गुजरात के उना शहर की ये तस्वीर आंखों से ज्यादा मन को चुभती हैं। एक समाज के नाते हम सभी को सोचना चाहिए कि लाठी लेकर मार रहे युवकों के मन में इस हिंसा को किसने भरा है। परिवार, समाज, धर्म शास्त्र, संस्कार या राजनीतिक विचारधारा ने। जिन लोगों ने गौ रक्षक के नाम पर लाठी उठाई वो नफ़रत और दुस्साहस की किस पाठशाला के पास आउट हैं। इनकी एक करतूत से भारत की प्रगति की तमाम बुलंदियां खोखली हो जाती हैं।
जिस गाड़ी से दलित युवकों को बांधा गया वो ज़ाइलो है। महिंद्रा का स्पोर्ट्स यूटिलिटि व्हीकल एसयूवी। हमारी आधुनिकता और प्रगति के प्रतीक इस एसयूवी की कीमत साढ़े आठ से दस लाख के बीच है। आधुनिकता की पीठ से चार दलित युवकों को बांध दिया गया है। इन्हें जिस नफ़रत से मारा जा रहा है वो न जाने कब से हमारे समाज में है। ये आधुनिक कार नहीं थी तब भी ये नफ़रत थी और इस कार के आने के बाद भी वही नफ़रत हू-ब-हू है। ये जवान गुजरात के हैं मगर ये कहीं के भी हो सकते हैं। बल्कि तमाम घटनाओं में ऐसे नौजवान मिले हैं जो दलितों के ख़िलाफ़ हिंसा में शामिल रहे हैं। इनके हाथ में एल्युमिनियम की लाठी बताती है कि इनका कोई न कोई संगठित रूप रहा होगा। किसी को पता करना चाहिए कि ये कहां से पैसा पाते हैं कि साढ़े आठ लाख की ज़ाइलो पर चलते हैं, उससे दलित युवकों को बांध कर मारते हैं। मारपीट में शामिल 8 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है, 6 पुलिस वालों को सस्पेंड कर दिया है, मामले की सुनवाई के लिए विशेष अदालत का गठन करने की बात हो रही है, लेकिन यह भी जानना ज़रूरी है कि ऐसे लोग के पास इतने संसाधन कहां से आते हैं। ये किससे जुडे हैं कि इनके पास दस से पंद्रह लोगों का गैंग जमा हो जाता है, किसी को कानून हाथ में लेकर मारने के लिए। उना से 50 किमी दूर 22 मई को भी ऐसी ही घटना हुई लेकिन उस मामले में कुछ खास नहीं हुआ। दलितों को पीटा गया और वीडियो बनाया गया था।
घटना अपने आप में जितनी शर्मनाक है उतना ही साहसिक है, इस घटना का विरोध। गाय का मामला आते ही अच्छे-अच्छे राजनीतिक दलों की ज़ुबान कांपने लगती थी, मगर गुजरात के दलितों ने जो किया उससे यह घटना और भी बड़ी और ऐतिहासिक हो जाती है। दलित समाज ने ट्रकों पर मृत गायों को लादा और सुरेंद्रनगर के कलेक्टर के दफ्तर में जाकर छोड़ आए कि हम अंतिम संस्कार नहीं करेंगे। गाय जिनकी माता लगती है वो करेंगे। ये और बात है डाक्टर अंबेडकर ने ये काम छोड़ देने की बात दशकों पहले की थी। फिर भी हाल फिलहाल के दशकों में पूरे भारत में कहीं भी गौ रक्षकों के दुस्साहस का ऐसा प्रतिकार नहीं हुआ था। शायद इसीलिए गौ रक्षकों का हौसला इतना बढ़ गया कि इन युवकों को मारने पीटने के बाद सबने इन्हें नीचे बिठाकर तस्वीर भी खिंचाई। यह तस्वीर थाने की है। दलित युवक थाने के परिसर में हाथ जोड़े खड़े हैं। पीछे नीले रंग से थाना लिखा है। आप कल्पना कीजिए कि इन युवकों को ग्लानि और बेबसी की किस अवस्था से गुज़रना पड़ा होगा। दो साल के दौरान ऐसी घटनाएं कई जगहों से आ रही थीं। बीफ की तस्करी के आरोप में हरियाणा में दो युवकों को गोबर, गौ मूत्र, दूध दही, घी का मिश्रण पंचगव्य खिलाया गया। उसका वीडियो बनाकर वायरल किया गया। दोनों युवक मुस्लिम थे। झारखंड में भी दो मुस्लिम युवकों की कथित रूप से शक के आधार पर हत्या कर दी गई कि गाय की तस्करी कर रहा था। विरोध हो रहा था मगर हमारे नेता भी गाय के नाम पर समाज से संवाद करने से डर रहे थे।
