भारत के अमृत काल में प्रवेश किए हुए तीन दिन हो चुके हैं. इन तीन दिनों में आपने कितना अमृत पिया है, कुछ तो बताना ही चाहिए. हर बजट भाषण में धार्मिक, मिथकीय, शास्त्रीय, ऐतिहासिक और साहित्यिक रूपकों का इस्तेमाल होता रहा है लेकिन अमृत काल की अवधारणा इन सब प्रतीकों के इस्तेमाल से काफी अलग है. बजट इसलिए हर साल पेश होता है ताकि पिछले साल और उस साल के हिसाब का लेखा-जोखा जनता के बीच प्रस्तुत किया जा सके. अगर 25 साल का विज़न होगा तब आप उस बजट का मूल्यांकन कैसे करेंगे? मोदी सरकार में किसी योजना का टारगेट पांच से दस साल का बताने का चलन बढ़ा है. टारगेट ही नहीं पांच साल का बजट पहले ही साल में जोड़ कर बताया जाता है. इससे होता यह है कि कौन सी योजना पर कितना पैसा दिया गया औऱ कब पूरी होगी इसे ट्रैक रखना आसान नहीं होता साफ साफ पता नहीं चलता है. इस तरह से बजट आता तो इस साल के नाम पर है मगर वो अब इस साल की बात ही नहीं करता है.
जब वित्त मंत्री ने सूटकेस छोड़ी तो कहा गया कि यह अंग्रेज़ों की परंपरा थी. अब बजट भारतीय परंपरा के अनुसार लाल कपड़े में लपेट कर इसे बहीखाते का रूप दिया गया है. गुजरात में हर साल दीवाली के मौके में नया बहीखाता शुरू होता है और पिछले साल का बहीखाता बंद कर दिया जाता है. इसी तरह बंगाल और महाराष्ट्र में भी अलग अलग त्योहारों के समय हर साल बहीखाता बदल दिया जाता है. संविधान के आर्टिकल 112 में बजट का वैधानिक नाम Annual Financial Statement है. हिन्दी में इसे वार्षिक वित्तीय विवरण कहा गया है. इसे कहीं भी विज़न डाक्यूमेंट नहीं कहा गया है. आर्टिकल 112 में लिखा है कि राष्ट्रपति की ओर से वित्त मंत्री उस साल का वित्तीय लेखा-जोखा पेश करेंगी. हर साल की बात होती है तो जवाबदेही समझ आती है. इस साल के बजट की पहली लाइन भी यही है कि 22-23 का बजट पेश किया जा रहा है लेकिन अगले कुछ पैराग्राफ में 2047 के विज़न की बात होने लगती है. इतना लंबा कालखंड किसी बजट में कैसे हो सकता है, तब फिर अगले साल कितना काम हुआ कितना पैसा हुआ इसकी जवाबदेही कैसे तय होगी. पूछने पर कहीं यह तो नहीं कह दिया जाएगा कि अभी 25 साल बाकी है, काम हो रहा है. इसलिए हमारा सवाल इस बात को लेकर है कि क्या बजट 25 साल का विज़न दस्तावेज़ हो सकता है? इस साल के बजट में कहा गया कि भारत अमृत काल में प्रवेश कर चुका है. 25 वर्ष की लंबी यात्रा के बाद हम भारत@100 पर पहुंचेंगे. प्रधानमंत्री ने स्वतंत्रता दिवस के अपने भाषण में भारत@100 का दृष्टिकोण निर्धारित किया है”. तो आप देखेंगे कि संवैधानिक और भारतीय परंपरा दोनों के हिसाब से बजट को 25 साल जैसे अनिश्चित और काल्पनिक समय सीमा से जोड़ना उचित नहीं लगता है.
