केंद्रीय मानव संसाधन विकासमंत्री स्मृति ईरानी के वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई को दिए इंटरव्यू की काफी चर्चा है, खासतौर से सोशल मीडिया पर। ट्विटर पर स्मृति ईरानी के प्रशंसकों और बीजेपी के समर्थकों की प्रतिक्रिया देखकर लगता है कि यह इंटरव्यू उनके लिए काफी दिल खुश करने वाला है, क्योंकि इसमें ईरानी, सरदेसाई के हर सवाल का करारा जवाब देती ही नहीं दिखती, बल्कि जाने माने पत्रकार के ऊपर तीखे हमले भी करती हैं। वह काफी हद तक अपने खिलाफ मीडिया के तथाकथित पक्षपातपूर्ण रवैये को उजागर करने की कोशिश करती हैं और उसका बदला लेती हुई दिखती हैं। खुद राजदीप सरदेसाई इंटरव्यू के दौरान और आखिर में ईरानी की तारीफ करते हैं।स्मृति ईरानी के हमलावर तेवरों के बावजूद मानव संसाधन विकास मंत्रालय और ईरानी के काम पर नज़र डालें तो कई सवालों के जवाब दिए जाने बाकी हैं। स्मृति ईरानी भले ही इस इंटरव्यू में बोलने की कला में माहिर नेता दिखती हों, लेकिन कम से कम मानव संसाधन विकास मंत्री के तौर पर ऐसे कई सवाल हैं जो उनके सामने खड़े हैं। जर्मन भाषा का विवादसरकारी स्कूलों (केंद्रीय विद्यालयों) में तीसरी भाषा के रूप में जर्मन को हटाए जाने के फैसले पर जब मंत्री से सवाल किया गया, तो उन्होंने उलट कर सवाल पूछ रहे सरदेसाई से बार-बार कहा कि क्या जर्मन हमारे देश की तीसरी भाषा है। जब सरदेसाई दूसरे सवाल को ओर बढ़ गए तो भी ईरानी बार-बार व्यंगात्मक अंदाज़ में कहती रही, 'आपने मुझे अब तक नहीं बताया कि क्या जर्मन देश की तीसरी भाषा है।'इस मौके पर जो सवाल मानव संसाधन विकास मंत्री से पूछा जाना चाहिए था वह है कि स्मृति जी जर्मन को हटा कर बच्चों को कौन सी भाषा पढ़वाना चाहती थी, या जर्मन को क्यों हटवाना चाहती थीं? वह जिस अधिकार का इस्तेमाल कर केंद्रीय विद्यालयों से जर्मन भाषा (या किसी भी विदेशी भाषा) को हटा रही हैं, क्या वैसा वह निजी स्कूलों के बच्चों साथ कर सकती हैं जो उसी सीबीएसई बोर्ड के तहत आते हैं जिसके तहत केंद्रीय विद्यालय। क्या सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे मध्य या निम्न मध्य वर्ग (या फिर गरीब बच्चों पर) पर ही मंत्रियों के सरकारी फरमान चलते हैं।किसी भाषा को सीखने या न सीखने का विकल्प बच्चों के पास होना चाहिये न कि मंत्री जी के पास। आज दुनिया के तमाम स्कूलों में वह भाषायें सिखाई जा रही हैं, जो बच्चों के लिए रोज़गार दिलाने वाली या उन्हें समाज में पेशेवर रूप से मज़बूत होने के लिए तैयार कराने वाली हैं। यूरोप और एशियाई देशों में जर्मन, फ्रेंच, स्पेनिश या मंडेरिन (चाइनीज़) जैसी भाषाएं सीखना आम है और यह हमारे देश के बहुत सारे निजी स्कूल भी कर रहे हैं। हम अपने बच्चों को भविष्य के लिए तैयार होने की आज़ादी और ताकत देंगे या फिर संस्कृत और लैटिन जैसी निर्जीव हो चुकी भाषायें सीखने को कहेंगे।          