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This Article is From Sep 30, 2020

मिडिल क्लास इंडिया, अब कहां है तुम्हारा आक्रोश...

Nidhi Razdan
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जनवरी 16, 2021 08:49 am IST
    • Published On सितंबर 30, 2020 19:51 pm IST
    • Last Updated On जनवरी 16, 2021 08:49 am IST

मैं बहुत गुस्से में हूं. आपको भी होना चाहिए.

एक युवा दल‍ित महिला के साथ बेरहमी से गैंगरेप किया गया, उसे इतनी बुरी तरह पीटा गया कि उसकी कई हड्ड‍ियां टूट गईं, उसे लाचार बनाकर छोड़ द‍िया गया, उसकी जीभ काट दी गई और गला भी घोंटा गया, इतनी यातनाओं के बाद खून से लथपथ उसे उत्तर प्रदेश में उसके घर के पास ही छोड़ दिया गया. देश के उस सबसे बड़े राज्य में रूह को कंपा देने वाली यह वारदात हुई है जहां कुछ समय पहले ही मुख्ययमंत्री योगी आदित्यनाथ कानून व्यवस्था को फिर से बहाल करने को लेकर बड़ी बड़ी बातें कर रहे थे.

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दो हफ्तों तक जिंदगी की जंग लड़ने के बाद आख‍िर अस्पताल में उसकी मौत हो गई. उसके बाद जो हुआ वो और भी खौफनाक है - यूपी की क्रूर, निर्दयी और बेशर्म पुलिस ने रात के अंधेरे में पीड़‍िता के शव का अंतिम संस्कार कर दिया, न तो उसके परिवार और नहीं करीबी रिश्तेदारों में उसमें शामिल होने दिया और इस जघन्य कृत्य को कैमरे में कैद करने वाले पत्रकारों के सवालों के जवाब तक नहीं दिए. एक दिल दहला देने वाला वीडियो भी सामने आया है जिसमें पीड़‍िता का परिवार एंबुलेंस के सामने अड़ गया और पुलिस से शव को सौंपने की गुहार लगाता द‍िख रहा है. लेकिन शव को सौंपने की बजाय पुलिस ने उन्हें उनके ही घर में बंद कर द‍िया और अपना काम करती रही. यह अलग बात है कि हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार सूर्यास्त के बाद अंतिम संस्कार नहीं किया जा सकता और परिवार ने भी पुलिस के सामने यह बात कही थी.

लेकिन तथ्य यह है कि पीड़‍िता दलित थी और सभी आरोपी ऊंची जाति के हैं जो कि इस भयावह कहानी का एक और पहलू है. ऐसी कई खबरें सामने आईं जिनमें बताया गयाकि कैसे ऊंची जाति के पुरुष, विशेषकर आरोपियों में से एक पीड़िता और उसके परिवार को महीनों से प्रताड़ि‍त कर रहे थे.

क्या यूपी पुलिस और यूपी सरकार में ऊंची जाति के किसी परिवार के साथ ऐसा व्यवहार करने की हिम्मत होगी. जो लोग इस अपराध में जाति के दृष्ट‍िकोण को अनदेखा करने की कोश‍िश कर रहे हैं वो या तो मामले को दबाना चाह रहे हैं या फिर जाति के नाम पर आज के समय में भी हो रहे अपराधों को अनदेखा कर रहे हैं. जो लोग जाति के एंगल को लेकर ट्व‍िटर पर मीडिया को गाली दे रहे हैं या ट्रोल कर रहे हैं उनमें से ज्यादातर विशेषाधिकार प्राप्त बुलबुलों (Privileged Bubbles) में रहते हैं.

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निर्भया के गैंगरेप और हत्या के 8 साल बाद भी हमने कुछ नहीं सीखा. हमारी पुलिस, हमारी न्यायपालिका, हमारे राजनेता और यहां तक कि हम लोग भी टूटे हुए हैं.

2012 में निर्भया गैंगरेप और मर्डर के बाद दिल्ली की सड़कों पर जो गुस्सा द‍िखा था, क्या आप सभी को वो याद है? तब विपक्ष में रही बीजेपी शीला दीक्षित और मनमोहन सिंह सरकार के पीछे पड़ गई थी. आम लोग सड़कों पर उतरे और विरोध किया, सख्त कानूनों, फास्ट ट्रैक अदालतों और एक ऐसे सिस्टम की मांग की गई जो बलात्कार की शिकार या प्रताड़ित महिलाओं के मामले में त्वरित कार्रवाई करे. मैं वहीं थी, उन विरोध प्रदर्शनों को कवर कर रही थी, उन माताओं और उनकी बेटियों से बात कर रही थी जो बड़ी संख्या में बाहर निकली थीं ताकि उनकी आवाज सुनी जाए.