सरकार को अगर विज़न जारी करना था तो वह अलग से कर सकती थी लेकिन बजट को विज़न डाक्यूमेंट बनाने की इस परंपरा के बारे में एक बार ठहर कर सोचा जाना चाहिए. हम सभी जानते हैं कि हमारा प्रशासनिक और राजनीतिक जीवन नारियल फोड़ने से लेकर मुहूर्त निकालने की घटनाओं से भरा पड़ा है. उसके हिसाब से दिन में कई बार अमृत मुहूर्त आता है. लेकिन यहा तो पचीस साल के लिए अमृत काल चला दिया गया. यही नहीं बहुत तेज़ी से संवैधानिक काम और धार्मिक कर्मकांड का फर्क मिटता जा रहा है. अब यह नारियल फोड़ने तक सीमित नहीं लगता है. ज़रूर कुछ लोग कहेंगे कि धार्मिक परंपरा पर सवाल मत कीजिए लेकिन हमारा सवाल है कि क्या आप धार्मिक परंपरा की आड़ इसलिए ले रहे हैं कि सवाल न किया जाए? तो क्या संविधान धर्मों के भीतर मौजूद अंधविश्वास और आडंबर की परंपरा को अवैध घोषित करने का अधिकार नहीं देता है? क्या एक दिन वो अधिकार संविधान से भी ले लिया जाएगा कि धार्मिक परंपरा पर सवाल नहीं होगा? हमारी धार्मिक और संवैधानिक परंपरा में बहीखाता केवल एक साल का होता है तो बजट में टारगेट एक साल का ही होना चाहिए. पांच साल की बात हो सकती है लेकिन कम से कम पहले साल का टारगेट स्पष्ट होना चाहिए.
इस साल के बजट में वित्त मंत्री ने लिखा है कि पीएम गति शक्ति आर्थिक विकास और सतत विकास के प्रति हमारे नज़रिए को बदल देगी. सड़क, रेल, एयरपोर्ट, बंदरगाह, लोक परिवहन, जल परिवहन और लाजिस्टिक के ढांचे को बल देगा. अजीब बात है कि सौ लाख करोड़ के प्रोजेक्ट के संबंध में केवल रोज़गार पैदा होने की बात है लेकिन कितना रोज़गार पैदा होगा इसकी बात नहीं है. आत्मनिर्भर भारत के तहत प्रोडक्शन इंसेटिंव लिंक योजना के तहत पांच साल में 14 सेक्टर में साठ लाख रोज़गार पैदा होने की बात कही गई है लेकिन सौ लाख करोड़ के पीएम गति शक्ति में रोज़गार की कोई अनुमानित संख्या नहीं बताई गई है. प्रधानमंत्री मोदी 15 अगस्त 2019, 15 अगस्त 2020, 15 अगस्त 2021 को लाल किला से इंफ्रा स्ट्रक्चर पर सौ लाख करोड़ खर्च करने की घोषणा कर चुके हैं. कम से कम तीन साल बाद इस बजट में इस सौ लाख करोड़ के खर्चे का कुछ तो हिसाब होना चाहिए था.
2019, 2020, 2021 के 15 अगस्त के दिन 100 करोड़ से अधिक के इंफ्रा प्रोजेक्ट की बात प्रधानमंत्री ने की. तो इस दौरान कुछ खर्च हुआ होगा, कुछ काम हुआ होगा, कुछ रोजगार पैदा हुआ होगा, उसका हिसाब कुछ तो इस बजट में या बाहर देना चाहिए था? क्या यह ग़लत सवाल है? इस सौ लाख करोड़ को लेकर कितनी बार और कितने साल तक हेडलाइन छपती रहेगी? इस बजट में पीएम गति शक्ति के सात केंद्र बताए गए हैं. सड़क, रेल, एयरपोर्ट, बंदरगाह, लोक परिवहन, जल परिवहन और लाजिस्टिक लेकिन इस बजट में पैसे का ज़िक्र केवल नेशनल हाईवे प्रोजेक्ट को लेकर है. कहा गया है कि 25000 नेशनल हाईवे बनाने के लिए 20,000 करोड़ जुटाए जाएंगे. क्या हम यह सवाल पूछ सकते हैं कि 2019 के बजट में अगले पांच साल में सौ लाख करोड़ खर्च करने का एलान हुआ था, अभी तक कितना खर्च हुआ है? इसका इस साल के बजट में लेखा-जोखा क्यों नहीं दिया गया.
देख सकते हैं कि अप्रैल 2020 को टास्क फोर्स के सदस्य वित्त मंत्री को फाइनल रिपोर्ट दे रहे हैं. इस टास्क फोर्स की पहली बैठक सितंबर 2019 में हुई थी. इस टास्क फोर्स रिपोर्ट के पहले पन्ने पर प्रधानमंत्री की तस्वीर है. उनके विज़न की तस्वीर है. इसमें भी लिखा है कि अगले पांच साल में 100 लाख करोड़ खर्च होंगे, इंफ्रास्ट्रक्चर पर. चौथे पन्ने पर बकायदा रंगीन चार्ट बना है. इस पर टाइटल है इंफ्रास्ट्रक्चर विज़न 2025. यानी इसकी डेडलाइन बिल्कुल साफ है. 2025 तक की है जिसमें से तीन साल गुज़र चुके हैं. टास्क फोर्स के पांचवे पन्ने पर एक ग्राफ बनाया गया है. इसमें 2050 की कल्पना पेश की गई है वह भी ग्राफिक्स के ज़रिए. 2050, ये तो 2047 तक के अमृत काल से भी आगे चले गए हैं. इतना कमााल तो साइंस फिक्शन लिखने वाले भी नहीं करते हैं. जब यह रिपोर्ट 2019 में बन गई थी कि पांच साल में 100 लाख करोड़ कैसे और कहां कहां खर्च होंगे तो इस बार तो कुछ रिजल्ट की बात होनी चाहिए थी. सरकारी सूचना एजेंसी PIB की इस दिन की एक प्रेस रिलीज़ है. इसकी जानकारी काफी अहम है. इसमें 2019 से 2025 के बीच सौ लाख करोड़ के प्रोजेक्ट क्या होंगे, कहां से पैसा आएगा इसकी रुपरेखा दी गई थी.
