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This Article is From May 02, 2023

जेरूसलम में मिला भारत का टुकड़ा...

Kadambini Sharma
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मई 02, 2023 16:57 pm IST
    • Published On मई 02, 2023 16:45 pm IST
    • Last Updated On मई 02, 2023 16:57 pm IST

पुराने जेरूसलम शहर के मुस्लिम हिस्से के हैरोड्स गेट के पार भारत का एक टुकड़ा आठ सौ साल से भी ज्यादा से यहां आने वाले भारतीयों के लिए घर के एक टुकड़े-सा रहा है.  ये है इंडियन हॉसपिस धर्मशाला या ज़ाविया अल हिंदिया.  जेरूसलम के मुस्लिम हिस्से के बाज़ार के सब्ज़ी, फल वगैरह की रंग-बिरंगी  दुकानों के बगल से, संकरी सीढ़ियों से होते हुए जब मैं इसके दरवाज़े पर पहुंची तो सबसे पहले नज़र पड़ी वहां शान से फहराते तिरंगे पर. और फिर हमारे दल का स्वागत करने के लिए वहीं पर मुस्कुराते खड़े मिले नज़ीर हुसैन अंसारी और उनकी पत्नी वफ़ा. नज़ीर यहां के ट्रस्टी हैं. बताते हैं कि उन के दादा यहां पर 1924 में आए जब उन्हें धर्मशाला का ट्रस्टी और डायरेक्टर बनाया गया. इस धर्मशाला को भारत का केंद्रीय वक़्फ काउंसिल चलाता है और ये सिर्फ भारतीय नागरिकों या भारतीय वंश वालों के लिए है.

जब अंदर घुसते हैं तो गैलरी के दोनों तरफ यहां आए जाने-माने अतिथियों की तस्वीरें लगी हैं. पूर्व उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी,  पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, और भी कई. वैसे, नज़ीर जेरूसलम के स्थायी निवासी हैं, लेकिन नागरिक भारत के हैं. इनका पूरा परिवार इसी धर्मशाला को चलाने में जुटा है.

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गैलरी से अंदर घुसने पर बेहद खूबसूरत चौबारा, नारंगी और नींबू के पेड़. आंगन में पुरानी धर्मशालाओं की तरह कमरे बने हैं. छोटे पर बिल्कुल साफ-सुथरे. एक तरफ एक छोटी-सी लाइब्रेरी है. यहां का इतिहास दीवारों पर शीशे में मढी तस्वीरें बताती हैं. चार बार बमबारी का सामना कर चुकी है ये धर्मशाला. 1967 में तो ना सिर्फ काफी नुकसान हुआ बल्कि नज़ीर अंसारी के परिवार के तीन सदस्य भी नहीं रहे. उसके बाद जैसे वक्त ठहर-सा गया. जब इज़रायल से कूटनीतिक रिश्ते मजबूत हुए तो भारत सरकार की मदद से इसकी मरम्मत हुई. खुद विदेशमंत्री एस जयशंकर 2018 में धर्मशाला का जायजा लेने आए.

लेकिन यहां का जो किस्सा सबसे ज्यादा मशहूर है, वो है बाबा फ़रीद का. कहते हैं  कि 13वीं सदी में सूफी संत बाबा फ़रीद जेरूसलम आए, पहाड़ी पर बनी पत्थर की छोटे-सी धर्मशाला में रुके. 40 दिनों तक साधना की, यहीं पर सोए. इस छोटी-सी जगह को देखने की ललक में काफी लोग यहां आते हैं. यहां से निकलने के पहले हमें इसी आंगन के पुराने नींबू के पेड़ के नींबू से बना ठंडा नींबू-पानी मिला और घर से चार हजार किलोमीटर से ज्यादा दूर इस जगह में जैसे घर का स्वाद आ गया.  (ये दौरा अमेरिकन ज्यूइश कमेटी ने आयोजित किया था)

(कादम्बिनी शर्मा NDTV इंडिया में एंकर और एडिटर (फॉरेन अफेयर्स) हैं...)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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