आज कहां है बीजेपी नेतृत्व? जब आप सत्ता में हैं तो चुप क्यों हैं? यूपी पुलिस योगी आदित्यनाथ के प्रति जवाबदेह है. केवल यह कहना कि प्रधानमंत्री ने यूपी के मुख्यमंत्री को फोन कर आरोपियों के ख‍िलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई सुनिश्च‍ित करने को कहा है, काफी नहीं है. इसके लिए वास्तव में किसे जिम्मेदार ठहराया जा रहा है? एक सभ्य लोकतंत्र में, मुख्यमंत्री ने इस्तीफे की पेशकश की होती. लेकिन वो परवाह नहीं करते. वे लोगों के गुस्से के खत्म होने का इंतजार करेंगे और दीपिका पादुकोण के अगले व्हाट्सऐप चैट के लीक होने का ताकि खबरों का रुख उधर मुड़ जाए.

इस प्रकरण पर सत्तारूढ़ नेतृत्व की चुप्पी साफ झलक रही है. महिला एवं बाल विकास मंत्री और यूपी से ही सांसद स्मृति ईरानी, जो कि कई मुद्दों पर खुलकर बोलती हैं, वो भी सामने आकर परिवार के लिए इंसाफ की मांग करने में असमर्थ रही हैं. प्रधानमंत्री ने भी अब तक इस घटना पर कोई ट्वीट नहीं किया है. एक सरकार जिसने 'बेटी बचाओ' जैसा बड़ा नारा दिया, उसने हमारी बेटियों को केवल 'नारा' बनाकर छोड़ दिया. 

निर्भया मामले और उसके बाद संसद द्वारा पारित किए गए नए कानूनों के बावजूद, आंकड़े बताते हैं कि महिलाओं के ख‍िलाफ अपराध घटे नहीं बल्कि बढ़े ही हैं. इसी हफ्ते राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा प्रकाश‍ित सरकारी आंकड़े दिखाते हैं कि साल 2019 में महिलाओं के ख‍िलाफ अपराध में पिछले साल की तुलना में 7 फीसदी वृद्ध‍ि दर्ज की गई है. ndtv.com पर छपी एक रिपोर्ट के अनुसार 2019 में प्रति लाख महिलाओं में अपराध की दर 62.4 फीसदी दर्ज की गई है जो कि पिछले साल यानी 2018 में 58.8 फीसदी थी. लंबे समय तक चला निर्भया के हत्यारों का मुकदमा और उनके फांसी दिया जाना भी बेअसर रहा. तथ्य यही है कि हमारी पूरी व्यवस्था ही चरमरा गई है. पुलिस से लेकर न्यायपालिका तक. किसी को सजा का डर ही नहीं है.

और अंत में यह मीडिया है. कुछ अपवादों को छोड़कर, मुख्य धारा के ज्यादातर खबरिया माध्यमों ने कल से पहले तक हाथरस की खबर को कोई तवज्जो तक नहीं दी थी. महिलाओं का रेप और हत्या हो सकती है; अर्थव्यवस्था काफी मुश्क‍िल में हो सकती है; कोरोना की वजह से कहीं ज्यादा लोगों की जान जा सकती है; हो सकता है कि चीन हमारे कई और इलाकों पर कब्जा कर ले, लेकिन कुछ न्यूज चैनल हर दिन केवल बॉलीवुड और उसमें कथ‍ित ड्रग्स की समस्या पर ही बात करेंगे. अगर ऐसी ही कोई भयावह घटना किसी बड़े शहर में हुई होती, तो मुझे पूरा यकीन है कि इसकी न्यूज कवरेज कुछ और ही होती. इस बार कोई कैंडल मार्च नहीं है, मध्य वर्ग की तरफ से कोई विरोध प्रदर्शन नहीं है जैसा कि 2012 में हुआ था. हम सभी टूट चुके हैं

निध‍ि राज़दान NDTV की पूर्व एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर हैं...

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