आज हम जिस विषय पर चर्चा करने जा रहे हैं, वह काफी महत्वपूर्ण है. साल 2023 की मल्टीडाइमेंशनल पॉवर्टी इंडेक्स रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के एक तिहाई गरीब दक्षिण एशिया में रहते हैं. यह आंकड़ा करीब 38.9 करोड़ के बराबर है. इनमें से गरीबी के जाल में फंसे करीब 70 फीसदी लोग भारत में रहते हैं.
भारत में वंचित या जरूरतमंद लोगों की बात करें तो, बच्चों की अनदेखी नहीं की जा सकती. क्योंकि बच्चों पर गरीबी का सबसे गंभीर प्रभाव पड़ता है. युनिसेफ की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में करीब 20 फीसद बच्चे कुपोषण का शिकार हैं. इससे उनमें बीमारियों और उनका ठीक से विकास न होने की आशंका कई गुना बढ़ जाती है. इन बच्चों को अक्सर खाना, कपड़े और रहने की जगह जैसी बुनियादी जरूरतों तक के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है.भारत और कई दूसरे विकासशील देशों में महिलाएं घरेलू कामकाज से लेकर खेती और परिवार के कारोबार तक में हाथ बंटाती हैं. इस काम के लिए उन्हें कोई वेतन नहीं मिलता.
ऑब्जर्बर रिसर्च फाउंडेशन के मुताबिक 2017-18 और 2022-23 के बीच बिना वेतन के काम करने वाली महिलाओं की संख्या 31.7 फीसदी से बढ़कर 37 फीसदी हो गई है. ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2024 के लिंक्डइन डेटा के मुताबिक लीडरशिप रोल में महिलाओं की संख्या में गिरावट आई है. ऐसे में दो पहलुओं पर ध्यान देना जरूरी है- कार्यस्थल पर महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना और उन महिलाओं को सहयोग प्रदान करना जो देश में जरूरतमंद बच्चों के कल्याण के लिए काम कर रही हैं.
चुनौतियां और बाधाएं
लैंगिक पक्षपात और भेदभाव की वजह से महिलाओं को लीडरशिप रोल से वंचित रखा जाता है.पीडब्ल्यूसी के एक सर्वेक्षण के मुताबिक करीब 54 हजार कर्मचारियों ने बताया कि कार्यस्थल पर महिलाओं की तुलना में पुरुषों को प्राथमिकता दी जाती है. सर्वेक्षण में सामने आया कि वे महिलाएं जो अपने आपको अधिक समावेशी महसूस करती हैं,उनके द्वारा वेतन वृद्धि के अनुरोध की संभावना 1.4 गुना और प्रोमोशन के अनुरोध की संभावना 1.5 गुना होती है. वे लिंग समावेशी नीतियों को बढ़ावा देने,भेदभाव को दूर करने और एक समान अवसरों को सुनिश्चित करने में मुख्य भूमिका निभा सकती हैं. इस अध्ययन में पाया गया कि समावेशित महिलाओं में नौकरी में संतुष्ट महसूस करने की संभावना 2.3 गुना और कौशल विकास की संभावना 1.7 गुना होती है.इसलिए समावेशन मायने रखता है.
पुरुष प्रधान समाज में महिलाएं अक्सर परिवार या समाज की ओर से रुकावटों का सामना करती हैं. रूढ़ीवादी सोच की वजह से महिलाओं को काम करने की इजाजत नहीं मिलती है. ज्यादातर महिलाओं पर परिवार की देख-रेख का बोझ भी होता है,ऐसे में काम के साथ-साथ इन सभी जिम्मेदारियों को निभाना उनके लिए बेहद मुश्किल हो जाता है. अगर महिलाएं कुछ करना भी चाहें तो उन्हें अपने प्रोजेक्ट के लिए पैसा और जरूरी प्रशिक्षण नहीं मिल पाता है. अक्सर महिलाओं को सुरक्षा संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के मुताबिक,ग्रामीण महिलाओं के यौन शोषण, उत्पीड़न की संभावना अधिक होती है. उनके साथ लैंगिक हिंसा के मामले भी अधिक देखे जाते हैं.
कैसे कर सकते हैं मदद
इसका सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि महिलाओं को लीडरशिप रोल के लिए प्रोत्साहित किया जाए. महिला लीडर्स हमेशा अन्य महिलाओं का सहयोग कर उनके सशक्तीकरण में योगदान देती हैं. महिला लीडर्स मार्गदर्शन का महत्व समझती हैं.इनमें से ज्यादातर महत्वाकांक्षी युवतियां होती हैं,जो अन्य महिलाओं को अपनी क्षमता समझने और समाज की मुश्किलों से निपटने में मदद करती हैं.
