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This Article is From May 30, 2019

मोदी सरकार का शपथ समारोह, जेडीयू ने बनाई दूरी; नीतीश बाबू क्यों बने शादी में 'नाराज फूफा'

Manoranjan Bharati
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मई 30, 2019 21:44 pm IST
    • Published On मई 30, 2019 21:44 pm IST
    • Last Updated On मई 30, 2019 21:44 pm IST

देश में जब इस बात को लेकर लगातार खबरें आ रही थीं कि कौन मंत्री बनेगा, कौन नहीं, उसी वक्त यह खबर भी आने लगी कि नीतीश कुमार की जनता दल यूनाईटेड सरकार में शामिल नहीं होगी. कई तरह के कयास लगने लगे कि आखिर क्या बात हो गई, मगर फिर यह भी खबर आने लगी कि नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री से बात कर अपनी दुविधा साफ कर दी है कि उनके मंत्री शपथ नहीं ले सकेंगे. यह भी चर्चा होने लगी कि शायद नीतीश कुमार जो विभाग चाहते थे, वह विभाग उनको नहीं दिया जा रहा था. बात रेल या फिर कृषि मंत्रालय की होने लगी, मगर बाद में खुद नीतीश कुमार ने स्थिति को साफ किया कि उनका बीजेपी के साथ संबंध बना रहेगा, मगर उनके मंत्री शपथ नहीं लेंगे. यह बात बीजेपी अध्यक्ष को बता दी गई है.

जेडीयू की सरकार में भागीदारी को लेकर बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और पीएम नरेंद्र मोदी ने भी प्रयास किए लेकिन नीतीश कुमार नहीं माने. वे शादी में शामिल उस फूफा की तरह बने रहे तो बात-बात पर नाराज हो जाता है. वे मुंह फुलाए रहे और अपनी पार्टी के किसी एक सांसद को मंत्री बनवाने के लिए तैयार नहीं हुए. इसके पीछे कुछ उनकी दुविधा है तो कुछ मजबूरी भी है.   

आखिर वे कौन से कारण रहे जिसने नीतीश कुमार को यह कदम उठाने पर मजबूर कर दिया. पहली वजह है जेडीयू को केवल एक कैबिनेट का पद देना. नीतीश कुमार का कहना था कि जब अकाली दल के पास दो सांसद हैं और उन्हें एक मंत्री पद मिल रहा है और रामविलास पासवान की पार्टी के पास छह सांसद हैं और उन्हें एक कैबिनेट का पद मिल रहा है, तो जेडीयू के पास 16 सांसद हैं, उन्हें किस आधार पर एक ही कैबिनेट मंत्री पद दिया जा रहा है. जेडीयू कम से कम एक और स्वतंत्र प्रभार का मंत्रालय चाह रहा था, मगर उनकी बात नहीं बनी. नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री का भी फोन आया था, मगर बात नहीं बनी.

वजह साफ है, यदि नीतीश कुमार एक कैबिनेट मंत्री की बात मान लेते और जैसी चर्चा थी कि रामचंद्र प्रसाद सिंह को मंत्री बनाया जाता तो नीतीश कुमार के लिए बिहार में एक अजीब सी स्थिति पैदा हो जाती. लोग यही कहते कि नीतीश कुमार ने अपनी जाति, यानी कुर्मी से ही नेता को मंत्री बना दिया. नीतीश कुमार को लगा कि इससे बिहार के अगड़ी जाति के लोग नाराज हो सकते हैं, इसलिए वे चाहते थे कि आरसीपी सिंह के साथ ललन सिंह, जो भूमिहार जाति से आते हैं, को भी मंत्री बनाया जाए. ताकि वे बिहार में जातियों के संतुलन को बनाए रख सकें. यही वजह है कि नीतीश कुमार ने इस पचड़े में पड़ना उचित नहीं समझा और अपनी पार्टी को शपथ ग्रहण से अलग रखा.

आने वाले दिनों में बिहार में विधानसभा के भी चुनाव होने हैं और उसको देखते हुए नीतीश अपनी रणनीति बनाने में व्यस्त हैं. चुनाव के दौरान भी नीतीश कुमार वंदे मातरम जैसे मुद्दे पर असहज दिखे थे. वे वंदे मातरम के नारों के दौरान हाथ उठाने से परहेज करते रहे. पूरे चुनाव प्रचार के दौरान वे मीडिया से भी बचते रहे. बिहार में बीजेपी को भी यह स्थिति रास आती है. इस लोकसभा चुनाव में प्रचंड जीत के बाद बिहार बीजेपी के नेता अब यह कहने लगे हैं कि अगला चुनाव अब अकेले ही लड़ लिया जाए. यानी बीजेपी में भी बिहार में मुख्यमंत्री बनने का सपना देखने वाले नेताओं की कमी नही है. उन्हें लगता है कि बिहार में बीजेपी इतनी मजबूत हो चुकी है कि वह अपने दम पर लड़ सकती है.

इस चुनाव में बिहार में एनडीए को 53.25 फीसदी वोट मिले जिसमें से बीजेपी को 23.58 फीसदी और जेडीयू को 21.8 फीसदी वोट मिले. इस चुनाव के मुताबिक जेडीयू का वोट पिछली बार यानि 2014 के मुकाबले 16.04 फीसदी से बढ़कर 21.8 फीसदी हो गया जबकि बीजेपी का वोट 29.40 फीसदी से घटकर 23.58 फीसदी रह गया. यही बात बीजेपी नेताओं को चुभ रही है. कई बीजेपी नेता नीतीश कुमार को संदेह की दृष्टि से देखते हैं क्योंकि बिहार में विपक्ष के लोग नीतीश कुमार को पलटू कुमार भी कहते हैं. कई बीजेपी नेताओं को लगता है कि जेडीयू उनके सहारे आगे बढ़ रही है.

अब देखना है कि अगले विधानसभा चुनाव में बीजेपी और जेडीयू क्या-क्या रणनीति अपनाती हैं. बिहार में अभी भी राज्य को स्पेशल दर्जा नहीं दिया जाना और आर्थिक पैकेज नहीं मिलना भी एक मुद्दा है. यानी बिहार की राजनीति को देखते हुए नीतीश कुमार जो कर रहे हैं उसके कई गहरे राजनैतिक मायने हो सकते हैं. इसलिए आगे आगे देखिए नीतीश बाबू क्या-क्या कदम उठाते हैं जो आपको चौंकाते रहेंगे.

(मनोरंजन भारती NDTV इंडिया में 'सीनियर एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर - पॉलिटिकल न्यूज़' हैं...)

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