'भारत' के कॉमेडियन राजू 'इंडिया' को बहा ले गए, आज कई 'गजोधरों' की दरकार...!

राजू श्रीवास्तव अपने आप में प्रोडक्ट रहे और ऐसा उत्पाद कई सालों की तपस्या से तैयार होता है. उनके साथ खासा समय गुज़ारने वाले एक साथी बताते हैं कि कैसे राजू ज़मीनी थे और छोटे शहरों की घटनाओं का बारीकी से आकलन करने के लिए कुंभ के मेले या बाकी जगहों पर चेहरा छिपाकर कई-कई घंटे घूमते रहा करते थे.

'भारत' के कॉमेडियन राजू 'इंडिया' को बहा ले गए, आज कई 'गजोधरों' की दरकार...!

नई दिल्ली:

कई साल पहले साल 2007 में एक चैनल पर शुरू हुए 'कॉमेडी सर्कस' के एक शो में जब राजू श्रीवास्तव स्टेज पर परफॉर्म कर लौटने लगे, तो जज नवजोत सिंह सिद्धू ने उन्हें रोका और कहा, "तुम कॉमेडी के सचिन तेंदुलकर हो...!"

बात बहुत हद तक सही थी. तब से हालिया सालों तक राजू श्रीवास्तव ने अपना कद ही ऊंचा नहीं किया, इस पेशे को सम्मान भी दिलाया. भारत में करीब 15-16 साल पहले प्राइवेट चेनलों पर स्टैंड-अप या कॉमेडी शो शुरू हुए, लेकिन शुरुआती कुछ सालों तक भी कॉमेडियन को सम्मान की नज़र से नहीं देखा जाता था. और अगर आज स्टैंड-अप कॉमेडियनों की भरमार है, तो उसके पीछे राजू श्रीवास्तव का बहुत बड़ा योगदान है. आपको इंडिया (मुंबई, दिल्ली जैसे मेट्रो सिटी) के बार-रेस्त्रां या यू-ट्यूब चैनलों पर बहुतायत में कॉमेडियन मिल जाएंगे, लेकिन कोई भी राजू श्रीवास्तव के आस-पास भी नहीं टिकता. और वजह यही है कि राजू श्रीवास्तव व्यापक दृष्टि से भारत (टियर-2 या 3 के शहर (मेरठ, शाहजहांपुर), गांव, कस्बे, देशी, आम आदमी, वगैरह) के कॉमेडियन रहे और यही उनकी USP रही. मध्यम-वर्ग की शादी-विवाह समारोह की घटनाओं, फूफा और मामा के चरित्रों के साथ वास्तविक घटनाओं को राजू श्रीवास्तव ने जिस बारीकी के साथ उतारा, वह 'इंडिया' (मेट्रो सिटी, अपर वर्ग, इंग्लिश कल्चर में पले-बढ़े वर्ग) को भी अपने साथ बहाकर ले गया.

राजू श्रीवास्तव अपने आप में प्रोडक्ट रहे और ऐसा उत्पाद कई सालों की तपस्या से तैयार होता है. उनके साथ खासा समय गुज़ारने वाले एक साथी बताते हैं कि कैसे राजू ज़मीनी थे और छोटे शहरों की घटनाओं का बारीकी से आकलन करने के लिए कुंभ के मेले या बाकी जगहों पर चेहरा छिपाकर कई-कई घंटे घूमते रहा करते थे. राजू की लगभग सभी प्रस्तुतियों में इसी भारत के दर्शन हुए. मसलन, मेले में बच्चे के खो जाने पर एनाउंसर का अंदाज.... छोटे शहरों में सड़कों पर दिखाए जाने वाले बंदर-बंदरिया के खेल में बंदर की भाव-भंगिमा या उसकी मनोदशा को प्रस्तुत करना आदि वे तमाम बातें हैं, जो पखवाड़े भर में नहीं आता! इसके लिए सालों खुद पर काम करना पड़ता है.

ये वे बातें हैं, जो आज के या मेट्रो सिटीज़ के बार-रेस्त्रां / इंडिया कल्चर के स्टैंड-अप कॉमेडियन बमुश्किल ही पकड़ पाएं! ये इंडिया के ऐसे स्टैंड-अप कॉमेडियन हैं, जिनका अंदाज़ बमुश्किल ही हंसाता है, इनमें नैसर्गिकता का अभाव साफ दिखता है और उस भारत के छोटे-छोटे शहरों, गलियों-मोहल्लों के दर्शन ही नहीं होते, जिन्हें राजू ने अपनी USP बनाकर पूरे इंडिया को खुद से जोड़ लिया!