ऐसे में जरूरी है कि महिलाओं को लीडरशिप, प्रोजेक्ट मैनेजमेंट में प्रशिक्षण और कौशल उपलब्ध कराया जाए.यह सुनिश्चित किया जाए कि ऐसी महिलाओं को माइक्रो फाइनेंस या क्राउड फंडिंग प्लेटफॉर्म के जरिए अपने काम के लिए जरूरी फंडिंग मिले.
सोशल मीडिया और अन्य ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स की मदद से उपरोक्त समस्याओं को हल करने के लिए जागरूकता अभियान चलाए जा सकते हैं. पुरुष सहकर्मियों और स्थानीय अधिकारियों का सहयोग भी इन समस्याओं को हल करने में कारगर हो सकता है. वर्ल्ड इकोनोमिक फोरम के मुताबिक 136 सतत विकास लक्ष्यों में से 70 फीसदी से अधिक को पूरा करने में आधुनिक टेक्नोलॉजी कारगर हो सकती है. यह तकनीकी 2030 तक इन लक्ष्यों को हासिल करने में योगदान दे सकती है. टेक उद्योग में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाई जा सकती है.
महिलाओं की मानसिक समस्याएं
मैककिंसे हेल्थ इंस्टीट्यूट्स ने 30 देशों में 30 हजार से अधिक कर्मचारियों में किए गए एक अध्ययन में पाया कि महिलाओं को अक्सर मानसिक समस्याओं से जूझना पड़ता है.इसका समाधान करने के लिए करने के लिए महिलाओं के लिए मानसिक स्वास्थ्य प्रोग्राम, कार्यशालाओं, चर्चा का आयोजन करने की जरूरत है. ऐसा करके पेशेवर और व्यक्तिगत स्तर पर महिलाओं की मदद की जा सकती है. ये प्लेटफॉर्म कार्यस्थल पर महिलाओं के कल्याण को बढ़ावा देकर उनके सशक्तीकरण की दिशा में कारगर हो सकते हैं.
वहीं सरकारों को महिलाओं के कल्याण के लिए चलाए जा रहे कार्यक्रमों के लिए अनुदान, सब्सिडी और कर में छूट जैसे प्रावधान करने चाहिए.कानून के जरिए महिलाओं की चुनौतियों को हल किया जा सकता है. वहीं हर आकार-प्रकार के संगठनों को यौन शोषण के खिलाफ सख्त नीतियां बनानी चाहिए.इसके जरिए यौन शोषण के मामलों के प्रति शून्य सहिष्णुता, आपत्तिजनक भाषा या अनुचित व्यवहार के मामलों से निपटने के लिए कर्मचारियों की शिक्षित-प्रशिक्षित किया जाए और उल्लंघन के मामलों में स्पष्ट और सख्त परिणाम देने की जरूरत है.
महिलाओं को अवसर देने का फायदा
महिलाओं को उचित अवसर देकर जरूरतमंद बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं और आजीविका के अवसरों में सुधार लाया जा सकता है. इस तरह के प्रयास न सिर्फ बच्चों के जीवन में सुधार ला सकते हैं बल्कि उन्हें गरीबी के जाल से बाहर निकालकर समाज के विकास को भी सुनिश्चित कर सकते हैं. डब्लूईएफ की मैनेजिंग डायरेक्टर शाइदा जाहिदी के मुताबिक देखभाल की उचित सुविधाओं की कमी, कार्यस्थल पर नई तकनीकों में बाधा जैसे कई कारक हैं, जिन्होंने पिछले सालों में महिलाओं को प्रगति से रोका है.
रोचक तथ्य यह है कि कार्यबल में महिलाओं की भगीदारी बढ़ने से ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाएं भी कार्यबल का हिस्सा बनी हैं.पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे 2022-23 के मुताबिक कार्यबल में शहरी महिलाओं की भागीदारी पांच फीसदी और ग्रामीण महिलाओं की भागीदारी 14 फीसद बढ़ी है.बड़े पैमाने पर इन चुनौतियों को हल करने के लिए, उनकी समस्याओं को सुनने के साथ-साथ उन्हें हल करने के प्रयास भी करने होंगे. इन्हें हल कर ही उनके जीवन पर सकारात्मक प्रभाव को सुनिश्चित किया जा सकता है.
(लेखक समर्पण ट्रस्ट और वन लाइफ टू लव यूएसए की संस्थापक और निदेशक हैं. यह ट्रस्ट हाशिए के समाज खासकर अनाथ, परित्यक्त बच्चों और महिलाओं को सशक्त बनाने की दिशा में काम करता है. )
अस्वीकरण: इस लेख में दिए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं, उनसे एनडीटीवी का सहमत होना या असहमत होना जरूरी नहीं है.
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