टूटना हर हाल में बुरा होता है. कोई भी रिश्ता नहीं टूटना चाहिए लेकिन रिश्ते के न टूटने की कीमत व्यक्ति का टूटना तो नहीं हो सकता. इसलिए जब रिश्तों के अंदर इंसान मरने लगे, जज्बात मरने लगें तो जरूरी है रिश्ते की दहलीजों से पार निकलना और खुद को बचाना. लेकिन अब भी यह समाज सड़े-गले रिश्तों के झूठे 'सेलिब्रेशन' पर निसार रहता है और टूटे, सड़े, बजबजाते रिश्ते से बाहर निकलने की हिम्मत देने के बारे में सोच भी नहीं पाता. ऐसे में अगर कोई स्त्री तलाक भी ले और तलाक के बाद उसे सेलिब्रेट भी करे तो कैसे न होगा समाज के पेट में दर्द. तमिल टीवी अभिनेत्री शालिनी ने तलाक के बाद एक फोटोशूट कराकर जिसमें वह तलाक को मुक्ति के तौर पर देख रही हैं और मुक्ति का जश्न मना रही है, समाज की सड़ी गली सोच को अंगूठा दिखाया है.
समाज स्त्रियों से अपेक्षा रखता है कि वे अपनी मर्जी से किसी रिश्ते में न जाएं. जो भी रिश्ता उन्हें पकड़ा दिया जाए उसे पूरी शिद्दत से निभाएं और निभाते-निभाते मर जाएं. मरते-मरते भी उस रिश्ते के झूठे सुख के कसीदे पढ़ना न भूलें.
हमारे आसपास न जाने कितनी ही ऐसी शादियां हैं जिसमें लोग एक-दूसरे को बड़ी मुश्किल से झेल रहे हैं. हर दिन कुढ़ रहे हैं. अपनी शादी को कोस रहे हैं. लेकिन उसी शादी की झूठी हैप्पी फैमिली वाली तस्वीरें भी लगातार पोस्ट कर रहे हैं. यह सुखी दिखने का इतना दबाव जाने कहां से आ गया है.
चारों तरफ दुःख, अवसाद, झगड़े, झंझट वाली शादियां नजर आती हैं लेकिन उनसे निकलने की हिम्मत करने वाले लोगों की संख्या अब भी बहुत कम है. एक पूरी उम्र टूटे-बिखरे रिश्ते के लिए बिसूरते हुए गुजार देने वाले लोग भी शादी को बचाने की वकालत करते नजर आते हैं. अच्छे खासे पढ़े लिखे लोग, आर्थिक रूप से सम्पन्न, आत्मनिर्भर लोग भी तलाक से बचे रहना चाहते हैं. और विडम्बना यह कि लोग प्रेम बचे रहने की दुआ नहीं देते, रिश्ता बचे रहने की देते हैं. प्रेम और सम्मान के अभाव में किसी भी रिश्ते को क्यों बचे रहना चाहिए? और यह अलग होना सुभीते से क्यों नहीं होना चाहिए?
एक स्त्री के लिए तलाक के फैसले तक पहुंचने की राह आसान नहीं होती. यह लड़ाई पहले मन के भीतर लम्बी चलती है और उसके बाद कोर्ट में. जिस रिश्ते के बनने को कभी सेलिब्रेट किया था उससे मुक्ति पाने के लिए कोर्ट की सीढ़ियां चढ़ना आसान नहीं होता. परिवार के लोगों से लेकर, कोर्ट, कचहरी, वकील, जज और आसपास के लोग सब मिलकर संदेह की नज़र से देखते हैं. आपमें दोष तलाशते हैं.
एक स्त्री शादी के 28 साल बाद तलाक लेने पहुंची तो जज ने कहा, ‘अब इतनी उम्र कट गई है बाकी भी काट लो, क्यों लेना है तलाक? अलग तो रहते ही हो, तलाक लेने की क्या जरूरत है? अब इस उम्र में दूसरी शादी तो करनी नहीं है, फिर पड़ी रहने दो शादी?'
ये जो है न 'पड़ी रहने दो शादी' इसी ने जिंदगी अज़ाब बनाई है. कुछ भी करके शादी को बचा लेने पर तुला है समाज. शादी के भीतर चाहे कुछ बचा हो या न बचा हो, शादी बची रहे बस. कभी बच्चों की दुहाई देकर, कभी बुढ़ापे का सहारा कौन होगा की दुहाई देकर और कभी सब लोग क्या कहेंगे की दुहाई देकर.
रिश्ता बचाया जाना यक़ीनन जरूरी है लेकिन अगर रिश्ते में से और जीवन में से कुछ चुनना हो तो बेशक जीवन को ही चुना जाना चाहिए.
(प्रतिभा कटियार कवि, लेखक, कहानीकार हैं. उनकी 4 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं. इन दिनों वो देहरादून में रहकर शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रही हैं.)
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.