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This Article is From Nov 13, 2018

किसानों से किए गए वादे कितने पूरे होते हैं?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    नवंबर 13, 2018 22:57 pm IST
    • Published On नवंबर 13, 2018 22:57 pm IST
    • Last Updated On नवंबर 13, 2018 22:57 pm IST
क्या आपने किसी दोस्त या पड़ोसी से पूछा है कि वह रोज़ शाम को हिन्दी न्यूज़ चैनलों पर हिन्दू मुस्लिम डिबेट क्यों देखता है. इससे पहले कि इस तरह के डिबेट देखते देखते वह दंगाइयों की भीड़ में शामिल होने के लिए निकल जाए, दोस्ती और पड़ोसी का फर्ज़ अदा कीजिए. उससे पूछिए कि कहीं तुम हिन्दू मुस्लिम डिबेट तो नहीं देखते हो. न्यूज चैनल पर इस तरह के डिबेट दिखाने की सनक सवार हो गई है. उनसे पूछने से कोई फायदा नहीं इसलिए आप रेल में चलते हुए, बस में चलते हुए, बाज़ार में चाय की दुकान पर अपने साथ वाले से ज़रूर पूछें कि क्या आप न्यूज़ चैनलों पर हिन्दू मुस्लिम डिबेट देखते हैं. यह एक प्रोजेक्ट है. नौजवान डॉक्टर बनना चाहता है, हिन्दू मुस्लिम प्रोजेक्ट उन्हें दंगाई बनाना चाहता है. इस प्रोजेक्ट का एक ही मकसद है कि आप नफरत की बातों से सामान्य होने लगें. घर बैठे-बैठे दंगाई मानसिकता के हो जाएं और जब बिहार के सीतामढ़ी में एक 83 साल का बुजुर्ग ज़ैनुल अंसारी साइकिल से उतार कर मार दिया जाए, जला दिया जाए तो आपको फर्क ही न पड़े. क्या आप अपने बच्चों को हिन्दू मुस्लिम डिबेट दिखाना चाहेंगे, एक बार सोच लीजिएगा. शायद आप बच्चों को डॉक्टर बनाना चाहते हैं. दंगाई नहीं. अब आते हैं आज के विषय पर.

हमने पिछले कई सालों में किसानों के कई आंदोलन देखे. 29-30 इस आंदोलन के केंद्र में दो मुद्दे प्रमुख रूप से रहे. फसलों का सही दाम दिया जाए और फसल बिकने की व्यवस्था सही की जाए. मोदी सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य को अपने वादे के हिसाब से लागत से डेढ़ गुना देने का दावा करती है लेकिन तथ्य कुछ दूसरे भी होते हैं. इंडियन एक्सप्रेस में न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर आप हरीश दामोदरन की रिपोर्ट देखते रहिए. सरकार जो कहती है, उससे अलग पता चलेगा. हमारे सहयोगी अनुराग द्वारी ने ही सरकारी मूल्य और किसानों के बीच की खाई को लेकर रिपोर्ट की है. किसानों का लांग मार्च मुंबई भी पहुंचा और दिल्ली भी कई बार आया. सरकार ने जो किया वो किया, क्या किसानों के साथ खड़े होने का दावा करने वाले विपक्षी दलों ने किसानों को सरकार से कुछ ज्यादा या अलग समझा है. क्या छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश के घोषणापत्रों को देखते हुए ऐसा लगता है कि कांग्रेस किसानों के मसले को बेहतर समझ रही है और सुलझाने का कोई ठोस दावा कर रही है. बीजेपी के घोषणा पत्र में जो दावा है वो फिर आसमानी दावा है या ऐसा क्या नया है जो इन राज्यों में 15 साल से सरकार चलाते हुए बीजेपी नहीं कर पाई. क्या जो वह दावा कर रही है इन 15 साल के दौरान में किसानों के लिए नहीं कर सकती थी.

