललित मोदी से जुड़े मामले में शामिल नहीं हैं। ये हितों का टकराव नहीं है। हितों का टकराव तो वो है जब पी चिदंबरम वित्त मंत्री होते हैं और उनकी पत्नी नलिनि चिदंबरम को उनके अपने विभाग इनकम टैक्‍स की तरफ से वकील नियुक्त किया जाता है। जब राज्य सभा में मामला उठा तो चिदंबरम साहब ने जवाब दिया कि उनकी जानकारी में नहीं हुआ। चिदंबरम ने खुद से ही खुद को बरी कर लिया।

इसके बाद सुषमा स्वराज ने राहुल गांधी को निशाने पर लिया कि राहुल बोलते हैं कि एक अपराधी की मदद की। मैं आपसे पूछती हूं - बताइए सुषमा स्वराज ने ललित मोदी का क्या साइन करके दे दिया। राहुल गांधी कहते हैं कि सुषमा जी ने जो काम किया है वो छुप छुप के किया है। अगर छुप छुप के किया तो क्वात्रोकी को भगाने का काम तुमने किया। अगर छुप छुप के कोई काम किया तो राजीव गांधी की सरकार में एंडरसन को भगाने का काम छुप छुप के किया। और मैं अपनी ओर से नहीं कह रही, ये इनके अपने मुख्यमंत्री की किताब है। अर्जुन सिंह जी की ऑटोबायोग्राफी। अर्जुन सिंह केवल मुख्यमंत्री नहीं थे मध्य प्रदेश के, उसी पद पर थे जिस पर आज राहुल गांधी हैं। कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष थे। उस समय मां-बेटा अध्यक्ष उपाध्यक्ष नहीं होते थे। कोई और व्यक्ति होता था।

ऐसा इज़ इक्वल टू किया कि कांग्रेस सन्न रह गई। हमारी राजनीति की यही खूबी है। एक की गलती को दूसरे की गलती से पर्दा मिल जाता है। सुषमा के इस हमले ने राहुल गांधी को भी बोलने के लिए मजबूर कर दिया।

राहुल गांधी ने कहा कि कल सुषमा जी ने मेरा हाथ पकड़ा और कहा कि बेटा तुम मेरे से गुस्सा क्यों हो। मैंने तुम्हारा क्या किया है। मैंने सुषमा जी से कहा कि मैंने आपसे गुस्सा नहीं किया है। आपका आदर करता हूं। सुषमा जी मैं सत्य बोल रहा हूं तो आपने आंखें नीचे कर लीं। आपने आंखें नीचे क्यों कर लीं। प्रधानमंत्री में साहस नहीं है कि वे सदन में आकर सच देखें, सुने और कहें। मानवता का काम सब करते हैं मगर सुषमा जी दुनिया में अकेली हैं जो ये काम छुप कर करती हैं।

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सुषमा जी ने गांधी परिवार पर हमला न बोला होता तो शायद राहुल गांधी हाथ पकड़ कर बेटा कहने वाली बात न बताते। बाद में अरुण जेटली ने शांत सदन में विस्तार से ललित मोदी के मामले का कानूनी पहलू बताया और इस्तीफे की मांग को खारिज किया। गलाकाट भाषणों के बीच भावनाएं ऐसे चढ़ उतर रही थी कि कोई मुद्दा ही न हो। एक दूसरे के खानदानों का हिसाब हुआ और अपनी खूबियों का बखान। ऐसी घमासान राजनीति से तो किसी का दिल घबरा जाए मगर यकीनन हमारे राजनेताओं को आज़ बहुत मज़ा आया होगा।