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This Article is From Jun 03, 2015

प्रियदर्शन की बात पते की : खाते-पीते भारत के खाने-पीने का संकट

Priyadarshan
  • Blogs,
  • Updated:
    जून 03, 2015 23:13 pm IST
    • Published On जून 03, 2015 23:06 pm IST
    • Last Updated On जून 03, 2015 23:13 pm IST
जो लोग मैगी खाना बंद कर देंगे वे क्या खाएंगे? जाहिर है, किसी दूसरे नाम से बिकने वाला कोई दूसरा नूडल जिसमें छुपे ख़तरों से वे वैसे ही बेख़बर होंगे जैसे मैगी से रहे। लेकिन क्या वाकई मैगी इतनी ख़तरनाक है या वाकई हमें मैगी में छुपे ख़तरों का कुछ भी पता नहीं था?

खानपान के तमाम जानकारों, जीवन शैली के तमाम विशेषज्ञों और डॉक्टरों के लगातार समझाने और चेतावनी देने के बावजूद पिछले कुछ वर्षों में जंक फूड हमारे ब्रंच, लंच या डिनर का हिस्सा होते चले गए हैं। खाता-पीता हिंदुस्तान इन दिनों पहले दौड़ता-भागता हिंदुस्तान है और उसके बाद फिर बीमार पड़ता हिंदुस्तान। औरतों से रसोई छूटी है और मर्दों को अब भी अपनी हेठी लगती है। बच्चे तरह-तरह के चिप्स, कुरमुरे-मुरमुरे चबाने से लेकर तरह-तरह के नूडल पकाना सीख गए हैं और आत्मनिर्भर मां-बाप की आत्मनिर्भर संतानें हैं।

देश के तमाम शहरों में रोशनी से दमकते जो हिस्से हैं वहां मॉल के भीतर फूड कोर्ट्स या तरह-तरह के रेस्तरां हैं जहां देसी-विदेशी हर तरह का व्यंजन अपनी मूल क़ीमत से कई गुना दाम पर बेचा-खरीदा और खाया जाता है। तरह-तरह के चाट-पकौड़ों और मिठाई-खोमचे वालों से लेकर मझोले मिष्टान्न भंडारों तक और बड़े-बड़े चेन से लेकर मैकडॉनल्ड, केएफसी, पिज्जा हट, डॉमिनोज और किंग हैं जहां जाना और खाना सेहत से ज़्यादा शान का सबूत है, अपनी आर्थिक हैसियत से उपजे संतोष की पहचान है।

पचास साल पुराना गंवई हिंदुस्तान दूध पीता था, 40 बरस पहले उसने चाय पीनी सीखी, 30 बरस पहले कोल्ड ड्रिंक्स को पहचानना सीखा, 20 बरस पहले चाइनीज़ चाउमीन आई, और दस बरस पहले मोमो और पिज्जा चले आए। संस्कृति में खानपान वो चीज़ है जो कपड़ों के फैशन के बाद सबसे तेज़ी से बदलती है।

ये बदलाव सिर्फ इसलिए नहीं होता कि स्वाद के कुछ व्यापारी चले आते हैं और अपनी चाट निकाल कर हमें उसका जायका लगा जाते हैं। दरअसल इसके पीछे बदलती दुनिया की मजबूरियां भी होती हैं। इस बदली हुई दुनिया में सेहत अब अपनी सावधानी का नहीं, डॉक्टरों की सलाह और दवाओं का मामला है। इस हांफती-भागती दुनिया में जंक फूड और इंस्टेंट एनर्जी देने वाले ड्रिंक्स वो सहारा हैं जो हमें चलाए रखते हैं।

ऐसे में मैगी या किसी और नूडल या सेमी कूक्ड पैक्ड खाने में जो ख़तरे होते हैं, उन्हें हम सब नज़रअंदाज़ करते हैं। अचानक मैगी को लेकर एक ख़बर चली आती है और सब कुछ इस तरह हैरान होते हैं जैसे ये तो उन्हें मालूम ही नहीं था। ये ख़ुद को भरम में रखने वाली दुनिया का भरम है- जिसके भीतर अब भी एक झीना सा ये यकीन बचा हुआ है कि मैगी आख़िर सारी जांच में पाक-साफ निकलेगी और उसे दो मिनट में पकाकर फिर हम काम पर जा सकेंगे।

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