चार साल का कोर्स (FYUP) दिल्ली विश्वविद्यालय के चार साल के कोर्स (FYUP) को लेकर हुए विवाद के बारे में पूछे जाने पर ईरानी कहती हैं कि उन्होंने करीब 44 पाठ्यक्रमों से जुड़े 77 हज़ार बच्चों के करियर को बरबाद होने से बचाया। इसके लिए वह यूजीसी कानून का हवाला देती दिखती हैं और FYUP को गैरकानूनी बताती हैं, लेकिन ये भी सच है कि दिल्ली विश्वविद्यालय के वीसी दिनेश सिंह हों या यूजीसी के चेयरमैन वेद प्रकाश दोनों ही FYUP के पक्ष में रहे। जब यह कोर्स लाया गया तो मंत्रालय के सचिव अशोक ठाकुर भी इसके पक्ष में थे।असल में चर्चा कांग्रेस सरकार के उस तौर तरीके पर होनी चाहिए, जिसके आधार पर वह FYUP का बदलाव डीयू में लाई, लेकिन मंत्री ईरानी ने तो FYUP को हटाने के साथ साथ वीसी दिनेश सिंह के साथ एक निजी लड़ाई शुरू कर दी और पिछले एक साल से उसी में लगी रहीं। कभी दिनेश सिंह के इनोवेटिव और क्रांतिकारी विचारों की तारीफ करते न थकने वाले यूजीसी के चेयरमैन वेद प्रकाश अभी ईरानी के साथ मिलकर सिंह के खिलाफ मुहिम चलाए हुए हैं।मंत्री जी कहती हैं कि वह बातचीत का रास्ता अपनाती हैं न कि तुगलकी फरमान का। ऐसे में FYUP के सही-गलत में न पड़ते हुए यह तथ्य तो बताया ही जा सकता है कि हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूरे देश में शिक्षा की आधुनिकता और बदलाव की बात करते हैं और वह एजुकेशन के ग्लोबलाइजेशन का नारा देते हैं।  ऐसे में स्मृति ईरानी को यह ज़रूर बताना चाहिए कि विदेशी पाठ्यक्रम से मेल खाने वाले FYUP को लागू कराने के लिए यूजीसी कानून में बदलाव की ज़रूरत थी या नहीं?शिक्षा की गुणवत्ता के लिए ईरानी ने मीडिया में मैसिव ओपन ऑन लाइन कोर्सेज़ (MOOC) लॉन्च करने की बात कही है जो एक अच्छी कोशिश हो सकती है, लेकिन सरकार के पास उम्दा दरजे के टीचर तैयार करने के लिए क्या कोई योजना है? मंत्रालय/ उच्च संस्थानों में गड़बड़ियां स्मृति ईरानी अपने ओएसडी संजय कचरू के बारे में खुद साफ कुछ नहीं कहती। बस इतना बताती हैं कि उन्हें कचरू को हटाने के आदेश नहीं मिले हैं। लेकिन कचरू या काकोडकर या फिर शिवगांवकर के मामले में न भी पड़ा जाये तो कई और अधिकारियों की नियुक्ति और मौजूदगी सवाल खड़े करने वाली है।पहले एडीशनल सेक्रेटरी रह चुकी ब्यूरोक्रेट अमिता शर्मा अभी टैक्निकल एजुकेशन (क्वालिटी इम्प्रूवमेंट प्रोग्राम) के सलाहकार पद पर हैं, लेकिन क्या उनके पास खुद इस पद की कोई अर्हता है? मंत्रालय के आला अधिकारियों ने ही इस पद पर उनकी नियुक्ति के वक्त विरोध किया। आरोप तो यह भी हैं कि टैक्निकल एजुकेशन पर काम करने के बजाय शर्मा, मंत्री के दफ्तर में ही अधिक काम देख रही हैं और दूसरे अधिकारियों के काम में दखल दे रही हैं।दूसरा मामला उच्च शिक्षा के सचिव एसएन मोहंती का है जो जगन मोहन रेड्डी के आय से अधिक संपत्ति के मामले में आरोपी नंबर -3 हैं। इस मामले में उन्हें नियमित रूप से अदालत में पेश होना पड़ता है। इस सरकार में वह अकेले चार्जशीटेड सेक्रेटरी हैं और उनकी नियुक्ति खुद ईरानी के मंत्री रहते हुई। क्या स्मृति ईरानी ऐसे व्यक्ति के सचिव पद पर होने को सही मानती हैं?