जब नीतीश कुमार के घर के सामने दिखा बिहार पुलिस का असली चेहरा...

मेरा अनुभव लगभग हर राज्य की पुलिस के साथ हो चुका है. पूर्व में महिला आयोग की तरफ से मैं कई बार बिहार जा चुकी हूं और वहां की पुलिस से रूबरू भी हो चुकी हूं, पर उनका असली चेहरा कभी देख नहीं सकी.

जब नीतीश कुमार के घर के सामने दिखा बिहार पुलिस का असली चेहरा...

हम शांतिपूर्वक अपनी इच्छा लेकर वहां पहुंचे थे: योगिता भयाना

मेरा अनुभव लगभग हर राज्य की पुलिस के साथ हो चुका है. पूर्व में महिला आयोग की तरफ से मैं कई बार बिहार जा चुकी हूं और वहां की पुलिस से रूबरू भी हो चुकी हूं, पर उनका असली चेहरा कभी देख नहीं सकी. इस बार जब मैं रेप पीड़ित परिवार की मदद के लिए एक एक्टिविस्ट के तौर पर बिहार पहुंची, तब पता चला कि राज्य की पुलिस कितनी असंवेदनशील है. हो सकता है, वे सुरक्षा के मद्देनजर कड़ा रुख अपनाते हों, परंतु पुलिस को इस तरह असंवेदनशील नहीं होना चाहिए.

मैं बांका रेप कांड में मृत बच्ची के पिता के साथ उनका दर्द साझा करने राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिलना चाहती थी. बच्ची के पिता घटना की त्रासदी में मुख्यमंत्री से मदद की उम्मीद रखते हैं. हमारा मकसद कोई विरोध प्रदर्शन करने का नहीं था, हम बस मानवीय तौर पर अपनी तकलीफ को उनके समक्ष रखना चाहते थे.

मेरे साथ बच्ची के पिता सहित और दो लोग थे. एक बच्ची के चाचा और उनके करीबी मित्र, बस चार लोग. हम शांतिपूर्वक अपनी इच्छा लेकर वहां पहुंचे थे, लेकिन हम पर पुलिस ने असामाजिक तत्व होने का झूठा आरोप लगाया, ताकि वे हमारी आवाज़ दबाकर हमें वहां से खदेड़ सकें. कम से कम उन्हें बच्ची के पिता के साथ अच्छे से पेश आना चाहिए था.

सामाजिक उत्थान से जुड़ी मांगों को लेकर मैं कई बार हिरासत में ली गई हूं, लेकिन जिस तरह वहां के सचिवालय में कार्यरत थाना प्रभारी सी.पी. गुप्ता ने मेरे साथ दुर्व्यवहार किया, तुम-तड़ाका किया, ऐसा व्यवहार मेरे साथ आज तक किसी भी राज्य की पुलिस ने नहीं किया है.

इनके अलावा IPS ऑफिसर, जो खुद भी महिला हैं, एसीपी काम्या मिश्रा ने भी हमारे साथ खराब व्यवहार किया. वह कहने लगीं, "इन लोगों को मैं देख लूंगी..." उन्होंने भी अपने पोस्ट का गलत इस्तेमाल किया.

इन पुलिस वालों के मुंह पर एक ही बात थी - "महिला हो, महिला की तरह रहो..."

खैर...

"महिला हो, महिला की तरह रहो..." यह वाक्य समाज में खूब तैर रहा है.

महिला को महिला की तरह रहना है... रहने दोगे...?
महिला को सम्मान से रहना है,
महिला को अधिकार से रहना है,
महिला को सुरक्षित रहना है,
महिला को समानता से रहना है,
महिला को निर्भय और स्वतंत्र रहना है,
महिला को आत्मनिर्भर रहना है...

मैं अपने अनुभव से बताना चाहती हूं कि बिहार राज्य पुलिस को पूर्ण रूप से रीफॉर्म की ज़रूरत है. छोटे पद पर कार्यरत अधिकारी तो असंवेदनशील हैं ही, वहां के IPS अधिकारी भी उनसे पीछे नहीं हैं.

उन्हें हमारी सुरक्षा और कानूनी समाधानों के लिए ड्यूटी पर रखा गया है, लेकिन शायद पद की ताकत को वे लोगों के खिलाफ ही इस्तेमाल करने लगे हैं.

जब मैं 4 घंटे उनके थाने में हिरासत में थी, तब वहां एक लड़की डोमेस्टिक वायलेंस का केस लेकर आती है, उसने बताया कि उनके साथ उनके पति बहुत मारपीट करते हैं. हैरानी की बात यह है कि लड़की की समस्या सुने बगैर थाने में उसे डांट-डपटकर चुप करा दिया जाता है. मैं उस लड़की की मदद करना चाहती थी, मगर वहां बातचीत करने की इजाज़त नहीं दी गई.

यह सब देखकर मुझे महसूस हुआ कि राज्य की पुलिस को महिला सुरक्षा और मुद्दों को लेकर रीफॉर्म और स्पेशल ट्रेनिंग की ज़रूरत है. जिस थाने की मैं बात कर रही हूं, वह पटना के रिहायशी इलाके में आता है. पटना में यह हाल है, तो ज़रा सोचिए, गांव-देहात के थानों में पीड़ितों के साथ क्या होता होगा...?

जब हम सुनते हैं कि किसी रेप पीड़िता को मदद की आस में किन-किन त्रासदियों से गुज़रना पड़ता है, तो यह भी स्वाभाविक है कि गांव-देहात के इलाकों में रेप के कई मामलों को इसी तरह पुलिस वालों द्वारा डांट-डपटकर दबा दिया जाता होगा, यह बहुत दुःखद है.

योगिता भयाना सामाजिक कार्यकर्ता तथा PARI (पीपल अगेन्स्ट रेप्स इन इंडिया) की संस्थापक हैं...

Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.