पहाड़ी प्रदेश में जमती पढ़ने की संस्कृति, लगातार तीसरा किताब कौथिग

पहाड़ी प्रदेश में पढ़ने की संस्कृति बढ़ रही, इसी का परिणाम है लगातार तीसरे किताब मेले का आयोजन होना. टनकपुर, बैजनाथ के बाद यह पुस्तक मेला 20 व 21 मई को चंपावत में आयोजित होगा.

पहाड़ी प्रदेश में जमती पढ़ने की संस्कृति, लगातार तीसरा किताब कौथिग

'किताब कौथिग' यानि 'किताबों का मेला'

उत्तराखंड:

कोरोना काल में पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में शराब के ठेकों पर लम्बी लाइन देखी जा रही थी, लेकिन कोरोना के बाद से प्रदेश की हवा कुछ-कुछ बदली-सी है. प्रदेश में पिछले पांच महीनों में दो पुस्तक मेलों का आयोजन किया जा चुका है और अब तीसरे की तैयारी है. टनकपुर, बैजनाथ के बाद यह पुस्तक मेला 20 व 21 मई को चंपावत में आयोजित होगा. प्रदेश में हो रहे इन पुस्तक मेलों को 'किताब कौथिग' नाम दिया जा रहा है, जिसका मतलब होता है 'किताबों का मेला'.

ऐसे हुई पुस्‍तक मेले की शुरुआत...
किताब कौथिग नाम रखने की वजह के पीछे के कारण पर बात करते, इन किताब कौथिगों को आयोजित करवाने में अहम भूमिका निभाने वाले हिमांशु कफलटिया बताते हैं कि कौथिग उत्तराखण्ड की अमूल्य धरोहर हैं. सदियों से पहाड़ की इस धरती पर धार्मिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, व्यापारिक, सामरिक कारणों से कौथिगों का आयोजन होता आया है. कालांतर में कुछ कौथिगों या मेलों ने भव्य रूप ले लिया, तो कुछ विलुप्त भी हो गए. दिसंबर 2022 में हेम पन्त और मैंने एक अभिनव प्रयास की शुरुआत की. हेम पंत पहाड़ी संस्कृति को बचाने के लिए काम कर रहे मंच 'म्योर पहाड़ मेरि पछ्यान' से जुड़े थे, तो मैं टनकपुर में एसडीएम पद पर रहते हुए 'सिटीजन पुस्तकालय अभियान' के माध्यम से समाज में पढ़ने लिखने की प्रवृत्ति को बढ़ावा देने का प्रयास कर रहा था. जब इन दो विचारों का मिलन हुआ, तो उससे एक नया विचार किताब कौथिग अर्थात किताबों का मेला हमारे सामने आया।
इस नए प्रयोग में टनकपुर के समाज के हर वर्ग ने अपना योगदान दिया और पहला किताब कौथिग बहुत ही सफल रहा. अब उत्तराखंड के युवा प्रशासनिक अधिकारी जैसे बागेश्वर की डीएम अनुराधा पाल व चम्पावत के डीएम नरेंद्र भंडारी किताब कौथिग परंपरा को बढ़ावा देने के साथ संरक्षित भी कर रहे हैं.

बाल साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त लेखक देवेंद्र मेवाड़ी ने टनकपुर किताब कौथिग की समाप्ति के बाद लिखा था कि नेपाल सीमा पर सदानीरा शारदा के किनारे बसे नगर टनकपुर के 'किताब कौथिग' से लौटा हूं. वहां आसपास कौथिग यानी मेले तो कई लगे होंगे, लेकिन टनकपुर के निवासियों ने अपने नगर में किताबों का कौथिग पहली बार देखा. हां पहली बार, इसीलिए यह उस नगर की  ऐतिहासिक घटना बन गई. इसके साथ ही इस घटना ने व्यापारिक शहर टनकपुर में एक नए साहित्यिक तथा सांस्कृतिक माहौल की शुरुआत कर दी है.