तीसरा मामला, आईआईटी खड्गपुर के डायरेक्टर प्रो. पीपी चक्रवर्ती का है। चक्रवर्ती को सीवीसी ने 40 करोड़ रुपये के कोलनेट प्रोजेक्ट में तथ्यों को गलत तरीके से पेश करने का दोषी पाया है। उस वक्त चक्रवर्ती आईआईटी खड्गपुर के डीन हुआ करते थे। (इस प्रोजेक्ट पर सीएजी ने भी ये सवाल खड़े किए कि 40 करोड़ रुपये खर्च करके कुछ हासिल नहीं हुआ)। कांग्रेस सरकार ने चक्रवर्ती को इस सब के बावजूद 2013 में आईआईटी खड्गपुर का डायरेक्टर बनाया और स्मृति ईरानी के वक्त में तो उन्हें आईआईटी पटना के निदेशक का अतिरिक्त कार्यभार भी दिया गया। मंत्री जी बताएंगी कि क्या उनके हिसाब से यह सही है?चौथा मामला, मंत्रालय के सीवीओ डॉ. सुखबीर सिंह संधू का है। संधू के पास भारी भरकम मानव संसाधन विकास मंत्रालय के मुख्य सतर्कता अधिकारी का काम है, जो एक फुल टाइम पद है और जिस अधिकारी का काम पूरे मंत्रालय में भ्रष्टाचार के मामलों पर नज़र रखना है। इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी के बावजूद संधू को दो अन्य विभागों में (सेंट्रल यूनिवर्सिटी के साथ-साथ एडमिन और कॉर्डिनेशन) के ज्वाइंट सेक्रेटरी का भी काम दिया गया है। इसके अलावा उन्हें वक्त बेवक्त कई विश्वविद्यालयों का वाइस चांसलर बनाया जाता है। मंत्री जी क्या यह बताएंगी कि मंत्रालय के फुल टाइम सीवीओ को यह अतिरिक्त जिम्मेदारी देना क्या ठीक है?  जहां एक ओर सवालों से घिरे कई अधिकारी उच्च पदों पर हैं, वहीं आईआईटी खड़गपुर के प्रोफेसर राजीव कुमार – जिनकी कोशिशों से आईआईटी की प्रवेश परीक्षा प्रणाली में कई सुधार हुये और कई गड़बड़ियों का पता चला - को राहत देने के लिए स्मृति ईरानी ने कुछ नहीं किया, बल्कि स्मृति ईरानी के मंत्री बनने के बाद राजीव कुमार को आईआईटी खड्गपुर ने जबरन रिटायरमेंट लेने की पेनल्टी लगा दी। इस प्रोफेसर को आईआईटी खड़गपुर में पिछले कई सालों से प्रताड़ित किया जाता रहा लेकिन मंत्रालय के सीवीओ के आदेश को मंत्रालय के ही चार्जसीटेड सेक्रेटरी ने अटका दिया और इस बीच आईआईटी ने कुमार के खिलाफ जबरन रिटायरमेंट की पेनल्टी लगा दी। कई पद खाली जब स्मृति ईरानी एक साल पहले मंत्री बनी थी तो कोई डेढ़ दर्जन विश्वविद्यालयों में वीसी का पद खाली पड़ा था, जिनमें में ज्यादातर अब भी खाली ही हैं। ईरानी के पदभार संभालने के एक साल बाद भी मंत्रालय कई उच्च पदों पर नियुक्तयां नहीं कर पाई है। मिसाल के तौर पर AICTE, NCERT और CBSE के चेयरमैन के पद खाली हैं और इन पदों पर नियुक्ति कब होगी किसी को पता नहीं। इतना ज़रूर है कि स्मृति ईरानी एक अभिनेत्री से तेज़तर्रार नेता बन गई हैं और वह खुद कहती हैं कि वह कोई पॉलिटिकल सिंड्रेला (सियासी रूप से भोली भाली राजकुमारी) नहीं हैं। लेकिन स्मृति ईरानी जी को ये तो पता होना ही चाहिये कि तेज़तर्रार नेता और एक अनुभवी और मंझे हुए मंत्री होने का फासला काफी लंबा होता है जो उन्हें तय करना बाकी है।