हमारे सामने छत्तीसगढ़ भाजपा का 2013 और 2018 का घोषणा पत्र है. अब हम देख सकते हैं कि भाजपा ने किसानों के लिए क्या वादे तब किए थे, क्या नए घोषणापत्र में उनके पूरे होने की जानकारी है, नए घोषणापत्र में नया वादा क्या है. 2013 में बीजेपी ने वादा किया था 'धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2100 की पहल करेंगे. 300 रुपये प्रति क्विंटल बोनस देंगे. किसानों के एक एक दाना धान की खरीदी होगी. किसानों को किसानी हेतु ब्याज़ मुक्त ऋण देने का वादा था. जैविक कृषि को प्रोत्साहन देंगे. पांच साल में छत्तीसगढ़ को दुग्ध उत्पादन में सरप्लस स्टेट बनाने का लक्ष्य है.'

क्या छत्तीसगढ़ में 2013-18 के बीच किसानों को बोनस मिलाकर 2400 प्रित क्विंटल का भाव मिला है? इस वक्त छत्तीसगढ़ में धान के लिए 1750 रुपये प्रति क्विंटल दिया जाता है. बोनस के तौर पर 300 रुपये दिए जाते हैं. इस तरह से किसानों को एक क्विंटल धान का 2050 रुपया ही होता है. न तो यह 2400 है और न ही 2100.

क्या किसानों को बोनस मिलता है, कितने किसानों को बोनस मिला है. 5 नवंबर 2018 के बिजनेस स्टैंडर्ड में आर कृष्णा दास की रिपोर्ट है कि छत्तीसगढ़ में इस साल 300 रुपये प्रति क्विंटल बोनस देने की घोषणा हुई है. वादा तो 2013 में देने का था, क्या पहले भी 300 रुपया बोनस दिया गया या सिर्फ चुनावी साल में 300 रुपया बोनस देने का एलान हुआ. क्या किसानों को इस साल भी 300 रुपया प्रति क्विंटल बोनस मिल रहा है. 2018 के घोषणा पत्र में बीजेपी ने बताया है कि बीजेपी सरकार ने 15 साल में धान और बोनस राशि मिलाकर किसानों को 76,000 करोड़ दिए हैं. यानी हर साल सिर्फ धान की खरीद पर 5066 करोड़ खर्च किया. कुल कृषि का बजट ही है 2017-18 1887 करोड़ रुपये. 2003-4 में खेती का बजट 183.98 करोड़ था.

यह लिखा है कि राज्य में सिंचाई पंपों की संख्या 72000 से बढ़कर 5 लाख तक पहुंच गई है और किसानों को बिना ब्याज़ के ऋण उपलब्ध कराया गया है. बीजेपी ने कहा है कि 7.3 लाख किसानों ने ब्याज़ मुक्त ऋण का लाभ उठाया है. इसके लिए राज्य सरकार ने 184 करोड़ का अनुदान दिया है. 2017 दिसंबर में छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री ने विधानसभा में जवाब दिया था कि पिछले ढाई साल में 1344 किसानों ने आत्महत्या की है. इस बार बीजेपी ने वादा किया है कि 'किसानों को बिना ब्याज़ का ऋण दिया जाएगा. किसानों के धान और मक्के की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी की उचित व्यवस्था, किसानों को 300 रुपये प्रति क्विंटल धान पर बोनस. सभी मंडियों को ई-नाम से जोड़ा जाएगा. ई नाम पर 100 फीसदी व्यापार सुनिश्चित किया जाएगा. 27 ज़िलों में ग्रामीण कृषि बाज़ार की स्थापना की जाएगी.'

हर ज़िले में कोल्ड स्टोरेज बनाने की बात कही गई है. कितने ज़िले में कोल्ड स्टोरेज बने हैं, इसकी जानकारी नहीं है. 60 साल से ऊपर की उम्र के लघु और सीमांत किसानों और भूमिहीन कृषि मज़दूरों को 1000 रुपये की मासिक पेंशन दी जाएगी. क्या यह कोई अलग बात है, क्या पहले नहीं दी जाती रही है, जो पहले दी जाती थी उस समय पेंशन की राशि क्या थी. 2013 के घोषणा पत्र में भी था कि छत्तीसगढ़ को दुग्ध उत्पादन में सरप्लस स्टेट बनाएंगे. 2018 के घोषणा पत्र में लिखा है कि दुग्ध क्रांति अभियान चलाया जाएगा. 2013 के वादे का क्या हुआ. क्या छत्तीसगढ़ दुग्घ उत्पादन में सरप्लस स्टेट बन पाया. 2013 में बीजेपी ने कहा था कि छत्तीसगढ़ को कृषि राजधानी बनाएंगे, क्या ऐसी कोई राजधानी बनी, और ये कहां है. 2018 में चोटी के पांच राज्यों में छत्तीसगढ़ नहीं है.

