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This Article is From Feb 01, 2017

क्या एक साल में दस लाख खेत तालाब बनाने का वित्त मंत्री का दावा सही है?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    फ़रवरी 01, 2017 16:56 pm IST
    • Published On फ़रवरी 01, 2017 16:48 pm IST
    • Last Updated On फ़रवरी 01, 2017 16:56 pm IST
क्या वाकई भारत में तालाब क्रांति हो चुकी है? बजट पेश करते हुए भारत के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बताया कि पिछले बजट में मनरेगा के पैसे से खेती से जुड़े 5 लाख खेत तालाबों के बनाने का लक्ष्य था, जिसे पूरा कर लिया गया है. मार्च 2017 तक खेती से जुड़े दस लाख तालाबों का कार्य पूरा कर लिया जाएगा. यह कोई साधारण कामयाबी नहीं है. 2011 के आंकड़ों के हिसाब से भारत में छह लाख चालीस हज़ार गांव हैं. इनमें से एक लाख के करीब शहरीकृत हो चुके होंगे फिर भी हर गांव में एक साल के भीतर एक या एक से अधिक तालाब बनने की घटना का उदार मन से स्वागत किया जाना चाहिए. मुझे हैरानी हो रही है कि भारत सरकार अपनी तमाम उपलब्धियों का इतना प्रचार करती रहती है, उसी की प्राथमिकताओं के कारण इतनी बड़ी क्रांति हो गई और कहीं कोई हंगामा नहीं.

गांव-गांव घूमने वाला स्थानीय मीडिया भी क्या 5 से 10 लाख कृषि तालाब बनने की परिघटना को नहीं देख पाया? राष्ट्रीय मीडिया और तमाम अखबारों के पत्रकार चुनिंदा मौकों पर गांवों का दौरा करते रहते हैं, क्या उन्होंने भी नहीं देखा कि भारत एक साल के भीतर दस लाख तालाब बनाने के लक्ष्य को हासिल कर रहा है? ऐसा कैसे हो सकता है. मीडिया को अपनी भूमिका के बारे में सोचना चाहिए कि इतनी बड़ी क्रांति उसके नाक के नीचे हो गई और भनक तक नहीं लगी. यही नहीं वित्त मंत्री ने कहा कि पिछले बजट में 10 लाख के करीब कम्पोस्ट के गड्ढे भी बनाने का लक्ष्य था, वित्त मंत्री ने इसका ज़िक्र तो किया मगर इसके पूरे होने के बारे में कुछ नहीं कहा.

वित्त मंत्री के आंकड़ों की सत्यता की जांच तुरंत नहीं की जा सकती है, मगर मान कर चलना चाहिए कि अगर भारत की संसद में उन्होंने दस साल तालाब बनाने का आंकड़ा पेश किया है और अगले वित्त वर्ष में पांच लाख अतिरिक्त तालाब बनाने का लक्ष्य रखा है. यानी दो साल के भीतर भारत में छोटे बड़े आकार के पंद्रह लाख तालाब बन जायेंगे. अगर इसमें सच्चाई है तो इसका श्रेय सरकार को दिया जाना चाहिए. इससे न सिर्फ ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार आएगा बल्कि जनजीवन भी बेहतर हो जाएगा.

हमने बजट की एंकरिंग के दौरान अपने दर्शकों से कहा कि अगर सरकार और विपक्ष इस उपलब्धि का जश्न नहीं मनाती है, तो वे आसपास के गांवों से पता करें और भारत की इस कामयाबी पर सीना चौड़ा करें. ज़ाहिर है जवाब में ट्विटर, व्हाट्स अप और ईमेल से लोगों के बहुत सारे मैसेज आने लगे. इन मैसेज के आधार पर दावा तो नहीं किया जा सकता कि सरकार का आंकड़ा सही नहीं है, मगर संकेत मिलता है कि सरकार को अपने इस आंकड़े की जांच कर लेनी चाहिए. बजट में काफी मुश्किल प्रक्रिया के बाद किसी तथ्य को जगह मिलती होगी, इसलिए जब तक ठोस आंकड़े न हों, मान कर चलना चाहिए कि ऐसा हुआ होगा मगर अफसोस कि किसी ने ऐसा होते नहीं देखा.

