दिल्ली विश्वविद्यालय और हिन्दवी द्वारा आयोजित कैंपस कविता प्रतियोगिता, जिसमें लगभग 450 विद्यार्थियों की भागीदारी रही, न केवल कविता के क्षेत्र में नई प्रतिभाओं को उजागर करने का मंच बना, बल्कि यह मंच वर्तमान कविता की विश्वसनीयता और उसके अस्तित्व को लेकर गंभीर प्रश्न भी उठाता है.
इस प्रतियोगिता में 8 विद्यार्थियों का पुरस्कृत होना बताता है कि आज के युवाओं में कविता के प्रति गंभीरता, आकर्षण और उसका अटूट प्रभाव बना हुआ है. निर्णायकों के रूप में डॉ श्यौराज सिंह 'बेचैन', सविता सिंह और पूनम अरोड़ा जैसे कवियों की उपस्थिति ने इस आयोजन को सशक्त आलोचनात्मक दृष्टिकोण प्रदान किया.
कविता की विश्वसनीयता पर बात करना आज के समय में अत्यंत महत्वपूर्ण है. डिजिटल माध्यमों की बढ़ती लोकप्रियता ने कवियों के लिए अपनी आवाज़ को लोगों तक पहुंचाना भले ही आसान बना दिया हो, परंतु इसके साथ ही कविता का वास्तविक उद्देश्य और उसकी गहराई कहीं खोती हुई प्रतीत होती है. आज के समय कविता का रूप संक्षिप्त और उसमें तेजी नज़र आने लगी है, जिसमें कभी-कभी गहरी अनुभूतियों का स्थान सतही भावनाओं ने ले लिया है. कविता का यह बदलाव हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या आज की कविता अपनी अस्तित्व की मूलभूत आवश्यकता को पूरा कर पा रही है या नहीं.
विद्यार्थियों द्वारा अपनी कविता में संवेदनशील विषयों का चुनाव दर्शाता है कि युवा पीढ़ी अपनी कविताओं के माध्यम से अपनी भावनाओं को भाषा द्वारा अभिव्यक्त करना चाहती है. इस प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार आदित्य को दिया गया. दूसरा मोहम्मद तलहा और तीसरा सत्यव्रत रजक को दिया गया, जबकि अन्य पांच सांत्वना पुरस्कार अंजलि कार्की, आकांक्षा, अन्वेषा राय, शिवानी कार्की और शिव शशांक ओझा को प्रदान किए गए.
कविता का अस्तित्व तभी सार्थक है, जब वह मनुष्य मन और समाज के यथार्थ से जुड़ सके. जीवन के सुख-दुःख, उसके संघर्ष और उसके आदर्शों को समझ सके. प्रतियोगिता के निर्णायकों द्वारा पुरस्कृत रचनाएं यह स्पष्ट करती हैं कि कविता के क्षेत्र में नए प्रयोगों का स्वागत है, बशर्ते वे उसके अस्तित्व को समृद्ध बनाने की ओर अग्रसर हों. कविता केवल भावनाओं की अभिव्यक्ति नहीं है, बल्कि यह विचारों और संवेदनाओं की ऐसी अभिव्यक्ति है, जो समाज में नई चेतना का संचार कर सकती है और व्यक्तिगत निर्मिती को एक नया आयाम प्रदान करती है.
कैंपस कविता जैसे आयोजन सिद्ध करते हैं कि कविता का अस्तित्व आज भी समाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. जब युवा पीढ़ी इस तरह के मंचों पर अपने विचारों को न केवल उकेरती है, बल्कि उन्हें समाज के सामने लाकर उनकी प्रतिक्रिया का आकलन भी करती है, तब कविता का अस्तित्व और उसकी प्रासंगिकता और भी अधिक मजबूत हो जाती है.
पूनम अरोड़ा 'कामनाहीन पत्ता' और 'नीला आईना' की लेखिका हैं... उन्हें हरियाणा साहित्य अकादमी पुरस्कार, फिक्की यंग अचीवर, और सनातन संगीत संस्कृति पुरस्कार से सम्मानित किया गया है... पूनम संप्रति NDTV इंडिया में कार्यरत हैं...
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