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This Article is From Jun 30, 2015

अच्छा है कि मैं श्रुति की तरह फेमस और कविता की तरह विद्रोही नहीं : स्वाति अर्जुन

Swati Arjun
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  • Updated:
    जून 30, 2015 21:13 pm IST
    • Published On जून 30, 2015 20:21 pm IST
    • Last Updated On जून 30, 2015 21:13 pm IST
बीते रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रेडियो पर प्रसारित किए जाने वाले अपने मन की बात कार्यक्रम में देशभर के पिताओं से आग्रह किया कि वो अपनी-अपनी बेटियों के साथ अपनी सेल्फी खिंचवा कर उन्हें भेजें ताकि देश भर में बेटी बढ़ाओ- बेटी बचाओ अभियान को सफलता मिल सके।

जैसा हमेशा होता है पीएम के इस आग्रह का जहाँ कुछ लोगों ने स्वागत किया वहीं कुछ ने इसका विरोध भी किया।
विरोध के स्वर उठाने वालों में कुछ मुख़र महिलाएं भी थीं जिनमें महिला एक्टिविस्ट कविता कृष्णन और एक्ट्रेस श्रुति सेठ शामिल हैं।

कविता के विरोध का स्वर ज़्यादा तल्ख़ था, उन्होंने पीएम मोदी पर गुजरात के मुख़्यमंत्री काल के दौरान एक लड़की की जासूसी करवाने के आरोप की चर्चा की, जबकि श्रुति सेठ ने अपने ट्वीट में प्रधानमंत्री से कहा कि सेल्फ़ी वो माध्यम नहीं है जिससे महिलाओं से जुड़ी समस्याओं का अंत हो सके।   

मैंने भी एक महिला होने के नाते पीएम के इस आह्वान् का विरोध अपने फेसबुक पेज पर किया था, लेकिन पब्लिक डोमेन में न होने के कारण शायद मुझे वो विरोध और धमकियाँ नहीं दी गईं जो कविता कृष्णन और श्रुति सेठ को मिलीं।

और आज इस घटना के 24 घंटे बाद मैं खुश हूं कि न मैं श्रुति सेठ की तरह फेमस एक्ट्रेस हूँ, न ही कविता कृष्णन की तरह एक एक्टिविस्ट की है, अगर होती तो शायद मैं भी कहीँ न कहीं इस सदमे में जीती कि मेरे आधार कार्ड, पासपोर्ट और मतदान पहचान पत्र में राष्ट्रीयता का जो कॉलम मैंने भरा है वो मेरी सच्ची पहचान है भी या नहीं।

श्रुति के इस ट्वीट के बाद उन्हें न सिर्फ़ उनके काम बल्कि उनके मुसलमान पति के हवाले से गंदी गालियाँ दी गईं, उनके माता पिता, उनकी बेटी और उनकी दो कौड़ी के करियर को ख़ूब गाली दी गई। उन्हें सरेआम पब्लिसिटी की भूखी, देशद्रोही और एक मुसलमान से शादी करने के कारण अहिंदू करार दिया गया।

इससे भी विभत्स रहा कविता कृष्णन का दिन क्योंकि उन्होंने प्रधानमंत्री पर लगे एक आरोप को दोबारा लोगों के सामने ला खड़ा किया था। कविता को उनके साथ रेप करने, उनका चेहरा बिगाड़ने से लेकर उन्हें मार देने तक की धमकी दी गई।

पर शायद उनके साथ ये पहली बार नहीं हुआ है या फिर वो हिम्मती हैं, लेकिन मैं एक औरत होने के नाते डर गई हूँ।
मैं डर गई हूँ कि क्योंकि मैं भी पीएम के इस आह्वान से इत्तेफाक़ नहीं रखती, क्योंकि मैं भी उनकी हां में हाँ नहीं मिला सकती क्योंकि मैं ये मानती हूँ कि प्रधानमंत्री जिस पद पर बैठे हैं वहाँ उन्हें लड़के और लड़कियों में भेदभाव नहीं करना चाहिए।