मिर्ज़ापुर के बरेवां-चुनार गांव के नवनीत कुमार त्रिपाठी ने ट्वीट किया कि उनके गांव में 3 तालाब हैं जो मई 2014 के बने हैं. खीरी ज़िले के मोहम्मद ने बताया है कि उनके गांव में पांच छह तालाब हैं मगर पहले के बने हुए हैं. उन्हीं में से कुछ तालाबों की खुदाई की गई है. बाराबांकी के किठूरी गांव से शाज़िब अब्बास ने ट्वीट किया है कि तालाब बनाने के दावे हुए हैं, मगर बने नहीं हैं. अमरजीत राय ने खगौल, पटना से ट्वीट किया है कि वहां कोई तालाब नहीं बना है. जालंधर से पवनदीप सिंह ने ट्वीट किया है कि नए तालाब तो नहीं बने हैं, मगर पुराने तालाबों की क्षमता में सुधार किया गया है. रवींद्र सिंह ने ट्वीट किया है कि उनके गांव में पहले से दो तालाब थे, मगर वे सूखे पड़े हैं. बिहार के अररिया ज़िले के ज़ाहिद अनवर ने ट्वीट किया है कि वे गांव जाते रहते हैं मगर वहां, तालाब नहीं देखा है. अंबेडकर नगर यूपी के शरीफपुर गांव के राजेश ने ट्वीट किया है कि उनके गांव में एक ही तालाब है. दस साल से कोई तालाब बनते नहीं देखा.

महाराष्ट्र, झारखंड और तेलंगाना से तालाब बनने के बारे में लोगों ने सूचना दी है. महाराष्ट्र ने अगस्त, 2015 एक लाख तालाब बनाने का दावा किया था. 12 मई, 2016 के बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट है कि महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश ने मनरेगा के तहत 6,700 खेत तालाब बनाने का लक्ष्य लिया है. महाराष्ट्र ने 2016-17 के लिए केवल हज़ार खेत तालाब बनाने का बीड़ा उठाया है वहीं यूपी ने 5,705 खेत तालाब बनाने का लक्ष्य रखा है. आंध्र प्रदेश ने ढाई लाख खेत तालाब बनाने का लक्ष्य रखा था. बिजनेस स्टैंडर्ड ने यह रिपोर्ट लोकसभा मे दिए गए जवाब के आधार पर छापी है. महाराष्ट्र में खेत तालाब बनाने की योजना 2010 से चल रही है. तो क्या किसी दो तीन राज्यों में ही पांच या दस लाख तालाब बन गए. क्या राज्यवार आंकड़े नहीं मिलने चाहिए.

विकास ने लिखा है कि इटावा शहर के पक्का तालाब की सफाई हुई है. रोहतास, बिहार के सौरव कुमार ने लिखा है कि उनके गांव में कोई तालाब नहीं बना है. बिहार के मुज़फ्फरपुर के सकरा ब्लॉक के हारून रशीद ने ट्वीट किया है कि वे अपने गांव में तालाब ढूंढ रहे हैं, मिल नहीं रहा है. वैशाली से शशिरंजन ट्वीट करते हैं कि उनके गांव में एक पुराना तालाब है, मगर नया नहीं बना है. उत्तराखंड से हरेंद्र ने ट्वीट किया है कि उनके गांव में कोई तालाब नहीं बना है. ओडिशा के कोरापट के सिबनंदा से एक ट्वीट आया है कि वहां कई तालाब बने हैं.

इतनी बड़ी संख्या में खेतों में तालाब बन जाएं तो पानी की समस्या का बड़ा हिस्सा दूर हो जाएगा. बारिश के पानी का संचय होगा और जल स्तर बढ़ सकता है. हो सकता है कि लोग खेत तालाब और गांव के बीच में बने तालाब में फर्क न कर पा रहे हों, मगर खेतों में भी इतनी बड़ी संख्या में तालाब का बनना असाधारण घटना है. इस कामयाबी का सही से मूल्याकंन होना चाहिए. प्रधानमंत्री ने मार्च, 2016 के 'मन की बात' में तालाब पर अच्छा खासा ज़ोर दिया था और जागरूक लोगों से अपील की थी कि इसके निर्माण में आगे आएं. इसलिए हमें दस लाख खेत तालाब बनाये जाने के दावे की जांच भी करनी चाहिए. भारत के स्तर से कुछ हज़ार फर्ज़ी निकल सकते हैं मगर यह आंकड़ा सात आठ या नौ लाख भी है तो इसका जश्न मनाना चाहिए. इस एक कदम से सरकार ने इस देश को क्या दिया है, अगर वह सही है, तो इसका अंदाज़ा उसे भी नहीं है.

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