नेपाली भाषा के साहित्‍यकार भी हुए शामिल
24-25 दिसंबर को आयोजित इस कौतिक में सैकड़ों स्थानीय विद्यार्थियों और नगर निवासियों ने भाग लिया और वे अपने चहेते लेखकों और कलाकारों से मिले. मेले में दूर सिने नगरी मुंबई से उनके प्रिय अभिनेता हेमंत पांडे आए थे, तो दिल्ली शहर से जाने-माने यायावर लेखक उमेश पंत, देहरादून से प्रिय साहित्यकार गीता गैरौला, उमा भट्ट, मुकेश नौटियाल, युवा पीढ़ी की दिलों की धड़कन कॉमेडियन पवन पहाड़ी, चांद-तारों की कहानियां सुनाने वाले नैनीताल वेधशाला के वैज्ञानिक मोहित जोशी, पुस्तक संस्कृति की अनूठी अलख जगाने वाले 'आरम्भ' स्टडी सर्कल के समर्पित साथी, टोपी राम की कहानी सुनाते-गाते बच्चों के प्रिय उदय किरौला, घुघुती जागर टीम के प्यारे गायक राजेन्द्र ढैला व तीन सौ से अधिक चिड़ियों और जानवरों की आवाज़ें सुनाने वाले प्रकृति प्रेमी राजेश भट्ट शामिल हुए. वहां पड़ोसी देश नेपाल से आए दस प्रिय नेपाली भाषा के साहित्यकार भी थे.

हवा में उत्तराखंड के गीत गूंज रहे...
वहां मंच पर स्कूली बच्चे एक से एक बेहतरीन, मनभावन सांस्कृतिक कार्यक्रम पेश कर रहे थे. नन्हे बच्चों के अनोखे छोलिया नृत्य से आंखें नहीं हटती थीं. नगारे भी वे बच्चे उस्तादों की तरह खुद ही बजा रहे थे. दो बालिकाएं कुमाऊंनी चांचरी गीत की पंक्तियां गाती थीं और छोलिया नर्तक बच्चे नृत्य मोड में आ जाते थे. वहां किताबें थीं, प्रकाशक थे. टनकपुर नगर में बच्चों ने शायद पहली बार एक साथ इतनी सारी किताबें देखीं. किताबें देख कर उनके चेहरे खिल रहे थे.
वहां हवा में उत्तराखंड के गीत गूंज रहे थे-
'उत्तराखंड मेरी मातृभूमि 
मेरी पितृभूमि
म्यर हिमाला !'
- 'माया ले भरीया मन
बिन माया उदास
मेरि हिरू न्है गै
रंगीला भाबर !

 बड़ा मायालू गीत था यह, जिसकी लय-ताल पर बड़ी संख्या में बच्चों  से लेकर बड़े तक क़दम से क़दम मिला कर झोड़ा गा रहे थे.

प्रशासनिक अधिकारी हिमांशु कफलटिया के साथ किताब कौथिगों के सपने को साकार बनाने वाले पेशे से इंजीनियर हेम पन्त कहते हैं कि उनके और हिमांशु के मन में किताब कौथिग आयोजित करवाने का पहली बार विचार आया, तो टनकपुर से इसकी शुरुआत हुई. हमारा यह विचार था कि एक ही कार्यक्रम के साथ हम तीन-चार चीजों को जोड़कर आगे बढ़ें. जैसे शिक्षा, साहित्य, पर्यटन के साथ उत्तराखंड की विशिष्ट लोक संस्कृति भी इन कौथिगों में शामिल हो. हम इसको एक सामाजिक दायित्व की तरह ले रहे हैं. उत्तराखण्ड के जिस भी जिले का प्रशासन हमें सहयोग करेगा, हम वहां यह कार्यक्रम करने की कोशिश करेंगे.

बैजनाथ किताब कौथिग में उमड़ी भीड़
15 और 16 अप्रैल को बागेश्वर के बैजनाथ में सम्पन्न हुए किताब कौथिग में भी टनकपुर किताब कौथिग जैसी रौनक रही थी. बागेश्वर के कई विद्यालयों के विद्यार्थियों ने इस किताब कौथिग में भाग लिया और पचास से अधिक प्रकाशकों की किताबें कौथिग में उपलब्ध थी. कार्यक्रम में इतिहासकार शेखर पाठक,  उत्तराखंड के लोक संगीत को बढ़ावा दे रहीं माधुरी बर्थवाल, उत्तराखंड के सेवानिवृत्त पुलिस महानिदेशक उत्तराखंड श्री अनिल रतूड़ी शामिल थे.

टनकपुर किताब कौथिग में शामिल रहे चिड़ियों और जानवरों की आवाज़ें सुनाने वाले प्रकृति प्रेमी राजेश भट्ट यहां भी शामिल हुए. एरीज और नक्षत्र संस्था ने संयुक्त रूप से एस्ट्रोनॉमी से जुड़े क्रियाकलापों को भी इस कार्यक्रम में शामिल किया गया था.

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(हिमांशु जोशी उत्तराखंड से हैं और प्रतिष्ठित उमेश डोभाल स्मृति पत्रकारिता पुरस्कार प्राप्त हैं. वह कई समाचार पत्र, पत्रिकाओं और वेब पोर्टलों के लिए लिखते रहे हैं.)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.