कॉमेडी के प्रारूपों की बात करें, तो इसके लगभग 12-13 प्रारूप हैं. इसमें स्लैपस्टिक (फिज़िकल, चेहरों की भाव-भंगिमा), डॉर्क कॉमेडी, सिट कॉमेडी (हालात के हिसाब से), स्टैंड-अप कॉमेडी वगैरह-वगैरह शामिल हैं. भारत में सेटेलाइट चैनलों के आने से पहले तक कॉमेडियनों ने फिल्मों के ज़रिये ही पहचान बनाई. इनमें केश्टो मुखर्जी, जॉनी वॉकर, महमूद, राजेंद्रनाथ, किशोर कुमार सहित कई ऐसे कॉमेडियन रहे, जिन्होंने बड़े पर्दे से अपनी खासी पहचान बनाई, लेकिन समय आगे बढ़ा, तो '80 के दशक में जॉनी लीवर के रूप में ऐसा कॉमेडियन मिला, जिसने न केवल बड़े पर्दे पर गज़ब की छाप छोड़ी, बल्कि स्टेज शो करते-करते जॉनी लीवर का स्तर भारत की स्टैंड-अप विद्या में ऐसा हो गया, जो आज भी अतुलनीय है! यह बात अलग है कि सेटेलाइट चैनलों के युग में जॉनी लीवर ने खुद को टीवी शोज़ से अलग रखा और फैन्स को लीवर से मनमाफिक मनोरंजन नहीं मिला. लेकिन लीवर यदा-कदा जब भी फिल्मफेयर या किसी अवार्ड में कुछ देर के लिए स्टेज पर आए, तो उनकी क्लास ने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया.

मगर '80 के दशक के अंत में अनिल कपूर की 'तेज़ाब' से अपने करियर की शुरुआत करने वाले राजू श्रीवास्तव को अपनी अथक साधना का फल और यश दो दशक बाद चैनल पर स्टैंड-अप विद्या से ही मिला. करीब दो दशक के सिनेमाई अनुभव के साथ जब राजू स्टैंड-अप की पिच पर उतरे, तो पूरा देश उनका दीवाना हो गया, क्योंकि '2000 के पहले दशक के मध्य में छोटे शहरों और हिन्दीभाषी क्षेत्रों का करीब-करीब पहली बार स्टैंड-अप विद्या से सही तरह परिचय हो रहा था. और जब परिचय हुआ, तो दर्शकों के सिर चढ़कर बोला और इसका नशा लगातार बढ़ता ही गया. इसी दौरान, उनके साथ शो में कपिल शर्मा, एहसान कुरैशी, भगवंत मान (अब पंजाब के मुख्यमंत्री) सहित कई कॉमेडियन थे, जो कॉमेडी के अलग-अलग प्रारूपों में अपनी प्रतिभा परोस रहे थे. अगर इसमें कपिल शर्मा फिज़िकल कॉमेडी के मास्टर थे, तो स्टैंड-अप में राजू श्रीवास्तव का कोई जोड़ नहीं था.

शुरुआत में इन सभी कॉमेडियनों को अजीब या कहें कि वैसी ही नज़र से देखा जा रहा था, जैसे पुराने सिनेमाई हास्य कलाकरों को देखा जाता था. ये तमाम लोग उपहास का विषय ज्यादा होते थे! लेकिन अगर आज हंसने-हंसाने का पेशा इस स्तर पर पहुंचा है, या कॉमेडियन भी लगभग हीरो का रूप ले चुका है और लाखों युवा इस पेशे को अपना रहे हैं, तो इसमें राजू श्रीवास्तव का बहुत बड़ा योगदान है. इस पेशे को उन्होंने आज कहां पहुंचा दिया है, यह प्रधानमंत्री सहित अलग-अलग क्षेत्रों से उन्हें मिल रही श्रद्धांजलि से साफ देखा और महसूस किया जा सकता है. राजू का जाना ऊपर वाले की बहुत ज़्यादती है! शायद 'ईश्वरीय संसार' में मनोरंजन के लिए कोई कॉमेडियन नहीं बचा होगा!

लेकिन देश से एक ऐसा कॉमेडियन ज़रूर चला गया, जिसकी और जिसके अंदाज़ और चरित्रों की कमी हमेशा-हमेशा खलेगी. खासकर ऐसे दौर में, जब कोविड काल के बाद मिडिल क्लास अब निम्न-मध्यमवर्गीय वर्ग में बदल गया है. और एक ऐसे दौर में जहां महामारी में अपनी खर्च हो चुकी जमा-पूंजी, बढ़ती बेरोज़गारी, महंगाई और भविष्य की चिंता ने इस वर्ग की मानो मुस्कान ही छीन ली. शाम को दिनभर का थका-हारा, मुरझाए चेहरों के साथ यह वर्ग घर लौटता है, तो बहुत हद तक यह राजू श्रीवास्तव या कपिल शर्मा जैसे शो ही हैं, जो उनके लिए टॉनिक का काम करते हैं और बोझिल चेहरों पर कुछ मुस्कान लाते हैं. निश्चित ही, इस दौर में एक नहीं, कई राजू श्रीवास्तवों की दरकार है!

मनीष शर्मा ndtv.in में डिप्टी न्यूज़ एडिटर हैं...

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डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.