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This Article is From Aug 09, 2022

पीएम बनने की महत्वाकांक्षा की वजह से नीतीश कुमार एक बार फिर सत्ता पर काबिज हुए

Swati Chaturvedi
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 09, 2022 17:34 pm IST
    • Published On अगस्त 09, 2022 17:01 pm IST
    • Last Updated On अगस्त 09, 2022 17:34 pm IST

बिहार राजनीतिक तौर पर काफी संवेदनशील राज्य है. यहां की जनता उसी को अपना नेता मानती है या पसंद करती है जिसमें “आधा मसख़रा और आधा दबंगई” का पुट हो. लेकिन 71 वर्षीय नीतीश कुमार (Nitish Kumar) को यह विश्वास है कि उन्होंने खुद को एक गंभीर राजनेता के रूप में स्थापित कर लिया है बावजूद इस हकीकत के कि वो लगातार ही अपना सियासी साथी बदलते रहे हैं. आज वह बीजेपी (BJP) की जगह एक पुरानी लौ तेजस्वी यादव के साथ गठबंधन करने को तैयार है. और यह सब काफी गंभीरता के साथ किया जा रहा है.

पांच साल में दूसरी बार भाजपा से रिश्ता तोड़ते हुए नीतीश कुमार ने यह दिखा दिया है कि वह अपनी पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) और बिहार पर काफी सख्ती से राज करते हैं. साथ ही यह भी दिखा दिया कि फिलहाल उनके मुकाबले में सत्ता का कोई और दावेदार नहीं है.

2015 से 2017 तक वह कांग्रेस और तेजस्वी यादव के साथ मिलकर शासन चला रहे थे. तेजस्वी यादव राजद के प्रमुख थे और उस गठबंधन में कांग्रेस भी शामिल थी. लेकिन नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाने के बाद भाजपा की खुली बाहों में चले गए.  

नीतीश कुमार दशकों से भाजपा की राष्ट्रीय टीम में थे. लेकिन पिछले एक दशक में जब से वो मुख्यमंत्री के पद पर बने हुए हैं तब से वह अपने सहयोगियों के बारे में अस्पष्ट रहे हैं. तेजस्वी यादव के साथ तमाम कड़वाहट के बावजूद, जो उन्हें "पलटू चाचा" के नाम से बुलाते थे, नीतीश कुमार ने उनके साथ संबंध बनाए इस उम्मीद में कि 22 वर्षों में शायद वो आठवीं बार बतौर मुख्यमंत्री शपथ लेंगे. औऱ अगर वो कामयाब होते हैं तो तो ये एक बहुत बड़ी उपलब्धि होगी क्योंकि उनके पास भाजपा (74) या तेजस्वी यादव (80) की तुलना में कम (43) सीटें हैं.

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तेजस्वी यादव इसकी अनुमति दे सकते हैं क्योंकि इससे उन्हें सत्ता में लौटने का तो अवसर मिलेगा ही साथ ही बिहार की राजनीति में एक शानदार जातिगत–कम्बिनेशन का भी फायदा मिलेगा. बिहार में 14.4 प्रतिशत यादव वोट औऱ 17 प्रतिशत मुस्लिम वोटों पर राजद का कब्जा है. नीतीश कुमार के साथ अतिपिछड़ा (सबसे पिछड़े) मतदाता खड़ा है. नीतीश कुमार खुद कुर्मी हैं लेकिन बिहार में चार प्रतिशत कुर्मी वोटर उतना मायने नहीं रखता है.

तेजस्वी यादव ने हाल ही में जून महीने में असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम के पांच में से चार विधायकों को अपने पाले में मिला लिया था. ओवैसी पर काफी समय से उनके विरोधी भाजपा की "बी-टीम" बने रहने का आरोप लगाती रही है. और यह भी एक सच्चाई है कि बिहार में सभी क्षेत्रीय दल यह नहीं चाहते कि बिहार में ओवैसी की पार्टी अपना पैर पसारे.

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नीतीश कुमार पिछले कुछ समय से बीजेपी पर अपनी नाराजगी जाहिर कर रहे थे. उन्होंने नई अग्निपथ सेना भर्ती योजना पर सार्वजनिक रूप से कटाक्ष किया था. नरेंद्र मोदी और अमित शाह फिर भी शांत रहे. इसके बाद नीतीश कुमार ने इस सप्ताह नीति आयोग की बैठक में आने से इनकार कर दिया और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के लिए पीएम के रात्रिभोज का भी बहिष्कार किया. पूर्व करीबी आरसीपी सिंह के साथ नीतीश कुमार का सार्वजनिक धींगामुश्ती, जिसे राज्यसभा सीट से वंचित कर दिया गया था और केंद्रीय मंत्रिमंडल छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था, वास्तव में पीएम मोदी और अमित शाह के साथ “शैडो बॉक्सिंग” थी.

जून में उद्धव ठाकरे की सरकार गिरने के बाद सहयोगी दलों की कीमत पर भाजपा के आधिपत्य के भय से नीतीश कुमार ने सोनिया गांधी को फोन किया. सूत्रों का कहना है कि सोनिया गांधी नीतीश कुमार की चिंताओं के प्रति काफी संवेदनशील थी और यादव परिवार के साथ सहयोग के लिए भी तैयार हो गईं. सोनिया गांधी ने लालू यादव से भी बात की. लालू यादव ने भी अपने बेटे तेजस्वी को बीती बातों को भूल जाने की सलाह दी.

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एक बार जब तेजस्वी तैयार हुए तो नई “टीम नीतीश” को हरी झंडी मिल गई. पार्टियों के पास सत्ता का वही बंटवारा होगा जो पिछली बार उन्होंने एक साथ मिलकर काम किया था. कुमार मुख्यमंत्री बने रहेंगे.

हिन्दीपट्टी के नेता होने के नाते नीतीश कुमार ने हमेशा ये कहा है कि वो अपनी अंतरात्मा की आवाज पर ही कदम उठाते हैं. लेकिन उनके आलोचक अब उन्हें “कुर्सी कुमार” के नाम से बुला कर ही उनका उपहास करते हैं. फिर भी इस हकीकत से इंकार नहीं किया जा सकता है कि नीतीश कुमार अभी भी प्रधानमंत्री बनने की अपनी कोमल, पोषित, दशकों पुरानी इच्छा पर कायम हैं. विपक्ष में उनकी वापसी से उन्हें यह एहसास हो रहा है कि अब उनको मौका मिलेगा क्योंकि ममता बनर्जी की छवि पर पिछले दिनों ग्रहण लग गया जब उनके सहयोगी मंत्री पार्थ चटर्जी के यहां विशाल नकदी की बरामदगी हुई.

मैंने नीतीश कुमार के बेहद करीबी एक नेता से बात की. उन्होंने कहा "नीतीश बाबू उत्तर भारत में एक स्वीकार्य नेता हैं. पवार और बनर्जी को यह मानना चाहिए"

नए सहयोगियों के साथ शपथ ग्रहण की योजना है और इसलिए हवा में नई महत्वाकांक्षाएं तैर रही हैं. इसे ही संक्षेप में नीतीश कुमार कहते हैं.

स्वाति चतुर्वेदी लेखिका तथा पत्रकार हैं, जो 'इंडियन एक्सप्रेस', 'द स्टेट्समैन' तथा 'द हिन्दुस्तान टाइम्स' के साथ काम कर चुकी हैं...

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