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हरिद्वार में फ्लाईओवरों के नीचे एक समानांतर दुनिया

Himanshu Joshi
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जुलाई 25, 2024 09:39 am IST
    • Published On जुलाई 25, 2024 09:34 am IST
    • Last Updated On जुलाई 25, 2024 09:39 am IST

इन दिनों पूरे देश में कांवड़ मेला किसी न किसी वजह से चर्चा में बना हुआ है. कांवड़ियों और उनके मार्ग में पड़ रहे दुकानदारों पर सबका ध्यान है, लेकिन हरिद्वार के फ्लाईओवरों, पुलों के नीचे रह रहे बेघर लोगों के साथ घाटों पर शिवभक्तों से जुड़े सामान बेचने वालों की किसी को सुध नहीं है.

कैसे जीते हैं फ्लाईओवर के नीचे रहने वाले

हरिद्वार में कांवड़ियों की फ़ौज के बीच इन दिनों रिक्शा चालकों का काम ठप पड़ा है. रात ढाई बजे शराब पीकर बैरागी कैंप में गंगा किनारे सो गए रवि की सुबह 5 बजे जब बारिश की वजह से नींद खुली, तो वह पास के फ्लाईओवर के नीचे बने अपने ठिकाने की ओर चल दिए.

फ्लाईओवर के नीचे रवि जैसे सात-आठ लोग और भी रहते हैं, इनमें से रवि की दोस्ती अपने जैसे ही एक और रिक्शाचालक राजेश से है. फ्लाईओवर के नीचे रहने वाले बाकी लोगों में कोई भीख मांगकर पेट पालता है, तो कोई पास ही मंगलवार को लगने वाले भंडारे से पूरे हफ्ते का खाना इकट्ठा कर लेता है.

अपनी कहानी बताते रवि कहते हैं कि उनका घर लक्सर के पास ही एक गांव में था. तीन भाइयों में उनका एक भाई बस नशा करता है, एक देहरादून में मज़दूरी और तीसरे वह खुद हैं. गांव में उनकी पांच बीघा जमीन थी, जो मां को कैंसर होने पर बिक गई थी. मां के गुज़रने के बाद उनके सब्ज़ी बेचने वाले पिता का भी देहांत हो गया था, तब से ग्रेजुएट रवि हरिद्वार में रोज़ के पचास रुपये पर रिक्शा किराये में लेकर इसे चलाते हैं. वह कहते हैं कि रिक्शे से वह दिन भर में तीन सौ से लेकर एक हजार रुपये तक भी कमाई कर लेते हैं.

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सरकारी ऑफिसों के तामझाम से बचने वाले लोग

लगभग चालीस साल के दिखने वाले राजेश बदायूं के हैं और उनके माता-पिता कोई भी जीवित नहीं हैं. वह कहते हैं कि उनका प्रधानमंत्री जन-धन योजना खाता खुला हुआ है, लेकिन उसमें कितने रुपये हैं, यह देखने वह काफी समय से बैंक नहीं गए हैं. राजेश कहते हैं कि उन्हें सरकार की बेरोजगारी भत्ता योजना व कई अन्य योजनाओं की ख़बर तो रहती है, पर उन्हें प्राप्त करने के लिए सरकारी ऑफिसों के चक्कर लगाने पड़ेंगे, इसलिए वह इन सब के पीछे पड़ते ही नहीं. राजेश कहते हैं कि हम दोनों भविष्य की परवाह किए बग़ैर अपनी रोज़ की कमाई शराब, खाने में खर्च कर देते हैं. राजेश ने यह भी बताया कि रवि और उनके पास स्मार्टफोन भी है, जिसे वे अपने जानने वाले दुकानदारों के यहां बीस रुपये में चार्ज करते हैं.