PIB ने अपनी रिलीज में लिखा है कि NIP पर 111 लाख करोड़ खर्च किए जाएंगे. इस समय 44 लाख करोड़ की योजनाएं लागू की जा रही हैं. 33 लाख करोड़ के प्रोजेक्ट की तैयारी चल रही है. 22 लाख करोड़ के प्रोजेक्ट तैयार करने के लिए सूचनाएं जुटाई जा रही हैं. यानी शुरूआती काम चल रहा है. इसमें यह भी लिखा है कि इस पर राज्य सबसे अधिक 40 फीसदी खर्च करेंगे और केंद्र 39 प्रतिशत ही और प्राइवेट सेक्टर 21 प्रतिशत.
प्राइम टाइम के इस हिस्से को देखकर आपको यह सोचना चाहिए कि किस तरह से कहानी बनाई जा रही है और जब बताने का समय आता है कि कहानी कहां पहुंची तो कक्षा की अवधि बढ़ा दी जाती है कि अभी दो घंटा और बैठिए, जब तक कहानी खत्म नहीं होगी तब तक क्लास खत्म नहीं होगी.
अब इस बजट के बाद छपी हेडलाइनों और लाइनों को देखिए. किसी में सवाल तो होता कि सौ लाख करोड़ के इंफ्रा प्रोजेक्ट में रोज़गार की कोई संख्या नहीं है लेकिन 14 सेक्टर के PLI स्कीम से पांच साल में साठ लाख रोज़गार पैदा होंगे. किसी हेडलाइन में यह तो होता कि क्या यह वही योजना है जो 15 अगस्त 2019 को लांच हुई थी या उस सौ लाख करोड़ के अलावा कोई नया सौ लाख करोड़ के प्रोजेक्ट हैं? सरकार कुछ तो रोज़गार की संख्या बता सकती थी कि 2019 में शुरू हुए सौ लाख करोड़ के इंफ्रा प्रोजेक्ट से कितनों को रोज़गार मिला है? ऐसी हेडलाइनों से क्या आपको इस तरह की जानकारी मिलती है जो हमने बताई?
अभी हमने बताया कि 2020 में जब सौ लाख करोड़ के इंफ्रा प्रोजेक्ट पर टास्क फोर्स की रिपोर्ट आई तभी कहा गया कि 44 लाख करोड़ के प्रोजेक्ट चल रहे हैं. हमारा सवाल बिल्कुल ठोस है कि 2019 से 31 जनवरी 2022 तक कितना खर्च हुआ और 2022-23 में कितना खर्च होगा? अलग अलग योजनाओं के संबंध में पहले भी कई लाख और कई करोड़ रोज़गार पैदा होने के दावे किए गए थे उनका आज तक पता नहीं चला.
2018 में मुद्रा योजना के तीन साल पूरे होने पर अमित शाह ने कहा था कि इससे 7 करोड़ से अधिक लोगों को रोज़गार मिला है. 7 अप्रैल 2021 की pib में लिखा है कि इस योजना से तीन साल में 1 करोड़ 12 लाख लोगों को रोज़गार मिला है. सितंबर 2015 में नितिन गडकरी ने ग्रीन हाईवे पालिसी लांच की थी और कहा था कि हाईवे के किनारे वृक्षारोपण से पांच लाख रोज़गार देंगे. क्या गडकरी जी बता सकते हैं कि कितनों को अभी तक ग्रीन हाईवे नीति से रोज़गार मिला है? उस दिन गडकरी ने कहा था कि हर साल पौधारोपण पर एक हज़ार करोड़ खर्च होगा। पांच साल तक. क्या बता सकते हैं कि हर साल 1000 करोड़ का पौधारोपण हुआ या नहीं? 2016 में टेक्सटाइल सेक्टर को 6000 करोड़ का पैकेज दिया गया और कहा गया कि तीन साल में 1 करोड़ रोज़गार आएगा. जब संसद में सवाल पूछा गया तो अगस्त 2021 मे कपड़ा मंत्री ने कहा कि सरकार रोज़गार का टारगेट फिक्स नहीं करती है.
