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पहाड़ों को बचाने के लिए कितना जरूरी है जंगलों को सहेजा जाना

हिमांशु जोशी
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    सितंबर 08, 2025 13:06 pm IST
    • Published On सितंबर 08, 2025 13:04 pm IST
    • Last Updated On सितंबर 08, 2025 13:06 pm IST
पहाड़ों को बचाने के लिए कितना जरूरी है जंगलों को सहेजा जाना

उत्तराखंड पिछले कुछ सालों से प्राकृतिक आपदाओं की चपेट में बार-बार आ रहा है. इस साल तो लगातार आईं आपदा की खबरों ने हिमालयी राज्य को लेकर चिंता बढ़ा दी है. उत्तराखंड देश के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि यहां के हिमालय ही पूरे देश के मौसम की स्थिति तय करते हैं. धराली में अचानक आई बाढ़ ने 150 से अधिक घरों, दुकानों और मंदिरों को तहस-नहस कर दिया. कई लोग अभी भी लापता हैं. रुद्रप्रयाग में छेनागाड़ गांव पूरी तरह तबाह हो गया और अब केदारनाथ के पीछे पहाड़ी से टूट रहे ग्लेशियर को सही संकेत नहीं बताया जा रहा है. विशेषज्ञ इसके लिए राज्य में चल रहे अंधाधुंध निर्माण कार्यों और इसके लिए पहाड़ काटने को जिम्मेदार बता रहा है. 

ऑल वेदर रोड पर उठते सवाल

इन आपदाओं के बाद विशेषज्ञ ऑल वेदर रोड परियोजना पर सवाल उठा रहे हैं. यह परियोजना उत्तराखंड के चार धामों, केदारनाथ, बद्रीनाथ, यमुनोत्री और गंगोत्री तक साल भर सड़क मार्ग से सुगम पहुंच बनाने के लिए शुरू की गई थी. हिमालय की संवेदनशील ढलानों पर इस तरह के बड़े निर्माण कार्य से भूस्खलन और ढलान अस्थिरता का खतरा बढ़ गया है. सड़क में कई जगह पर लगातार भारी भूस्खलन हो रहा है. लगातार यह मार्ग कहीं न कहीं अवरुद्ध रहा है.

सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में इस परियोजना के पर्यावरणीय प्रभावों को मॉनिटर करने के लिए 'ऑल वेदर रोड कमेटी' का गठन किया था. इस कमेटी के अध्यक्ष रवि चोपड़ा बनाए गए थे. वह एक प्रतिष्ठित पर्यावरणविद और हिमालयी पारिस्थितिकी के विशेषज्ञ हैं. वो उत्तराखंड स्थित 'पीपुल्स साइंस इंस्टीट्यूट' के निदेशक भी हैं. रवि चोपड़ा की अध्यक्षता वाली कमेटी ने कहा था कि सड़क चौड़ीकरण से पहाड़ी ढलानों पर अस्थिरता बढ़ सकती है. इससे प्राकृतिक आपदाओं का खतरा बढ़ सकता है. रवि चोपड़ा ने फरवरी 2022 में कमेटी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था. उनका कहना था कि परियोजना की तीव्र गति के चलते उनकी सिफारिशों को नजरअंदाज किया गया.

भविष्य की चुनौतियां क्या हैं

देहरादून की दून लाइब्रेरी में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान रवि चोपड़ा से मुलाकात हुई. इस दौरान मैंने उनसे पूछा कि ऑल वेदर रोड को 5.5 मीटर चौड़ा करने की आपकी सिफारिश को दरकिनार कर उसे 10 मीटर किया गया, इससे पर्यावरण को रहे नुकसान को अब आगे कम कैसे किया जा सकता है!

