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This Article is From May 11, 2017

प्राइम टाइम इंट्रो : क्‍या तीन तलाक पर कोर्ट का दखल ठीक है?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मई 11, 2017 21:58 pm IST
    • Published On मई 11, 2017 21:58 pm IST
    • Last Updated On मई 11, 2017 21:58 pm IST
तीन तलाक़ पर तैयारी के दौरान कई लेखों में मीडिया खासकर न्यूज़ चैनलों को लेकर एक खीझ दिखाई दी. यही कि मीडिया ख़ासकर टीवी ने तीन तलाक के मसले को हां या ना में बदल कर रख दिया है. जबकि यह मामला हां या ना के अलावा उन विकल्पों का भी है जो तीन तलाक की समाप्ति के बाद हो सकता है, जिसे लेकर तमाम संगठनों के बीच अलग अलग राय है. न्यूज़ चैनल इस तरह की नाइंसाफी सिर्फ मुस्लिम मुद्दों के साथ नहीं करते बल्कि तमाम राजनीतिक और ग़ैर धार्मिक मुद्दों के साथ भी करते हैं. इसका अब कुछ नहीं हो सकता है. टीवी के डिबेट का मकसद भड़ास निकालना होता है. न कि आपकी राय को पहले से बेहतर बताना. इतनी बात तो अभी तक समझ ही गए होंगे. इसके लिए मैट्रिक पास होने की भी ज़रूरत नहीं है. जम्मू कश्मीर में पीडीपी बीजेपी की सरकार है. मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती कई बार तथाकथित राष्ट्रीय मीडिया से गुज़ारिश कर चुकी हैं कि डिबेट में इस तरह से चर्चा न करें कि जम्मू कश्मीर के लोगों के प्रति भारत में नफ़रत फैल जाए.

तीन तलाक़ को लेकर मुस्लिम महिला संगठनों की राय में ही काफी फर्क है. भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन चाहता है कि त्वरित तीन तलाक़ समाप्त हो मगर यूनिफॉर्म सिविल कोड न थोपा जाए. इसकी जगह क़ुरआन में तलाक़ की जो प्रक्रिया है उसे ही सुन्नियों पर लागू किया जाए. मुस्लिम वीमेंन्स लीग की मांग है कि मुस्लिम महिलाओं पर धार्मिक कानून लागू ही न हो. शरई कानून रद्द कर दिया जाए और उसकी जगह इंडियन मैरेज लॉ बनाया जाए. शायरा बानो तीन तालाक को असंवैधानिक मानती हैं और यूनिफार्म सिविल कोड की मांग करती हैं.

इसके दो मतलब हुए कि मुस्लिम महिलाओं की दुनिया में इस वक्त कई तरह की बेचैनियां हैं. एक बेचैनी अपने मसले का हल क़ुरआन के दायरे में चाहती है तो दूसरी बेचैनी अपने मसले का हल कानून के सिद्धांत के अनुसार चाहती है. एक तरह से मुस्लिम महिलाओं के बीच यह बात स्पष्ट है कि शरिया को छोड़ या तो क़ुरआन लागू हो या संविधान लागू हो, त्वरित तीन तलाक़ समाप्त हो. यह बात भी ठीक नहीं है कि मौलाना लोग भी एक ही तरह से इस बहस में शामिल हैं. बहुत से मौलाना या इस्लामिक विद्वान यह चाहते हैं कि त्वरित तीन तलाक़ समाप्त हो जाए. हिलाल अहमद ने अपने लेख में मौलानाओं के बीच कितने प्रकार की बहस है उसकी सूची पेश की है,
- अहले हदीस सुन्नी कहते हैं कि तीन तलाक का कोई धार्मिक आधार नहीं है, लेकिन वे पर्सनल लॉ बोर्ड को चैलेंज नहीं करते हैं.
- बोर्ड से जुड़े कई पारंपरिक उलेमा तीन तलाक को धार्मिक और कानूनी आधार पर सही मानते रहे हैं.
- बोर्ड ने अब जाकर एक बार में तीन तलाक़ को ग़लत माना है, लेकिन तलाक़ की लंबी और मुश्किल प्रक्रिया बनाई है.

यह लड़ाई इस बात को लेकर भी है कि महिलाओं या भारतीय मुसलमानों के जीवन पर क़ुरआन की सर्वोच्चता लागू हो या ख़लीफ़ाओं के दौर में क़ुरआन और हदीस की व्याख्या के बाद जो सामाजिक नियम बने हैं जिसे आप शरिया कहते हैं वो लागू हो. आपको यह भी समझना होगा कि क़ुरआन के साथ साथ शरिया भी तो इस्लामिक क़ानून का हिस्सा रहा ही है. यह सही बात है कि इस्लाम एक है और क़ुरआन एक है मगर इस्लाम के तहत अलग अलग पंथ हैं, फ़िरके हैं और उनके अपने अपने शरिया हैं.

शरिया का मतलब होता ज़िंदगी का रास्ता. मोटा मोटी यह समझये कि सड़क पर चलते वक्त क्या सावधानी अपनाई जाए, इसका ज़िक्र तो कुरआन में नहीं है लेकिन आप सड़क पर चलते वक्त अपने संवैधानिक ज़िम्मेदारियों से भी अलग नहीं हैं तो क्या करेंगे. नियम का पालन करेंगे. यही नियम शरिया कहलाता है.

