भारतीय उपमहाद्वीप में पीपल का पेड़, पहाड़ी इलाकों को छोड़कर लगभग सभी जगह पाया जाता है. शायद इसके इतना आम होने के कारण इसकी बेहद दिलचस्प कहानियां अक्सर लोग जान नहीं पाते. इसका धार्मिक सांस्कृतिक महत्व भारत में किसी भी और पेड़ से ज्यादा है. इसीलिए इसके वैज्ञानिक नाम में भी इसका ज़िक्र है- Ficus Religiosa.
राजस्थान के जिन अपेक्षाकृत सूखे इलाकों में मैं बड़ा हुआ, वहां पर पीपल की गिनती सबसे बड़े पेड़ों में होती है. हल्की सी हवा चलने पर सर-सर कर हिलती इसकी पत्तियां और बचपन में माँ के साथ शीतला सप्तमी के दिन सुबह जल्दी जाकर पीपली (जैसे की इसे राजस्थान में कहा जाता है) की पूजा करना- इससे इस वृक्ष का धार्मिक महत्व कुछ समझ आ गया था. बड़ा होने पर ही ये समझ आया कि ये पेड़ इतना खास क्यों है.
हिंदू और बौद्ध धर्म में पीपल का महत्व
हिन्दू धर्म के साथ- साथ, पीपल बौद्ध धर्म के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है, जहाँ मान्यता ये है कि भगवान् बुद्ध ने इसी के नीचे बैठकर ज्ञान प्राप्त किया था. बोधगया का वह पीपल आज भी दुनिया भर के बुद्ध अनुयाइयों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. पीपल के उस पेड़ को बोधि वृक्ष भी कहा जाता है. प्रदीप कृशन (2006) अपनी किताब 'Trees of Delhi' में इसका ज़िक्र करते हुए लिखते हैं कि 288 ईसा पूर्व में बोधि वृक्ष की एक डाल सिंहला राजधानी अनुराधापुरा के एक मंदिर में रोपी गई. आगे चलकर यह डाल वृक्ष बनी और श्री महाबोधि के रूप में पूजी जाने लगी. सिंहला राजवंश में ये मान्यता बन गई कि ये राजवंश तभी तक चलेगा जब तक श्री महाबोधि जीवित रहेगा. इसीलिए पीपल के इस पेड़ की खास देखभाल की जाने लगी. करीब 1300 सालों बाद, 9वीं शताब्दी ईस्वी में अनुराधापुरा को छोड़कर नई राजधानी चुनी गई और कई शताब्दियों तक यह शहर जंगल में तब्दील हो गया और सिंहला राजवंश भी नहीं बचा. 20वीं शताब्दी में जब इस पूर्व राजधानी को फिर से खोजा गया और बौद्ध अनुयायी फिर से वहां जाने लगे, तो आश्चर्यजनक रूप से श्री महाबोधि पेड़ वहीं पर था. इस प्रकार पीपल का ये पेड़ दो हजार साल से भी ज्यादा पुराना जीवित पेड़ है. ये इस तरह की कहानियां हैं जो पीपल को खास बनाती हैं.
राजनयिक संबंध बढ़ाने में सहायक
पीपल और बौद्ध धर्म के साथ इसके संबंध को आधुनिक भारत ने अन्य दक्षिण पूर्वी बौद्ध देशों के साथ राजनयिक संबंध बेहतर करने के लिए भी उपयोग किया है. इतिहासकार डगलस ओबेर (2023) अपनी किताब 'डस्ट ऑन द थ्रोन: इन सर्च ऑफ बुद्धिज्म इन मॉडर्न इंडिया' में इसका जिक्र करते हैं. ओबेर लिखते हैं कि किस तरह राजेंद्र प्रसाद से लेकर प्रणब मुखर्जी तक बौद्ध देशों में अपनी औपचारिक यात्राओं पर तोहफे के रूप में बोधि वृक्ष (बोधगया से) के पौधे लेकर जाते, जो उन देशों की धार्मिक सांस्कृतिक पहचान के लिए और उन्हें उनके इतिहास से जोड़ने में एक खास कड़ी था.
पीपल पर पनपता प्रेम
पीपल की एक और खास बात इसके फल हैं. फल? दरअसल, पीपल की टहनियों पर मटर के दानों से कुछ ही बड़े दिखने वाले फल वास्तव में एक तरह का पाउच हैं, जिसके अंदर इसके फल और फूल होते हैं, जो आकार में बहुत ही छोटे होते हैं. एक पाउच में कई सारे होते हैं. फाइकस प्रजाति के सभी पेड़ों में (बरगद, गूलर, अंजीर आदि) फल और फूल इसी पाउच में होते हैं. इस पाउच में एक और रहस्य छुपा है, वो है इस पेड़ का एक छोटे से कीट के साथ एक बेहद महत्वपूर्ण रिश्ता. इसे अंग्रेजी में 'फिग वास्प' कहा जाता है. इस कीट की पूरी जिन्दगी पीपल से ही जुड़ी है, यानी पीपल से ही शुरू और इसी पर खत्म. ये बहुत ही सूक्ष्म कीट पीपल के परागन (Pollination) के लिए जिम्मेदार हैं. इस जटिल प्रक्रिया को फिर किसी दिन समझेंगे, पर अभी के लिए इतना काफी है कि मादा फिग वास्प पाउच (पीपल का 'फल') के अंदर जन्म लेती है और फिर दूसरे पीपल के पेड़ पर जाकर वहां के पाउच में अपने अंडे देकर वहीं मर जाती है. दरअसल ये कीट सिर्फ पीपल के लिए ही जीते हैं. प्रेम हो तो ऐसा!
डिसक्लेमर: लेखक आईआईटी दिल्ली में पढ़ाते हैं. इस लेख में व्यक्त किए गए विचार उनके निजी हैं, इससे एनडीटीवी का सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है.