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का वादा देख लेते हैं. सरकार बनने के दस दिनों के भीतर किसानों का कर्ज़ा माफ कर दिया जाएगा. यह साफ नहीं है कि कर्ज़ा माफ करने की शर्तें क्या होंगी, किस राशि तक का कर्ज़ा माफ होगा. किसानों के दो साल के धान का बकाया बोनस किश्तों में किया जाएगा. धान की खरीद की न्यूनतम दर 2500 प्रति क्विंटल, मक्का के लिए 1700 रुपये प्रति क्विंटल, सोयाबीन की खरीद की न्यूनतम दर 3500 रुपये प्रति क्विंटल, गन्ना की खरीद की न्यूनतम दर 355 रुपये प्रति क्विंटल है, चना की खरीद की न्यूनतम दर 4700 रुपये प्रति क्विंटल है.

जुलाई में केंद्र सरकार ने जिन फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य जारी किए हैं, उससे हमने कांग्रेस के घोषणा पत्र में मिलाकर देखा है कि क्या कांग्रेस ज्यादा दाम का वादा कर रही है. धान का कुल न्यूनतम समर्थन मूल्य 1750 रुपये प्रति क्विंटल है. कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ में 2500 प्रति क्विंटल देने का वादा किया है. केंद्र सरकार ने मक्का के लिए 1700 रुपये प्रति क्विंटल भाव तय किया है. कांग्रेस छत्तीसगढ़ में 1700 रुपये प्रति क्विंटल देने का वादा करती है. केंद्र सरकार ने सोयाबीन के लिए 3399 रुपये प्रति क्विंटल का भाव रखा है. कांग्रेस ने सोयाबीन का 3500 रुपये प्रति क्विंटल न्यूनतम समर्थन मूल्य देने का वादा किया है.

मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने कहा है कि सभी किसानों का 2 लाख का कर्ज़ा माफ होगा. मंडियों में समर्थन मूल्य से नीचे नहीं बिकने देंगे. गेहूं, धान, ज्वार, मक्का, सोयाबीन सरसों, कपास जैसे कई फसलों पर बोनस देगी. कांग्रेस ने नवीन फसल बीमा की बात की है. फसल बीमा की इकाई खेत रहेगा. किसान अलग रहना चाहते हैं तो अलग हो सकते हैं. बिना कर्ज़ लिए खेती करने वाले भी फसल बीमा से जुड़ेंगे. ग्रामसभा की अनुशंसा पर फसल बीमा का लाभ किसानों को मिलेगा.

कांग्रेस ने सरदार बल्लभ भाई पटेल किसान पुत्र स्वावलंबन योजना लॉन्‍च की है. किसी ने नोटिस नहीं किया कि कांग्रेस के घोषणापत्र में गौ मूत्र ही नहीं, सरदार वल्लभ भाई पटेल के नाम पर एक योजना भी आ गई है. इसके तहत गांवों में रहने वाले बेरोज़गार युवकों को पशुपालन डेयरी जैसे काम के लिए सस्ते दर पर कर्ज़ देंगे. उन्हें 1 करोड़ तक का ऋण दिलाएंगे और सिंचाई कर में छूट देंगे, वे अपना उत्पाद कहीं भी बेच सकेंगे और मंडी कर नहीं लगेगा.

कांग्रेस का एक और वादा है. दुग्ध उत्पादक संघ के माध्यम से दुग्ध उत्पादकों को 5 रुपये प्रति लीटर बोनस देंगे. कांग्रेस ने भी छत्तीसगढ़ में बीजेपी की तरह मध्यप्रदेश के 60 साल से अधिक उम्र के किसानों को 1000 मासिक पेंशन देने का वादा किया है. हमने सारी बातें तो यहां नहीं लिखी है लेकिन इन घोषणा पत्रों को पढ़ते हुए क्या यह समझा जा सकता है कि किसानों की समस्या को लेकर कांग्रेस और बीजेपी कुछ ठोस समाधान पेश कर रही हैं. इनकी समझ में विस्तार हो रहा है.

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