उन्हें लग रहा था कि गाय को लेकर दूसरा तर्क ही नहीं मौजूद है। लोग गुस्सा हो जाएंगे। ऐसा करते समय वे सिर्फ एक प्रकार के लोग की कल्पना कर रहे थे। उनकी कल्पना में दूर दूर तक गुजरात के दलितों का यह जवाब था ही नहीं यहां कि दलित सांसदों और नेताओं के पास भी जवाब नहीं था। वे भी चुप थे। 5 मार्च 2016 की रात हरियाणा के शाहाबाद के नज़दीक गौ रक्षक दल के सदस्यों ने कथित रूप से जानवरों के एक तस्कर को पकड़ लिया। बाद में उसका शव बरामद हुआ था। इस मामले की सुनवाई करते हुए 10 मई 2016 के दिन पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने कहा था कि राजनीतिक आकाओं और राज्य सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों जिनमें पुलिस भी शामिल है, इनकी मदद से तथाकथित स्वंयभू गौ रक्षा दल बन जाते हैं और कानून अपने हाथों में ले लेते हैं। कोर्ट के संज्ञान में ऐसी बातें आईं हैं कि ये दल कानून तोड़ते हैं और अपने जानवरों के साथ चरवाही के लिए जा रहे ग़रीब लोगों से वसूली भी करते हैं। इनसे पुलिस भी मिली होती है।
अब कुछ बातें गाय और गौ शालाओं की। हमारे देश में कुछ बहुत ही अच्छी गौ शालायें हैं। इन्हें आप छोड़ दें या इनके बावजूद तमाम शहरों में गायें कचरे के ढेर में प्लास्टिक की थैली खाने के लिए अभिशप्त हैं। इस हालत में कोई सुधार नहीं हुआ है। पंचायतों में गौ चर की ज़मीन पर जिन लोगों ने कब्ज़ा किया है उसकी सूची बनेगी तो सारे राजनीतिक दल इस बहस से छुट्टी ले लेंगे। ज़्यादा दूध के लिए गाय को जो इंजेक्शन मारा जाता है वो कितना कष्टप्रद है। फिर भी गौ रक्षकों की सक्रियता की घटनाएं कोई बहुत बड़ी संख्या में नहीं हुई हैं। मगर इनसे जो दहशत का वातावरण फैला है उसका असर संख्या से ज़्यादा है। एक खास तबके में असुरक्षा फैल गई। लोगों को लगा कि कब कौन से मांस को क्या समझ लिया जाएगा। जब तक हिन्दू बनाम मुसलमान का एंगल था ज्यादातर चुप्पी थी, मगर दलितों ने इस चुप्पी को बदल दिया है। गुजरात में पिछले तीन दिनों में कई जगहों पर प्रदर्शन हुए हैं। अमरेली, जूनागढ़, राजकोट, घोराजी, पोरबंदर, भावनगर, अहमदाबाद सहित कई जगहों पर चक्का जाम से लेकर, बसों पर पथराव करने और तोड़फोड़ की घटनाएं हुई हैं। मोरवी ज़िले में 200 दलितों ने बंदूक के लाइसेंस की अर्ज़ी दे दी। सोमवार को गोंडल में पांच दलित युवाओं ने ज़हर पीकर आत्महत्या का प्रयास किया। जूनागढ़ में तीन युवाओं ने ज़हर पी लिया जिनमें से एक की मौत हो गई।
मायावती से लेकर सभी ने अपील की है कि ज़हर पीने की घटना न दुहराई जाए। ये अपील हम भी करते हैं। हिंसा का रास्ता ठीक नहीं है। गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि प्रधानमंत्री भी इस घटना पर दुखी हैं। मुख्यमंत्री आनंदीबेन ने 18 जुलाई को ही ट्वीट किया था कि 60 दिनों के अंदर आरोपपत्र दायर कर दिये जाएंगे। जांच का काम सी आई डी को सौंप दिया गया है। राज्य सरकार ने पीड़ितों को हर तरह की मदद का आश्वासन दे दिया था। घटना के 9 दिन बाद राज्य की मुख्यमंत्री उना गईं और पीड़ितों के परिवारों से मुलाकात की है। वहां उन्हें काले झंडे भी दिखाये गए।
