कर्नाटक में इस बात पर बहस चल रही है कि किस पार्टी को सरकार बनाने का न्योता दिया जाए. BJP राज्यपाल से मिलकर सरकार बनाने का दावा पेश कर चुकी है. BJP को लगता है, बड़ी पार्टी होने के नाते उसे सरकार बनाने के लिए बुलाया जाना चाहिए. अब सभी की निगाह राज्यपाल पर टिकी है, मगर दिक्कत यह है कि ऐसा कोई नियम नहीं है कि किस परिस्थिति में किसे न्योता दिया जाए. हमारे पास दोनों तरह के ढेरों उदाहरण हैं कि कभी सबसे बड़ी पार्टी को न्योता दिया गया, तो कभी सबसे बड़े गठबंधन को.
सबसे बड़ा उदाहरण खुद एचडी देवगौड़ा हैं, जो अटल बिहारी वाजपेयी की 13 दिनों की सरकार गिरने के बाद कर्नाटक से बुलाकर प्रधानमंत्री बनाए गए थे. सब कुछ राज्यपाल के विवेक पर निर्भर करता है. कुछ उदाहरण हैं हमारे पास कि किस तरह अलग-अलग मौकों पर राज्यपाल का विवेक अलग-अलग ढंग से काम करता रहा है. इसी वजह से यह शंका होती है कि क्या राज्यपाल हर वक्त निष्पक्ष रहते हैं या उनके निर्णय को प्रभावित भी किया जाता रहा है.
उदाहरण के तौर पर, गोवा में जहां कुल 40 सीटें हैं, कांग्रेस को 17, BJP को 13, और अन्य छोटी पार्टियों और निर्दलियों को मिलाकर 10 सीटें थीं, मगर कांग्रेस को न्योता नहीं दिया गया और मनोहर पर्रिकर ने जोड़-तोड़कर सरकार बना ली. ठीक इसी तरह मणिपुर में कुल 60 सीटें हैं, जिनमें से कांग्रेस को 28, BJP को 21, एनपीपी को 4, तृणमूल कांग्रेस को 1 और अन्य को 6 सीटें मिली थीं, मगर सरकार BJP की बनी और कांग्रेस देखती रह गई. BJP के बीरेन सिंह मुख्यमंत्री बन गए. उसी तरह मेघालय में भी कुल 60 सीटें हैं, कांग्रेस के पास 21 थीं, एनपीपी के पास 19, यूडीपी के पास 6, पीडीएफ के पास 4, और BJP के पास 2 और आठ सीटें अन्य के पास थीं, मगर वहां सबसे बड़ा दल होने के बावजूद कांग्रेस को मौका नहीं दिया गया और एनपीपी के कॉनरैड संगमा मुख्यमंत्री बन गए.
कहने का मतलब यह है कि ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां अलग-अलग तर्कों से निर्णय किए गए हैं, और अब सभी की निगाहें कर्नाटक के राज्यपाल पर टिकी हैं, जो गुजरात BJP के पुराने नेता रह चुके हैं, गुजरात विधानसभा के अध्यक्ष रह चुके हैं, और एक विधानसभा चुनाव में तो तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए अपनी सीट भी छोड़ चुके हैं.
ऐसे में यदि BJP को बहुमत साबित करने के लिए कहा जाता है, तो कांग्रेस सुप्रीम कोर्ट जाने की धमकी दे रही है, मगर एसआर बोम्मई मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि बहुमत का कोई भी फैसला विधानसभा के भीतर तय होगा, यानी BJP की सरकार को कांग्रेस और JDS विश्वासमत में हरा दें. मगर क्या इसकी नौबत आएगी, क्योंकि अभी फैसला राज्यपाल महोदय को लेना है, और इसमें जितनी देर होगी, विधायकों की खरीद-फरोख्त का डर उतना ही बढ़ता जाएगा, जैसा एचडी कुमारस्वामी ने भी आरोप लगाया है कि उनके विधायकों को 100-100 करोड़ रुपये के ऑफर मिल रहे हैं. बात कर्नाटक की है, जो BJP के लिए दक्षिण के दरवाजे खोलता है,. सो, यहां दांव पर सब कुछ लगा है, महामहिम राज्यपाल का विवेक भी...
मनोरंजन भारती NDTV इंडिया में 'सीनियर एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर - पॉलिटिकल न्यूज़' हैं..
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This Article is From May 16, 2018
कर्नाटक में नाटक जारी है...
Manoranjan Bharati
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Updated:मई 16, 2018 17:02 pm IST
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Published On मई 16, 2018 16:51 pm IST
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Last Updated On मई 16, 2018 17:02 pm IST
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