आज चारों तरफ स्त्री पीड़ित पुरुषों की चर्चा आम है. पत्नी पीड़ित AI इंजीनियर अतुल सुभाष की इंटरनेट पर तैर रही कहानी गाहे-बगाहे सामने आ रही है. पत्नी पीड़ित पतियों के सुसाइड की खबरें भी सुर्खियां बटोर रही हैं. स्त्री विलेन बनाई जा रही है, और स्त्री चिंतक किंकर्तव्यविमूढ़ वाली स्थिति में हैं.
एक मां, बहन और पत्नी तक सीमित नहीं है स्त्री!
स्त्री घर की चौखट के भीतर मां, बहन और पत्नी बनकर परिवार ही नहीं, पूरे कुटुंब को संवारती है. घर की दहलीज से बाहर निकलती है, तो देश भी संभालती आई है. पुरुषों द्वारा पुरुषों के लिए गढ़े गए दायरे और दहलीज स्त्री को नहीं रोकते, वो खुद को सीमित करती है, यही स्त्री की महत्ता और पहचान है!
स्त्री घर भी संभालती है और देश भी संभाल सकती है!
स्त्री को दायरे में नहीं बांधा जा सकता, यह स्त्री ही है, जो परिवार और समाज को एक सूत्र में पिरोती है, उसे एक खांचे में ढालती है. 'एक स्त्री चाहे उजड़े परिवार बसा सकती है और एक बिखरे कुनबे को जोड़ सकती है' ये पंक्तियां स्त्री की सकारात्मकता को दर्शाती है. इसे तर्कों से परिभाषित नहीं किया जा सकता!
एक स्त्री को समझना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है!
हर कालखंड में पुरुषों के लिए एक स्त्री को समझ पाना मुश्किल रहा है. इतिहास गवाह है एक स्त्री पर अधिपत्य के लिए पुरुष राजा हो या रंक हमेशा युद्ध में रहा है. एक स्त्री के लिए राजा को रंक और रंक को राजा बनने की अनेकानेक कहानियां महज इत्तिफ़ाक नहीं है!
जर-जमीन पर भारी, पौरुष की केंद्र-बिंदु है स्त्री
इतिहास में झांकेंगे तो पाएंगे कि रार की तीन वजहों क्रमशः जर, जोरू और जमीन की लड़ाई में स्त्री ही पुरूषों के द्वंद और पौरुष का केंद्र रही है. फिर भी स्त्री खुद के लिए शून्य, पुरुष को शिखर पर बिठाती आई है. कभी दुर्गा, कभी अनसुईया बन जाती है! दिलचस्प सशक्त स्त्री के सशक्तिकरण की बात होती है!
स्त्री शक्ति स्वरूपा, फिर पुरुषों से कंधा क्यों मिलना?
इतिहास उठाइए, हर कालखंड में जब जरूरत पड़ी, एक स्त्री अन्याय के खिलाफ उठ खड़ी हुई है. शास्त्रार्थ में अदिति, गार्गी और अरुंधति ने पुरुषों को चित किया है. जरूरत पड़ी तो दुर्गा, कर्णा, पद्मा बन शस्त्र उठाया है, फिर स्त्री को पुरुषों से कंधा क्यों मिलाना है?
करुणा स्त्री का गहना, सुख-दुख में जानती है संवरना
हम ईश्वर को करूणानिधान कहते हैं, जो हर परिस्थिति में अपने भक्त का साथ नहीं छोड़ते हैं. ऐसे भी उदाहरण हैं जब करुणा में द्रवित ईश्वर ने आत्मघाती वरदान दिए हैं. करुणामई स्त्री हर दिन मां, बहन, पत्नी स्वरूप में हज़ारों बलिदान देती है, मिथ्या है कि स्त्री में जोर कम है, जो गर्भ में शिशु पाल सकती है, वो कमजोर कैसे?
हरेक अवतार में पुरूषों की ताकत रही है स्त्री
मां, बहन और बेटी बनकर निरीह पुरुष को बलवान बनाने वाली स्त्री ही तो है. बलवान पुरुष को पुरुषत्व का मर्म समझाने वाली स्त्री ही तो है, पुरुषत्व पर दंभ करने वाले पुरूषों को अध्यात्म से जोड़ने वाली स्त्री ही तो है और पत्नी स्वरूप में पुरुष को संतुलन सिखाने वाली स्त्री ही तो है! एक मां पुरुष को बलिष्ठ, एक बहन पुरुष को मजबूत, एक बेटी पुरुष को गंभीर और एक पत्नी पुरुष को सामाजिक बनाती है.
शोषण में पोषण देती है, स्त्री को वक्त भी प्रलोभन देती है
स्त्री स्वरूप में एक स्त्री गर्भ के भीतर भी जीवन पाने के लिए संघर्ष करती है. किसी तरह धरती पर जन्म मिल गया तो ताउम्र दुर्भावना सहती है. खुशी-खुशी अपने ही घर में लैंगिक भेदभाव निगल जाती है और बिना सवाल किए बेटी-बाप को, बहन-भाई को और पत्नी-पति को अपने हक और हकूक न्योछावर करती है.
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.