लोकसभा में चर्चा के दौरान अमित शाह ने कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी से सीधा सवाल किया था- ''मैं मनीष जी से कहना चाहता हूं कि उन्होंने अभी तक यह साफ नहीं किया है कि कांग्रेस अनुच्छेद 370 को खत्म करने के पक्ष में है या नहीं. कृपया स्पष्ट करें.'' अमित शाह की इस बात के जवाब में मनीष तिवारी ने कहा, ''अंग्रेजी की एक किताब है... हर चीज काली या सफेद नहीं होती... देअर आर '50 शेड्स ऑफ ग्रे' इन बिटविन.'' अपने जवाब में कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने पार्टी का स्टैंड बता दिया था. यह सीधा जवाब नहीं था कि कांग्रेस जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के पक्ष में है या नहीं. और जब सदन में ही कांग्रेस का स्टैंड क्लियर नहीं था तो बाहर कैसे होता.
कांग्रेस के दो वरिष्ठ नेताओं के बयान ने पार्टी के भीतर के घमासान को लोगों के बीच ला दिया. पार्टी के वरिष्ठ नेता जनार्दन द्विवेदी ने कहा था कि सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को समाप्त कर 'ऐतिहासिक भूल' को सुधार लिया है. जाहिर सी बात है जनार्दन द्विवेदी का यह बयान सरकार के पक्ष में था जो पार्टी के वरिष्ठ नेता गुलमा नबी आजाद को नागावार गुजरा. उन्होंने प्रेस से बातचीत में कहा कि जो कांग्रेस और जम्मू-कश्मीर का इतिहास नहीं जानते हैं उन्हें पहले कांग्रेस और जम्मू-कश्मीर का इतिहास पढ़ लेना चाहिए. गुलाम नबी आजाद के इस बयान से उनका गुस्सा साफ झलक रहा था. सदन में बयान देने के दौरान भी उनका यही हाल था.
गुलाम नबी आजाद के बयान से उनकी नाराजगी साफ झलक रही थी
लोकसभा में चर्चा के दौरान कांग्रेस अपने ही पाले में गोल कर बैठी. दरअसल गृहमंत्री अमित शाह ने लोकसभा में जम्मू-कश्मीर राज्य पुनर्गठन बिल पेश किया और चर्चा की शुरूआत की. कांग्रेस की ओर से सदन में पार्टी के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कमान संभाली. अपने भाषण में अधीर रंजन चौधरी ने जम्मू-कश्मीर मसले को भारत-पाकिस्तान के बीच का मामला बताते हुए इसके यूएन में होने का जिक्र कर दिया. अधीर रंजन चौधरी जब यह बात कह रहे थे उस समय कांग्रेस नेता सोनिया गांधी भी उनकी बातों से सहमत नहीं दिख रहीं थी. वैसे सदन में ही यह प्रस्ताव पहले से पास किया हुआ है कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है. फिर इसमें पाकिस्तान या यूएन का जिक्र क्यों? क्या कांग्रेस का स्टैंड सदन में पास किए हुए प्रस्ताव से अलग है? अमित शाह ने सदन में स्पष्ट कहा कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और जब मैं जम्मू-कश्मीर की बात करता हूं तो उसमें पीओके और अक्साई चीन भी शामिल है.
कांग्रेस के दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी सरकार के फैसले का समर्थन किया था
अनुच्छेद 370 के पक्ष में कांग्रेस के ज्योतिरादित्य सिंधिया, दीपेंद्र हुड्डा का भी बयान चर्चा का विषय बना. कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य एवं मुख्य सचेतक भुवनेश्वर कालिता ने भी पार्टी के रुख का विरोध करते हुए सदन की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. पूरे सत्र में जितने भी महत्वपूर्ण बिल पेश किए गए किसी भी बिल पर कांग्रेस का वह स्टैंड नहीं दिखा जो एक विपक्ष की भूमिका निभाने वाली पार्टी का होना चाहिए था. पूरे सत्र में कांग्रेस एक नेतृत्व विहीन बिखरी हुई पार्टी के रूप में नजर आई.
जम्मू-कश्मीर में क्या हो रहा है और क्या होने वाला है इस पर सारी दुनिया की नजर लगी हुई थी. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने अमेरिका दौरे पर वहां राष्ट्रपति से कश्मीर मसले पर मध्यस्थता की अपील कर दी. ट्रंप का भी बयान आया कि अगर दोनों देश तैयार हों तो अमेरिका को मध्यस्थ बनने में कोई परेशानी नहीं है. हालांकि बाद में अमेरिका की तरफ से इसपर खंडन भी आ गया जिसमें कहा गया कि कश्मीर का मसला भारत-पाकिस्तान के बीच का मसला है और अमेरिका इससे अलग है. इस बीच जम्मू-कश्मीर में अर्धसैनिक बलों की संख्या बढ़ा दी गई. इसके बाद मीडिया में इस खबर की चर्चा जोरों पर चलने लगी कि कश्मीर में कुछ बड़ा होने वाला है. देशभर में यह चर्चा का विषय बना हुआ था लेकिन आश्चर्य कि बात यह दिखी कि कांग्रेस इस मसले पर सदन में पार्टी की रणनीति क्या होगी, यह तय नहीं कर पाई. तो क्या देश के तमाम बड़े मसलों पर कांग्रेस सिर्फ विरोध की रस्मअदायगी कर रही है या फिर एनडीए की रणनीति के सामने विवश हो गई है?
(सुरेश कुमार ndtv.in के एडिटर हैं.)
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