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This Article is From May 21, 2017

रवीश रंजन का ब्लॉग : आईआईएमसी के महानिदेशक की नकारात्मकता

Ravish Ranjan Shukla
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मई 21, 2017 09:10 am IST
    • Published On मई 21, 2017 09:10 am IST
    • Last Updated On मई 21, 2017 09:10 am IST
मैंने आईआईएमसी में पढ़ाई नहीं की है, लेकिन मुझे पता है कि भारतीय जनसंचार संस्थान ने एक से बढ़कर एक शानदार पत्रकारों की जमात खड़ी की है. दिल्ली में आए कई साल हो गए लेकिन शनिवार को पहली बार आईआईएमसी गया. वो भी मेरे एक मित्र ने मुझे वर्तमान परिपेक्ष्य में राष्ट्रीय पत्रकारिता-मीडिया और मिथ नाम के कांन्फ्रेंस को सुनने के लिए बुलाया. इसमें वंचित समाज के सवाल के नाम से एक परिचर्चा थी जिसमें एसआरपी कल्लूरी का भी व्याख्यान था. मन में उत्सुकता जगी कि हो सकता है कि कल्लुरी कुछ बोले तो खबर हो जाए. सुबह पहुंचते ही देखा कुछ मुट्ठीभर छात्र कल्लुरी के विरोध में नारे लगा रहे थे. कुछ IIMC के छात्र भी थे जो अंदर जाना चाह रहे थे, लेकिन भारी पुलिस बल और बंद गेट ने उनका रास्ता रोक रखा था. वे अपना आईकार्ड भी दिखा रहे थे, बावजूद उन्हें अंदर नहीं घुसने दिया जा रहा था. मैं, एबीपी की रत्ना और आज तक के मणिदीप भी मौजूद थे. लेकिन अंदर नहीं घुसने दिया गया. मेरे मन में चल रहा था कि आखिर मीडिया पर कांन्फ्रेस है और मीडिया को ही अंदर नहीं जाने दिया जा रहा है ऐसा क्यों. तभी मणिदीप ने आशु से बात की वो बोले की बिना कैमरा और बैग के आप अंदर जा सकते हैं. इतनी सतर्क निगाह में कैसी कान्फ्रेंस चल रही है. कौन लोग इसमें शामिल है. इन उमड़ते घुमड़ते सवालों के साथ अंदर पहुंचा तो संस्थान के महानिदेशक केजी सुरेश का व्याख्यान चल रहा था. 

मंच पर विकास भारती के अशोक भगत और दिव्य प्रेम सेवा मिशन पर आशीष गौतम बैठे थे. केजी सुरेश ने कहा कि सच दिखाने का दावा करने वाला एक न्यूज चैनल पिछले चुनाव में जम्मू-कश्मीर का खाली बूथ दिखा रहा था. ऐसे ही चैनल केवल बुरा देखते हैं, बुरा सुनते हैं और बुरा बोलते हैं. मैं उनसे कहना चाहता हूं अच्छा देखें, अच्छा सुनें और अच्छा बोलें. फिर उन्होंने वियना में अपनी एक ट्रिप का उल्लेख करते कहा कि वहां हर देश की प्रदर्शनी लगी थी, लेकिन हमारे देश की प्रदर्शनी में केवल रेप, हत्या के ही चित्र लगाए गए थे. फिर बोले कि जब गिलानी अभिव्यक्ति की आजादी के तहत बोल सकते हैं तो कल्लुरी क्यों नहीं. आलोचना का उद्देश्य सकारात्मक होना चाहिए. गलती सभी सरकारों से होती है.

फिर उन्होंने सवाल पूछने और नकारात्मक रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों को कहा कि थोड़ा सा मन को शुद्ध करें. मैं इन्हें मात्र मानसिक रोगी समझता हूं. इनकी हताशा अभी और बढ़ेगी. यहीं पर एक मंच संचालक थे जिन्होंने कहा कि हवन आईआईएमसी में हो रहा है करांची में नहीं.

केजी सुरेश जी आप मुझसे वरिष्ठ हैं आपके पत्रकारिता के अनुभव की मैं कद्र करता हूं. लेकिन विनम्रता के साथ कहना चाहता हूं कि एक पत्रकारिता संस्थान में खड़े होकर आप जिस नकारात्मकता का जिक्र कर रहे थे मुझे आपके चेहरे पर उससे ज्यादा नजर आ रही थी. एक भावी पीढ़ी के पत्रकार को आप ये सीखाएंगे कि चार घंटे लाइन में लगकर पैसा पाना सकारात्मकता है, सहारनपुर में जातीय संघर्ष सकारात्मकता है, गाय के नाम पर मेवात के एक किसान को पीट पीट कर मार डालना सकारात्मकता है, पूजा और नमाज शैक्षिक संस्थान में कराना नैतिकता है, नक्सलियों के हाथों हमारे जवान का शहीद हो जाना, आतंकवाद के नाम पर जवान पर पत्थरबाजी सकारात्मकता है तो आप बधाई के पात्र हैं. आप पत्रकारों की ऐसी खेप तैयार कर रहे हैं जो आज फलां पार्टी की. कल दूसरी पार्टी की और परसों तीसरी पार्टी की चापलूस सकारात्मकता तलाश करेगी. फिर जब आपकी मनपसंद पार्टी विपक्ष में बैठेगी तो आप उन्हीं पत्रकारों पर ताना मारेंगे कि वो दलाल पत्रकारिता कर रहे हैं. घर में होने वाले धार्मिक अनुष्ठानों को शैक्षिक संस्थान में कराकर विचार विमर्श का दैत्य भगाएंगे तो आने वाली पीढी आपको कभी माफ नहीं करेगी. पूजा या नमाज के लिए मंदिर, मस्जिद और घर हैं.

आईआईएमसी की प्रवेश परीक्षा में कड़ी मेहनत करके सफल होने वाले सामान्य परिवार का छात्र डेढ़ लाख रुपए फीस हवन कराने या चापलूस पत्रकार बनने के लिए नहीं देता है. सरकार के काम पर सकारात्मकता का ढ़ोल पीटने के लिए हर पार्टी के पास अपने लाखों कार्यकर्ता, ट्विटर पर बैठी डिजिटल सेना और भारतीय सूचना सेवा के अधिकारी होते हैं. ऐसा नहीं है कि सकारात्मक खबर प्राथमिकता नहीं है. मंगलयान की उपलब्धि हो या इंटरनेशनल कोर्ट में एक रुपए फीस पर लड़ने वाले वकील, इनका भी जमकर गुणगान होता है. हमारा काम समाज में अच्छा या बुरा घटित होने वाली घटनाओं को रिपोर्ट करना है. हमेशा याद रखें चापलूस पत्रकारिता कूपमंडूक समाज पैदा करता है.

फ्रांस के दार्शनिक वॉलटेयर ने कहा था कि आपके विचार भले मुझसे न मिले, लेकिन मैं आपकी अभिव्यक्ति की आजादी की रक्षा के लिए अपनी जान की बाजी लगा सकता हूं. आप से उम्मीद करुंगा कि अगली कांन्फ्रेंस के दरवाजे सभी छात्र और पत्रकार के लिए खुले रहेंगे.

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