हिलाल अहमद ने लिखा है कि अगर शरियत पर इतना ही ज़ोर है जिसके तहत तीन तलाक का कुछ लोग समर्थन करते हैं तो क्या वे चोरी करने पर हाथ कटवाने के लिए भी तैयार हैं. 80 के दशक में मशहूर और शानदार लेखक राही मासूम रज़ा ने हंस पत्रिका में एक लेख लिखा जिसका उन्वान था इन्हें इस्लाम कटपीस में चाहिए. राही मासूम रज़ा ने भारत के मुसलमानों पर तंज करते हुए लिखा था कि शरियत के हिसाब से तीन तलाक़ अगर मंज़ूर है तो उसी के हिसाब से चोरी करने पर हाथ कटवाने की सज़ा क्यों नहीं मंज़ूर कर लेते. लॉ कमिशन ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन ताहिर महमूद ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि तीन तलाक की जगह एक तलाक भी हो तो भी व्हाट्सऐप, ईमेल से तलाक़ देने की बीमारी रह ही जाएगी. इसलिए एकतरफ़ा तालाक़ की प्रक्रिया समाप्त होनी चाहिए. मर्द की मर्जी से तालाक़ न हो.

ताहिर महमूद और नलसर, हैदराबाद के वाइस चांसलर फ़ैज़ान मुस्तफ़ा के लेख में यह बात प्रमुखता से उभरती है कि इस बदलाव में संसद की भी अहम भूमिका है. त्वरित तीन तलाक की समाप्ति के बाद नई व्यवस्था क्या हो, सभी पक्षों को मंज़ूर हो इसके लिए कोई कमेटी बैठे और फिर विधायी प्रक्रिया शुरू हो. ताहिर महमूद कोर्ट की भूमिका भी मानते हैं जैसे 1995 में कोर्ट ने ही ग़ैर मुसलमानों को दूसरी शादी करने के लिए इस्लाम अपनाने पर रोक लगा दी थी. इस बहस का एक और पहलू है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ सारा का सारा शरिया नहीं है. पर्सनल लॉ के तहत तीन एक्ट ऐसे हैं जिसे विधायी मान्यता हासिल है. मुस्लिम पर्सनल लॉ अप्लिकेशन एक्ट 1937, डिज़ोल्यूशन ऑफ मुस्लिम मैरेज एक्ट 1939, मुस्लिम वुमन (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स ऑन डाइवोर्स) एक्ट 1986.

1937 और 1939 का एक्ट अंग्रेज़ों ने बनाया था जिसे आज़ादी के पहले एंगलो मोहम्मडन लॉ कहते थे, आज़ादी के बाद मुस्लिम पर्सनल लॉ कहलाने लगा. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड संवैधानिक संस्था नहीं है. न ही ये बोर्ड संवैधानिक अधिकार दिलाने की गारंटी दे सकता है. कई लोग लॉ बोर्ड नाम होने से कंफ्यूज हो जाते हैं कि इसे संवैधानिक या कानूनी मान्यता हासिल है. वैसे कई लोग मानते हैं कि इन तीनों एक्ट में भी सुधार की बहुत ज़रूरत है. एक बदलाव और आया है. त्वरित तीन तलाक मुस्लिम महिलाओं की शुरू की गई लड़ाई है, लंबे अर्से तक मुस्लिम मर्द इससे दूर रहे लेकिन आज इस लड़ाई में बड़ी संख्या में मुस्लिम मर्द औरतों के साथ हैं. आप त्वरित तीन तलाक के ख़िलाफ लिखने वालों के नाम देख लीजिए, जावेद आनंद, आरिफ़ मोहम्मद ख़ान, शाहिद सिद्दीकी, हिलाल अहमद, ताहिर महमूद, फ़ैज़ान मुस्तफ़ा. अब बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई शुरू करते ही इस बहस का दायरा तय किया है. त्वरित तीन तलाक़ लीगल है या नहीं, इस पर सुनवाई होगी. पीठ ये देखेगी कि तीन तलाक़ क्या इस्लाम का मूल अंग है. क्या इसे धार्मिक स्वतंत्रता के आधार पर मौलिक अधिकार माना जा सकता है. अगर तीन तलाक़ धार्मिक स्वतंत्रता के तहत आएगा तो कोर्ट दखल नहीं देगा. इसके बाद ज़रूरत पड़ी तो हलाला पर सुनवाई होगी मगर बहुविवाह पर सुनवाई नहीं होगी.

सुप्रीम कोर्ट पाकिस्तान समेत दूसरे देशों के कानून भी देखेगा जहां तीन तलाक़ ख़त्म किया गया है. 20 से अधिम मुल्कों में तीन तलाक़ को समाप्त कर दिया गया है. हिन्दी के दर्शक वाणी प्रकाशन के प्रतिमान में छपे अमरीन का लेख पढ़ सकते हैं. इराक़ ने 1959 में तलाक़, निक़ाह, कानून को बदलकर विवाह संहिता जारी की थी. सीरिया में 1953 में ऐसे बदलाव किये गए थे. 1959 में अल्ज़ीरिया ने भी एक अध्यादेश जारी कर सभी प्रकार के तलाक़ को कोर्ट के दायरे में ला दिया था.

(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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