14 सेक्टर के PLI स्कीम से पांच साल में साठ लाख रोज़गार पैदा होंगे, इसमें रोज़गार की संख्या कैसे निकल गई, और सौ लाख करोड़ के इंफ्रा प्रोजेक्ट में कितने रोज़गार पैदा होंगे, इसकी संख्या क्यों नहीं निकल पाई? सौ लाख करोड़ के प्रोजेक्ट के संबंध में हम जितना रिसर्च कर रहे थे उतना ही हम अंधेरी सुरंगों में भटकते जा रहे थे. एक दर्शक और पाठक के रूप में आप अपना कितना पैसा और समय टीवी और अखबार को देते हैं लेकिन ज्यादातर ने इस मामले में रंगीन हेडलाइन बनाकर छुट्टी कर ली जबकि हम वही बता रहे हैं जो सरकार इस योजना को लेकर पहले कह चुकी है. जो हेडलाइन पहले छप चुकी है. हमारा सवाल सिम्पल है. 2019 में 100 लाख करोड़ का इंफ्रा प्रोजेक्ट लांच हुआ, 44 लाख का प्रोजेक्ट शुरू भी हो गया तो कितना रोज़गार पैदा हुआ? 2022 के बजट में 2019-21 का हिसाब क्यों नहीं है, कितना रोज़गार पैदा हुआ है उसका डेटा कहां है? तीसरा सवाल यह है कि किस आधार पर दावा किया जा रहा है कि 14 सेक्टर में PLI स्कीम से अलगे पांच साल में साठ लाख रोज़गार पैदा होगा?
इस कार्यक्रम को तैयार करने में काफी मेहनत लगती है. हर दिन बारह से चौदह घंटे तक दस्तावेज़ों को पढ़ता रहता हूं और दिन भर टाइप करता रहता हूं. उंगलियां दुखने लगती हैं. हम जानते हैं कि इस तरह के कार्यक्रम देखने का धीरज दर्शकों में नहीं बचा है और इसे न्यूज़ चैनलों ने ही खत्म किया. एक बार आपका धीरज खत्म हो जाए तो उनका काम आसान हो जाता है. न्यूज़ के नाम पर कुछ भी चलाने का मौका मिल जाता है. न्यूज़ चैनल ही दो मिनट और तीस सेकेंड का वीडियो बनाकर देते हैं ताकि आप उसे ही फार्वर्ड और वायरल करते रहें. कुछ हल्के फुल्के बयान को सूचना समझ कर मस्त रहें. यह इसलिए किया जाता है कि एक बार सूचना की समझ बर्बाद हो जाएगी तब सूचना का धंधा करना आसान हो जाता है.
अब देखिए हमारा खोजना बंद नहीं हुआ है कि सौ लाख करोड़ का अलग अलग प्रोजेक्ट चल रहा है तो कहीं तो हिसाब किताब होना चाहिए. इस क्रम में हमें एक वेबसाइट मिली. यह नेशनल इंफ्रा पाइपलाइन का डैशबोर्ड है. ये साइट निवेशकों के लिए है लेकिन तब भी पैसे का हिसाब किताब तो होना ही चाहिए. इस पर नहीं तो किसी और वेबसाइट पर. जितना हम खोज सके, नहीं मिला. तो आम जनता कैसे जानेगी कि कितना काम हुआ है, ज़ाहिर है बजट सबसे आसान तरीका होता लेकिन बजट में तो नहीं है विस्तार से कुछ भी.
इस सवाल से विपक्ष के सांसद भी जूझ रहे होंगे तभी तो तृणमूल कांग्रेस के सौगत रॉय और भारतीय जनता पार्टी के दुष्यंत सिंघ ने सवाल किया था. जिसका जवाब तत्कालीन वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर ने 22 मार्च 2021 को दिया था. सवाल था कि नेशनल इंफ्रा पाइपलाइन NIP का डिटेल दें. किस किस मंत्रलाय के क्या प्रोजेक्ट है उसके बारे में बताएं. इनकी लागत क्या है, कितना पैसा दिया गया है, इनकी समय सीमा क्या है, ये सब बताएं. तत्कालीन वित्त राज्य मंत्री कहते हैं कि 2019 में बने टास्क फोर्स में मंत्रालयों के हिसाब से प्रोजेक्ट के डिटेल दिए गए हैं.
