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This Article is From Dec 12, 2014

मनीष शर्मा की नजर से : बीजेपी की रामभक्ति पर सवाल

Manish Sharma, Sunil Kumar Sirij
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  • Updated:
    दिसंबर 12, 2014 17:40 pm IST
    • Published On दिसंबर 12, 2014 17:34 pm IST
    • Last Updated On दिसंबर 12, 2014 17:40 pm IST

25 जनवरी, 1987 को शुरू हुए टीवी धारावाहिक 'रामायण' ने पूरे देश को राममय कर दिया था। उस समय माहौल ऐसा था कि सभी अपने जरूरी काम निबटाकर टीवी के आगे बैठ जाते थे। दुकानें बंद हो जाती थीं, लोग यात्रा करने से बचते थे, गांव, शहर और पूरे देश में जैसे कर्फ्यू लग जाता था।

उस समय टीवी हर घर में नहीं होता था, तो जिसके घर में टीवी होता था मोहल्ले के क्या बूढ़े, क्या बच्चे सभी 'रामायण' देखने पहुंच जाते थे। मेजबान के घर में जैसे समारोह जैसा माहौल हो जाता था। सब की भावनाएं जैसे एक माला में बंध सी जाती थीं। कहीं राम का राक्षसों का वध करना, हनुमान का समय पर संजीविनी लाना लोगों को रोमांचित कर जाता था, तो कहीं सीताहरण में सीता का विलाप या सीता का धरती में समा जाना उनको रुला देता था। लोग पूरे हफ्ते रविवार का बेसब्री से इंतजार करते।

'रामायण' को जिस सम्मान से हिन्दू देखते थे, उसी तरह का प्यार और आदर उसे मुसलमान, सिख और अन्य धर्मों से मिला। 31 जुलाई, 1988 को इसके आखिरी एपिसोड का प्रसारण हुआ। इस डेढ़ साल में राम और रामायण भारत के लोगों में इस तरह बस गए मानो राम भगवान न होकर राम लल्ला हो गए, घर के एक सदस्य जैसे।

हवा का रुख समझते हुए बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी ने  अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए 1990 में सोमनाथ से लेकर अयोध्या तक की यात्रा की। जिसका आने वाले वक्त में बीजेपी को बहुत फायदा हुआ। लालकृष्ण आडवाणी के ब्लॉग में आप 'यात्रा' सेक्शन में पढ़ सकते हैं कि सोमनाथ यात्रा के कारण ही बीजेपी आज देश की सबसे बड़ी पार्टी बनी है।

1992 में अयोध्या में विवादित ढांचे को गिरा दिया गया। बीजेपी ने राम मंदिर के निर्माण के लिए जनता से वादा किया कि अगर जनता उसे सत्ता सौंपती है, तो बीजेपी मंदिर का निर्माण जरूर करेगी। 1984 में लोकसभा में सिर्फ 2 सीट जीतने वाली बीजेपी को 1996 में देश की जनता ने सबसे बड़ी पार्टी बना दिया।

आइए थोड़ा नजर डालते हैं बीजेपी के अब तक के घोषणापत्रों पर कि वह किस तरह राम मंदिर के मुद्दे को अपनी सहूलियत के हिसाब से हटाती और जोड़ती रही है।

1998 से पहले के घोषणापत्र बीजेपी की वेबसाइट पर मौजूद नहीं हैं। 1998 के घोषणापत्र में कहा गया है कि बीजेपी अयोध्या के राम जन्मभूमि पर जहां एक अस्थायी मंदिर पहले से मौजूद है, वहां भव्य राम मंदिर के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध है। श्री राम भारतीय चेतना के मूल में निवास करते हैं। बीजेपी राम मंदिर के निर्माण के लिए आम सहमति, कानूनी और संवैधानिक सभी साधनों का पता लगाएगी। बीजेपी की केंद्र में 13 महीने की सरकार बनी पर राम मंदिर के निर्माण के लिए कोई कदम नहीं उठाए गए।

1999 के घोषणापत्र में राम मंदिर का मुद्दा हटा दिया गया। अब यह घोषणापत्र बीजेपी का न हो कर एनडीए का घोषणापत्र बन गया था। सत्ता का लालच राम मंदिर से बड़ा हो गया। कुर्सी चाहिए, तो सहयोगियों को नाराज तो नहीं कर सकते। पांच साल तक बीजेपी के नेतृत्व में केंद्र में सरकार रही, पर सहयोगियों के दबाव में राम मंदिर का मुद्दा ठंडे बस्ते में पड़ा रहा।

2004 का घोषणपत्र भले ही अभी भी एनडी का घोषणापत्र था, पर राम मंदिर मुद्दे की वापसी हो गई। घोषणापत्र में कहा गया कि एनडीए को विश्वास है कि अयोध्या मुद्दे के शीघ्र और सौहार्दपूर्ण समाधान से देश की एकता को मजबूती मिलेगी। हम अभी भी इस बात को मानते हैं कि इस मामले में न्यायपालिका के फैसले को सभी को स्वीकार करना चाहिए। उस बार लोगों ने बीजेपी के खोखले वादों पर भरोसा नहीं किया और सत्ता से बाहर कर दिया।

2009 का घोषणापत्र अब दोबारा बीजेपी का घोषणापत्र बन गया। फिर से 1998 के घोषणापत्र के 'कठोर' शब्दों का प्रयोग किया गया, इस उम्मीद में कि हिन्दू फिर से बीजेपी को सत्ता पर बिठा देंगे और आडवाणी का देश के प्रधानमंत्री बनने का सपना पूरा हो जाएगा। पर आडवाणी और बीजेपी लोगों का विश्वास नहीं जीत पाए।

2014 के लोकसभा चुनाव से पहले मोदी की लहर चल रही थी। नरेंद्र मोदी ने हिन्दुओं का विश्वास जीतने के लिए अपने चुनाव प्रचार में राम मंदिर के निर्माण करने की कई बार घोषणा की। 2014 के बीजेपी घोषणापत्र में बीजेपी ने फिर राम मंदिर का निर्माण करवाने के लिए अपनी प्रतिबद्धता दोहराई। नतीजा बीजेपी पहली बार पूर्ण बहुमत से केंद्र में सरकार बनाने में सफल हुई। अगर मोदी वही बीजेपी की पुरानी नीति अपनाते हैं, तो अगले चुनाव में बीजेपी की दोबारा सरकार बन सके यह मुश्किल है।

राम मंदिर बनाने का मुद्दा कहीं फीका न पड़ जाए, हिन्दू वोट बैंक कहीं छिटक न जाए,  इसके लिए हिन्दू संगठन और खासकर बीजेपी नेता समय-समय पर मंदिर के निर्माण को लेकर अपनी प्रतिबद्धता दोहराते रहते हैं। यूपी के राज्यपाल राम नाइक और बीजेपी के सांसद साक्षी महाराज ने वही मंदिर राग फिर से अलापा है। रामायण धारावाहिक के समय के बूढ़े मर चुके हैं, नौजवान अब प्रौढ़ हो गए हैं, पर राम मंदिर का हाल जो तब था, वह आज भी है।

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