एक मां होने के नाते मुझे ऐसा लगता है कि आज के समाज में मेरा मासूम बेटा भी उतना ही संवेदनशील और vulnerable है जितना एक बच्ची।

मुझे लगता है कि अजन्मे बच्चियों की हत्या एक सामाजिक से ज्य़ादा पारिवारिक समस्या है, जहाँ परिवार के भीतर की सोच बदलने की ज़रुरत है। हमारे समाज में बेटियों ही नहीं बल्कि महिलाओं के लिए भी सोच बदलने की ज़्यादा ज़रुरत है। मुझे नहीं लगता कि जिस परिवार में एक बेटी स्वीकार्य नहीं वहाँ बहुओं को सम्मान दिया जाता होगा। तय है कि उन परिवारों की बहुएं भी ज़िल्लत की ज़िंदगी जी रहीं होंगी।  

मैं जब घर से दफ़्तर जाती हूं तो इस चिंता में रहती हूँ कि मेरा बच्चा सुरक्षित है या नहीं, उसके स्कूल वैन का ड्राईवर उसे सुरक्षित स्कूल पहुंचाता है या नहीं, उसके स्कूल में कोई चपरासी, कोई अटेंडेंट, कोई टीचर उसके प्राईवेट पार्ट्स को गलत तरीके टच तो नहीं करता। सीनियर क्लास के बच्चे उसे डराते-धमकाते तो नहीं, टीचर बच्चे को मारती-पीटती तो नहीं, घर आने पर मेड सर्वेंट उसे खाना तो देती है? कहीं कोई उसका अपहरण न हो जाए, कोई मेरे बच्चे के हाथ-पैर तोड़कर उससे भीख़ न मंगवाने लग जाए, कहीँ कोई उसे मुझसे हमेशा के लिए दूर न कर दे।

प्रधानमंत्री जी, हम सब एक दहलाने वाले समय में जी रहे हैं, ऐसा समय जहाँ बच्चे सबसे ज्य़ादा खतरों के बीच जीने वाले मासूम ख़िलाड़ी बन गए हैं, वो ख़िलाड़ी जिन्हें पता ही नहीं कि कब वे शतरंज के बिसात पर बिछने वाले मोहरे बन गए हैं। आप देख लें चाहे कोई प्राकृतिक आपदा हो या एक्सिडेंट, कोई आतंकवादी हमला हो या दंगा, बर्बाद होती तमाम ज़िंदगियों में बिख़राव सबसे ज़्यादा उन मासूम बच्चों का होता है जिनका इन सबसे कोई लेना देना नहीं होता।

इसलिए जब आप बेटियों को बचाने की बात करते हैं तो मुझे निराशा होती है, हमारे नेता होने के नाते मैं चाहती हूँ कि आप हमारे बच्चों को बचाने की पहल करें। उन्हें बेहतर और सुरक्षित ज़िंदगी का भरोसा दें।

उन बच्चों को एक दूसरे की इज्ज़त करने की शिक्षा दें, उन्हें बताएं कि वे एक दूसरे के साथ खूब लड़ें-झगड़ें, कंपीट करें, मदद करें, न मन हो न करें लेकिन एक दूसरे को स्वीकार करें और बेहतर समाज बनाएं।    

एक ऐसा समाज कि अगर कल कोई आपसे या आप जैसे किसी बड़े नेता या व्यक्ति की राय से सहमत न हो तो उसे कोई पुरुष मार डालने, चेहरा बिगाड़ देने या रेप करने की धमकी न दे।

प्रधानमंत्री जी, मैं सिर्फ़ आपको याद दिलाना चाहती हूँ कि कविता और श्रुति भी हमारे ही देश की बेटियाँ हैं, उनकी भी रक्षा की ज़िम्मेदारी आपकी ही है।

बेटियों की रक्षा सिर्फ़ सेल्फ़ी खिंचवाने से नहीं होगी, उनकी सेल्फ़ रिस्पेक्ट को सम्मान देने से होगी, उनकी असहमति की आवाज़ को स्वीकार करने से होगी।
 

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