सरकार और पार्टी और राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ को भी लगा कि इस बार की नाराज़गी कुछ और है। इंडियन एक्सप्रेस में आर एस एस के गुजरात प्रांत के संचालक मुकेश मलकन का बयान छपा है कि ये हिंदू समाज पर हमला है जो भाईचारे और शांति में यकीन रखता है। गऊ रक्षा के नाम पर दलित भाइयों के खिलाफ अत्याचार की घटना बहुत ही दर्दनाक और निंदनीय है। इस तरह का अमानवीय व्यवहार एक जघन्य अपराध है और ऐसा करने वालों को छोड़ा नहीं जाना चाहिए। अगर मुकेश जी का यह बयान सही से छपा है तो दिलचस्प है। इन्हें अघोषित राजनैतिक मान्यता प्राप्त है। मुकेश मलकन ने उना की घटना को हिन्दू समाज पर हमला बताया है। जब मुख्यमंत्री आनंदीबेन उना गईं तो उनके साथ साथ गांव वालों ने जो कहा उस पर सिर्फ गुजरात ही नहीं बल्कि हर राज्य को अपने अपने यहां चेक करवाना चाहिए।
11 जुलाई की घटना की गूंज 19 और 20 जुलाई को संसद में भी सुनाई दी। 9 दिन लग गए विपक्ष के सांसदों को समझने में गुजरात के दलितों के बीच इतना गुस्सा है। सरकार और विपक्ष के बीच खूब तकरार हुए। अब आते हैं कि हम इस पर प्राइम टाइम क्यों कर रहे हैं। बिना किसी व्यापक संगठन के गुजरात भर में दलितों का गुस्सा सड़कों पर कैसे छलका, क्या गुजरात में दलित आक्रामकता का कोई नया दौर है। इसके लिए हमारे साथ अहमदाबाद से दलित राजनीति को समझने वाले हैं। अब दूसरा सवाल यह है कि क्या गौ रक्षा के नाम पर हो रहे बवालों पर खुलकर बात कर सकते हैं। क्या ये छवि सही है कि समाज इस मसले पर एक ही तरह से सोचता है या सोचना ही पड़ेगा।
इस बात पर चर्चा के लिए हमारे साथ पुणे से विजय दीवान साहब हैं। मुंबई से सौ किमी दूर गगोड़ा गांव में ये आश्रम है। विनोबा भावे का गांव। ये आश्रम विनोबा आश्रम ही है। विजय दीवान की कोई जाति नहीं है, धर्म नहीं है। माता-पिता ब्राह्मण थे। 1982 में 25 साल की उम्र में विजय दीवान खाल उतारने का काम करने यहां आ गए। तब से मृत जानवरों की खाल उतारते हैं। इस काम में किसी का साथ नहीं मिलता, कोई सवारी नहीं मिलती, लिहाज़ा खाल उतारने के बाद अपनी पीठ पर लाद कर लाते हैं। सदियों से दलितों ने जिस काम के लिए दंश सहा, ज़हर पीया, उस दंश को अपनी पीठ पर लाद कर लाते हैं, जिस काम के लिए उना के दलितों की पीठ पर अल्युमूनियम की लाठी बरसाई गई। मेरी नज़र में विजय दीवान से बेहतर कोई दूसरा नहीं होगा इस मसले पर बात करने के लिए। उनके अनुभव आपको इस मसले पर नए तरीके से सोचने के लिए प्रेरित कर सकते हैं।
This Article is From Jul 20, 2016
प्राइम टाइम इंट्रो : गुजरात में सड़कों पर उतरा दलित आंदोलन
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:जुलाई 20, 2016 22:05 pm IST
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Published On जुलाई 20, 2016 22:05 pm IST
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Last Updated On जुलाई 20, 2016 22:05 pm IST
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