KYC करवाना इनके लिए मुसीबत

फ्लाईओवर के नीचे इन्हीं के साथ रहने वाले पंचकूला के ओम कुमार कहते हैं कि उन्होंने बठिंडा में मिठाई की दुकान में कई साल काम किया था और वह रिक्शा भी चलाते थे. तीन साल पहले शरीर में काम करने की हिम्मत नहीं रही, तो हरिद्वार चले आए. दुकानों में साफ-सफाई करने के बाद दुकानदार उन्हें बीस-तीस रुपये दे देते हैं, जिससे उनका खर्चा चल जाता है. ओम कुमार के पास फोन नहीं है, उनका बैंक खाता भी है, लेकिन उन्हें नहीं पता कि वह चल भी रहा है या नहीं, क्योंकि उन्होंने उसकी KYC नहीं करवाई है. ओम ने बताया कि 2014 में उन्हें डॉक्टर ने बताया कि उनके फेफड़े अस्सी प्रतिशत खराब हो गए हैं, इसके बावजूद वह अभी तक जीवित हैं. वह कहते हैं कि अब यहां हरिद्वार में अपना इलाज करवाने के लिए उनके पास रुपये नहीं हैं और सरकारी अस्पताल में भी वह ज्यादा रुपये खर्च होने के डर की वजह से नहीं गए हैं.

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महंगाई के इस दौर में बच्चों के स्कूल की फीस और सिलेंडर

बैरागी कैम्प घाट में कांवड़ मेले के दिनों कमाई की उम्मीद से कांवड़ भक्तों से जुड़ी सामग्री बेचने के लिए लकड़ी के तख़्त पर दुकान चलाने वाले शिवकुमार से सुबह 4 बजे हमारी बात हुई, मच्छरों से परेशान होकर गंगा घाट में बैठ गए शिवकुमार कहते हैं कि वह कनखल रोड स्थित एक आश्रम में एक हजार रुपये का कमरा लेकर किराये पर रहते हैं. उनके दादाजी हरिद्वार के ही किसी गांव से शहर आ गए थे और दुधारू पशुओं के लिए घास काटते थे. फिर उनके पिता रिक्शा चलाने लगे, आठवीं तक पढ़ने के बाद शिवकुमार ने साइकिल बनाने का काम सीखा. शिवकुमार ने बताया कि इस समय उनकी उम्र लगभग 55 साल है और शादी के बाद से ही हर साल कांवड़ मेले के दौरान वह यहां घाट पर दुकान लगाते हैं. उनकी बड़ी लड़की की शादी के बाद बच्चा जनते मौत हो गई थी, उसकी शादी में उन्होंने अपने जीवन भर की कमाई तीन से चार लाख रुपये लगा दिए थे और अब वह रुपये कमाने के लिए फिर मेहनत कर रहे हैं.

शिवकुमार कहते हैं कि साइकिल रिपेयरिंग की दुकान से वह महीने के लगभग तीन हजार रुपये कमा लेते हैं, उनकी पत्नी भी एक आश्रम में तीन हजार रुपये वेतन में साफ-सफाई का काम करती है. एक लड़की गुज़र जाने के बाद उनके अभी दो बच्चे हैं, जिनकी स्कूल की फीस सालाना लगभग दस हजार रुपये है. गैस का दाम हजार रुपये के आसपास और सब्जियों के दाम भी आजकल आसमान छूने की वजह से घर चलाने में परेशानी होने की बात भी वह स्वीकार करते हैं, उन्हें कांवड़ मेले में लगाई इस छोटी से दुकान से सात से आठ हजार रुपये कमाई की उम्मीद है.

शिवकुमार ने आगे बताया कि उनका प्रधानमंत्री जन-धन योजना खाता है, जिसमें उन्होंने सौ रुपये जमा किए हुए हैं. हाल ही में आयुष्मान कार्ड से उन्हें सरकारी अस्पताल में पत्नी के इलाज में मदद मिली थी.

हिमांशु जोशी उत्तराखंड से हैं और प्रतिष्ठित उमेश डोभाल स्मृति पत्रकारिता पुरस्कार प्राप्त हैं. वह कई समाचारपत्र, पत्रिकाओं और वेब पोर्टलों के लिए लिखते रहे हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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