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This Article is From Aug 17, 2016

हिंसा का ऐसा जश्न क्यों? ये कैसा वायरल फैल रहा है...

Kranti Sambhav
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 17, 2016 15:04 pm IST
    • Published On अगस्त 17, 2016 12:09 pm IST
    • Last Updated On अगस्त 17, 2016 15:04 pm IST
एक और घटना देखने को मिली है, फिर से सवाल वही सवाल सामने आ रहे हैं क्या इंसानियत मर गई, इतना क्रूर क्यों हो गए हैं हम. सोशल मीडिया पर शायद चर्चा भी हो, कि मनुष्यता फिर ख़तरे में है. अब इस बार हैदराबाद में तीन कुत्तों को किसी ने गोली मार दी, जब तक पुलिस पहुंची ख़ून से लथपथ तीन कुत्ते मरे हुए मिले. मुझे लग रहा था कि चेन्नई वाली घटना के बाद यही घटना है, लेकिन ख़बर पढ़ी तो पता चला कि केवल हैदराबाद में ही हाल फिलहाल में जानवरों से ऐसी क्रूरता का यह चौथा मामला था. एक घटना हुई जहां लोगों ने एक कुत्ते पर एसिड फेंक दिया, दो और कुत्तों को ज़हर खिलाकर मार दिया. इससे पहले कुछ लड़कों ने तीन छोटे पिल्लों को ज़िंदा जला दिया. उसे कैमरे पर रिकॉर्ड किया और फिर उसे सोशल मीडिया पर डाल दिया. आख़िर क्या और क्यों हो रहा है ऐसा? ऐसी घटनाओं में बढ़ोत्तरी ही होती दिख रही है.

कई इंसानों में क्रूरता तो होती ही है, लेकिन अब जो ट्रेंड देखने को मिल रहा है वह अलग है. वह है क्रूरता का जश्न. इसका वीडियो बनाना और उन्हें अपलोड करना. वह भी गुमान के साथ. ये वीडियो अगर आपको चिंतित नहीं कर रहे तो साथ में बलात्कारों के वीडियो के बारे में भी एक बार सोच लीजिएगा.

यानी अब वह सवाल काफी नहीं होगा कि क्या छत से कुत्ते को फेंकने वाला वह मेडिकल छात्र मानसिक रूप से बीमार था या घटना को अपने मोबाइल में शूट करने वाला और अपलोड करने वाला? या वह शख़्स जो हैदराबाद में कुत्तों को एयरगन से मार देता है और वीडियो वायरल हो जाता है? सवाल यह भी है कि ये घटनाएं हमारे समाज के बारे में क्या कुछ कह रही हैं? सवाल यह होना चाहिए कि बेज़ुबानों पर ऐसी हिंसा को कहीं एक मौन स्वीकृति तो नहीं मिल रही?

अपने एक सहयोगी आज़म सिद्दक़ी से की बातचीत को आपके साथ बांटना चाहूंगा, जानवरों की भलाई के लिए वह सालों से काम कर रहे हैं. उन्होंने ज़िक्र किया एक शोध के बारे में कि कई सीरियल किलर्स और साइकोपैथ के अपराधों की शुरुआत बचपन में बेज़ुबान जानवरों के साथ हिंसा करके ही होती है. अपने से कमज़ोर जानवरों को कष्ट देकर जब उसे हिंसा का चस्का लगता है, जो बाद में इंसानों की जान लेकर भी शांत नहीं होता है.

यही वजह है कि मैं ये लिख रहा हूं. सवाल जानवरों पर हिंसा का नहीं है, सवाल हिंसा का है. चिंता उस प्रवृत्ति की है, जो अपने से कमज़ोर पर की जाने वाली हिंसा को मौन स्वीकृति देती लग रही है. हाल में हमने आपने सुना ही होगा कि बलात्कार के भी वीडियो बाज़ार में बिक रहे हैं. ऐसा नहीं कि उन वीडियो को जो ख़रीद कर देख रहा है वो सब जाकर रेप करने लगें, लेकिन इस सबसे ये ख़तरा नहीं कि उनमें से ज़्यादातर बलात्कार को या बलात्कारियों को स्वीकारने लगेंगे?

अब इस प्रवृत्ति को किसी बैन या चालान या मामूली सज़ा से ख़त्म तो किया नहीं जा सकता है. 50 रुपए के जुर्माने के साथ तो कभी नहीं. जी हां, कुत्ते को मारकर सिर्फ 50 रुपए देकर छूटे हैं ये लोग. सिर्फ़ 50 रुपए.

इस प्रवृत्ति को रोकने के लिए एक कदम जो शायद सबसे ज़्यादा ज़रूरी है वह बुनियादी स्तर पर ही उठाना होगा. बच्चों के साथ. जिस मुद्दे पर आज़म की सलाह काम की लगी. वह सलाह थी बच्चों को एनिमल शेल्टर ले जाने की. जहां पर वे तमाम जानवर होते हैं, जो इंसान की इंसानियत के शिकार होते हैं, जिन्हें देखकर, बेज़ुबानों के दुख को महसूस करके, बच्चा समझेगा कि इंसान में इंसानियत बाई-डीफ़ॉल्ट नहीं आती है, मनुष्य के रूप में पैदा होने वाला हरेक इंसान नहीं बन जाता है, उसे भी विकसित किया जाता है.

क्रांति संभव एनडीटीवी इंडिया में एसोसिएट एडिटर एवं एंकर हैं

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