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This Article is From May 26, 2015

प्रियदर्शन की बात पते की : मोदी का जादू, मोदी की चुनौती

Priyadarshan
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  • Updated:
    मई 26, 2015 23:48 pm IST
    • Published On मई 26, 2015 23:39 pm IST
    • Last Updated On मई 26, 2015 23:48 pm IST
एक साल में प्रधानमंत्री की सबसे बड़ी उपलब्धि क्या है? हाल के वर्षों में इस देश ने जितना उन्हें सुना है, जितने ध्यान से सुना है, उतना और उतने ध्यान से किसी को नहीं सुना है।

अखबारों में आ रहे सर्वे बताते हैं कि खाते-पीते भारत की निगाह में अब भी वे देश के सबसे बड़े और भरोसेमंद नेता हैं- ऐसे नेता जिनसे भारत के इक्कीसवीं सदी की महाशक्ति बनने का विश्वास जागता है। इस लिहाज से नरेंद्र मोदी का जादू भले कुछ फ़ीका पड़ा हो, लेकिन वह बुझा नहीं है और फिलहाल विपक्ष में किसी के पास उन्हें चुनौती देने की क्षमता नहीं दिखती।

लेकिन ये जादू किस चीज़ से बना है और कैसे कायम रहेगा? यह नरेंद्र मोदी की शख्सियत में इस भरोसे से बना है कि वे काम कराना जानते हैं, कि गुजरात को उन्होंने विकास का रास्ता दिखाया है, देश को भी दिखाएंगे। असली कसौटी इस भरोसे पर खरा उतरने की है। इस कसौटी की रस्सी पर लेकिन प्रधानमंत्री और उनकी सरकार के क़दम कुछ कांपते हुए मालूम होते हैं।

जिस विचारधारा ने नरेंद्र मोदी को यहां तक पहुंचाया है और जिस पूंजी ने इस काम में उनकी मदद की है, दोनों धीरे-धीरे अपना हिसाब मांग रही हैं। एक को घर वापसी चाहिए, हिंदू धर्म और संस्कृति का परचम चाहिए, किसी प्राचीन भारत की छूटी हुई गरिमा चाहिए, इन सबके साथ-साथ एक राम मंदिर और बिना अनुच्छेद 370 के, कश्मीर चाहिए।

दूसरे को विकास के नाम पर ज़मीन चाहिए, ढीले श्रम कानून चाहिए, मुनाफ़े की गारंटी चाहिए और बहुत सारा विदेशी पैसा चाहिए। प्रधानमंत्री और उनकी सरकार अगर विचारधारा को कुछ दिन के लिए स्थगित भी कर दे तो भी पूंजी की मांग को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकती। वहां ब्याज़ बहुत तेज़ी से चढ़ता है। लेकिन इस नए अर्थतंत्र की मार झेलने वाला इस देश का गरीब किसान और मजदूर सिर्फ़ अपने वोट पर भरोसा करता है।

अर्थनीति अगर इस देश के गरीब और पिछड़े हुए लोगों को मारती है तो राजनीति उन्हें बचाती है। नरेंद्र मोदी को इस बात का खयाल रखना होगा। अच्छे दिनों के जुमले से पहले एनडीए की एक और सरकार ने फील गुड और इंडिया शाइनिंग का नारा दिया था- इस देश के गरीबों ने उसकी हवा निकाल दी। कहीं ऐसा न हो कि देश को महाशक्ति बनाते-बनाते नरेंद्र मोदी इस जनशक्ति की अनदेखी कर दें।

पहले साल का इशारा ये दिख रहा है और आने वाले वर्षों में उन्हें विकास और राजनीति के बीच की इस गुत्थी का हल खोजना होगा- सामाजिक समरसता और आर्थिक बराबरी को साध कर वो अपनी राजनीति को नई ऊंचाइयों तक ले जा सकते हैं। लेकिन यहां लड़खड़ाए तो जनता अपने प्रिय से प्रिय नेताओं को इतिहास की गली दिखाने से नहीं चूकती।

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