इस सवाल पर रवि चोपड़ा ने कहा कि वो हमारी राय नहीं थी कि आप साढ़े पांच मीटर चौड़ी सड़क बनाएं. उन्होंने बताया कि सड़क परिवहन मंत्रालय का अपना प्लानिंग डिविजन है. इस इस डिविजन ने 2018 में पिछले पांच साल का विश्लेषण करते हुए यह निष्कर्ष निकाला था कि पहाड़ों में दस मीटर चौड़ी सड़क उपयुक्त नहीं है. इसके कारण बहुत नुकसान हुआ है. जंगल कटे हैं, ढलान कमजोर हुई, कई भूस्खलन हुए और लोगों की जान गई. इसलिए पहाड़ों में कम चौड़ाई वाली सड़कें बनानी चाहिए. मतलब वो तो उनके विशेषज्ञ थे. उन्होंने पांच साल के अध्ययन का विश्लेषण कर यह सिफारिश की थी. लेकिन उसको अहमियत नहीं ही गई. ऐसे में सवाल उठता है कि क्यों? उन्होंने अपनी ही पूरी जानकारी और रिपोर्ट को नजरअंदाज क्यों कर दिया, न कमेटी को बताया, न किसी को, न राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) को. अब हम देख रहे हैं कि लगातार घटनाएं हो रही हैं.

क्या पहाड़ों का बचाएंगे जंगल

चोपड़ा कहते हैं कि इन दिनों हो रही प्राकृतिक आपदाओं को रोकना है तो सबसे पहले, हमें अपने जंगलों को सुरक्षित करना होगा. उन्होंने कहा कि जंगलों को फैलाना और संरक्षित करना हमारी पहली जिम्मेदारी है. दूसरी जिम्मेदारी यह है कि हम प्रकृति के नियमों का उल्लंघन न करें. प्रकृति की सीमाएं बाध्य हैं और हमने उन्हें काफी हद तक समझा है. उदाहरण के तौर पर 'इंडियन रोड कांग्रेस' का मानना है कि 30 डिग्री ढाल से ज्यादा सड़क काटना नहीं चाहिए. अगर हम सत्तर डिग्री ढाल काट रहे हैं, तो इसका पालन करना चाहिए.

इंडिया रोड्स कांग्रेस (Indian Roads Congress) भारत का मुख्य पेशेवर संस्थान है जो सड़क और हाइवे निर्माण, डिजाइन, रखरखाव और सड़क परिवहन से जुड़ी तकनीकी मानकों और दिशा-निर्देशों को निर्धारित करता है. इसे 1934 में स्थापित किया गया था. इसका मुख्य उद्देश्य भारत में सड़क निर्माण की गुणवत्ता, सुरक्षा और दक्षता सुनिश्चित करना है.

रवि चोपड़ा बताते हैं कि 2020 में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई थी. जस्टिस नरीमन ने आदेश दिया कि अब सभी सड़कें 5.5 मीटर होंगी. जहां की सड़क 10 मीटर से ज्यादा हो गई है, वहां सुरक्षा दीवार बनानी होगी. हाल ही में भूवैज्ञानिक डॉक्टर नवीन जुयाल और डॉक्टर हेमंत ध्यानी ने पूरे भागीरथी इको-सेंसिटिव जोन का अध्ययन कर हर किलोमीटर की रिपोर्ट तैयार की है. विशेषज्ञों ने रिपोर्ट दी है, उस पर काम करना है या नहीं करना, आपका अधिकार है. लेकिन हम कहेंगे कि आपको करना चाहिए.

जागरूक होती जनता

रवि चोपड़ा कहते हैं अब पहली बार लग रहा है कि लोग अपने हिमालय को लेकर जागरूक हो रहे हैं.
पांच अगस्त को जिस धराली में भयावह हादसा हुआ. उसके पीछे देवदार का जंगल है. पहले स्थानीय लोग कहते थे कि सड़क निकल जाए तो ठीक है, लेकिन अब कई लोग चाहते हैं कि जंगल बचा रहे. देवदार के पेड़ यदि लगाए जाते हैं, तो भूस्खलन कम होता है क्योंकि उनकी जड़ें गहरी होती हैं. इससे यह पेड़ बड़ी चट्टानों को रोकते हैं. हमारे पास कई चित्र भी हैं, जहां बड़ी चट्टानें इन पेड़ों के पीछे रुकी हुई हैं.

अस्वीकरण: इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी हैं, उससे एनडीटीवी का सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है.

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