पहली लाइन है कि नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजक्ट NIP कोई योजना नहीं है. तो ये क्या है? यही नहीं इस जवाब से साफ हो जाता है कि किसी एक मंत्रालय से हिसाब नहीं मिलेगा. अब आप समझिए सौ लाख करोड़ के प्रोजेक्ट चल रहे हैं लेकिन जवाबदेही किसी एक जगह से नही तय होगी. पता ही नहीं चलेगा चाहे आप कितना भी पता करते रहें. इस जवाब में लिखा है कि इसके फंड वगैरह के लिए कोई सिस्टम नहीं है. यह भी लिखा है कि राज्यों को फंड की व्यवस्था करनी है. मंत्रालयों को व्यवस्था करनी है. इसी तरह कह दिया गया है कि आत्मनिर्भर भारत के तहत 14 सेक्टर में प्रोडक्टिवटी लिंक इंसेंटिव से साठ लाख रोज़गार पैदा होंगे पांच साल में. क्या आत्मनिर्भर भारत का यह स्कीम सौ लाख करोड़ के इंफ्रा प्रोजेक्ट से अलग है? सरकार को साफ करना चाहिए और आप गौर से देखिए कि रोज़गार और महंगाई को लेकर पूछे गए सवाल पर वित्त मंत्री का जवाब कितना स्पष्ट है.
वित्त मंत्री कह रही है कि जिनको नुकसान हुआ है उनको धीरे धीरे बहुत स्कीम के ज़रिए मदद कर रहे हैं. क्या वित्त मंत्री उनकी बात कर रही हैं जिनकी नौकरी चली गई है, क्या ऐसे किसी को मदद पहुंची है? या उस सेक्टर की बात कर रही है जो संकट में था, साफ नहीं है सिर्फ यह मान लेना कि महामारी में नौकरियां गई हैं कापी नहीं है. इतनी मेहनत करनी पड़ रही है सच्चाई का पता लगाने में. जबकि भारत अमृत काल में प्रवेश कर चुका है. बजट इस लोक जीवन में सुधार के लिए होता है परलोक की कल्पनाओं से जुड़े शब्दों का इस्तमाल इसमें नहीं होना चाहिए. वर्ना इस बजट को पारलौकिक बजट घोषित कर देना चाहिए. सौ लाख करोड़ के प्रोजेक्ट का ये हाल है.
अमृतकाल में दिल्ली की आंगनवाड़ी महिलाकर्मी तीन दिनों से इस ठंड में प्रदर्शन कर रही हैं. दिल्ली और केंद्र सरकार की नीतियों के विरोध में. इनका कहना है कि सितंबर 2018 में प्रधानमंत्री ने आंगनवाड़ी महिलाकर्मियों का मानदेय बढ़ाने की घोषणा की थी लेकिन दो साल दस महीने बाद भी इसके हिसाब से आज तक भुगतान नहीं हुआ है. इस समय आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को दिल्ली में 9,678 रुपये मिलते हैं. 2017 में इसमें 5000 की वृद्धि की गई थी जो आज तक नहीं मिली है. दिल्ली सरकार ने दिल्ली के कई इलाकों में चल रहे 'सहेली समन्वय केन्द्रों' में महिलाकर्मियों से समेकित बाल विकास परियोजना के दायरे से बाहर के काम करवाना शुरू कर दिया है. लेकिन कई महीनों से पूरा मानदेय नहीं मिल रहा है. वेतन के अलावा इनकी अन्य कई मांगे हैं. अमृत काल का यह हाल है. क्या इनका आरोप सही है कि 2018 की घोषणा के हिसाब से इन्हें बढ़ा हुआ मानदेय नहीं मिला है?
आप अमृत काल में प्रवेश कर चुके हैं. यह बहुत अच्छा मौका है अजर-अमर होने का. जहां कभी ये अमृत मिले दो चार लोटा अमृत पी लीजिएगा फिर न नौकरी की ज़रूरत होगी क्योंकि आप अमर हो जाएंगे तो खाने की ज़रूरत नहीं होगी, अमर होने पर बीमारी का डर नहीं रहेगा तो अस्पताल की ज़रूरत नहीं होगी और फिर पढ़ने लिखने की ज़रूरत तो पहले ही समाप्त कर दी गई है. अमृत काल में लोटा लोटा अमृत पीते रहिए.