भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सबसे बड़े नेता लालकृष्ण आडवाणी एक बार फिर रूठे हैं... पिछले नौ महीनों में ऐसा तीसरी बार हुआ है... एक बार फिर उन्हें मनाने का वही सिलसिला शुरू हुआ है... सुबह से उनसे मिलने के लिए भाजपा के बड़े नेताओं का तांता लगा हुआ है... राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के बड़े नेताओं ने भी उनसे फोन पर बात की है...
लालकृष्ण आडवाणी से मिलने वाले तमाम नेता उनसे एक ही गुज़ारिश कर रहे हैं कि लोकसभा चुनाव 2014 में वह गांधीनगर से ही लड़ें और इस बारे में पार्टी का फैसला मान लें, लेकिन आडवाणी अब इसके लिए तैयार नहीं हो रहे हैं... बुधवार को संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति की बैठक के बाद पार्टी के फैसले की जानकारी देने के लिए उनसे मिलने गए सुषमा स्वराज और नितिन गडकरी से ही उन्होंने साफ कह दिया था कि उनकी पहली पसंद भोपाल है...
जबकि इससे पहले, 28 फरवरी को गांधीनगर गए लालकृष्ण आडवाणी ने वहां साफ कहा था कि वह वहीं से चुनाव लड़ना चाहते हैं... यह बात उन्होंने टीवी कैमरों पर कही थी... तब तक भाजपा की पहली सूची आ चुकी थी और उसमें आडवाणी का नाम नहीं था... वह चाहते थे कि पहली सूची में ही गांधीनगर से उनका नाम घोषित कर दिया जाए, लेकिन उनका नाम न पहली सूची में आया और न दूसरी में... छठी सूची में नाम आना उन्हें अपनी प्रतिष्ठा के प्रतिकूल लगा...
इसके अलावा आडवाणी के करीबी हरेन पाठक का नाम भी नहीं आया... वर्ष 2009 में पाठक के नाम पर आडवाणी और नरेंद्र मोदी आमने-सामने आ गए थे, और तब आडवाणी के दबाव में मोदी को अपने पैर पीछे खींचने पड़े थे... इस बार भी कुछ ऐसा ही होता दिख रहा है... आडवाणी को मनाने के लिए यह रास्ता भी तलाशा जा रहा है...
उधर, लालकृष्ण आडवाणी को यह एहसास है कि अगर वह गांधीनगर छोड़कर भोपाल जाते हैं तो यह मोदी के लिए बेहद नुकसानदायक होगा, क्योंकि इसका मतलब होगा कि भितरघात से आशंकित होकर वह अपनी सीट बदल रहे हैं... इसी कारण नरेंद्र मोदी भी लालकृष्ण आडवाणी को गांधीनगर से ही चुनाव लड़ने के लिए मनाते हुए दिखना चाहते हैं...
दूसरी ओर, इस बीच संघ ने भी साफ कर दिया है कि लालकृष्ण आडवाणी के भोपाल से लोकसभा चुनाव लड़ने की कोई तुक नहीं है और उन्हें पार्टी का फैसला मानना होगा... संघ ने यह भी कहा है कि चुनाव के वक्त इस तरह के विवाद नहीं होने चाहिए...
आडवाणी का हठ अब भाजपा के गले की फांस बन गया है... पार्टी की कमान पहली पीढ़ी के हाथ से निकलकर दूसरी पीढ़ी के हाथों में चली गई है... बुजुर्ग नेता इस चुनाव को आखिरी मौका मानकर मैदान में उतरने के लिए हाथ-पैर मार रहे हैं, लेकिन पार्टी में सवाल यह पूछा जा रहा है कि आडवाणी आखिर चुनाव लड़ना क्यों चाहते हैं...
चूंकि पार्टी नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार पहले ही घोषित कर चुकी है और इस पर कोई समझौता नहीं होगा... सो, ज़ाहिर है, आडवाणी फिर मानेंगे, लेकिन उनके रूठने और मनाने की कवायद हर बार पार्टी की छवि पर दाग लगा जाती है और इस बार भी ऐसा ही हो रहा है... भाजपा को ज़्यादा नुकसान इसलिए भी है, क्योंकि आडवाणी चुनाव के दौरान नाराज़ हुए हैं...
This Article is From Mar 20, 2014
चुनाव डायरी : आडवाणी का 'अथक रथी' से 'अथक हठी' तक का सफर...
Akhilesh Sharma
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Updated:नवंबर 20, 2014 13:11 pm IST
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Published On मार्च 20, 2014 16:17 pm IST
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Last Updated On नवंबर 20, 2014 13:11 pm IST
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