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This Article is From Mar 20, 2017

प्राइम टाइम इंट्रो : अपनी पुरानी छवि से बाहर निकलना योगी के सामने बड़ी चुनौती

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मार्च 21, 2017 09:16 am IST
    • Published On मार्च 20, 2017 21:43 pm IST
    • Last Updated On मार्च 21, 2017 09:16 am IST
बहुतों के लिए यह मान लेने में कोई बुराई नहीं है कि उन्हें तो न विकास की समझ है और हिन्दुत्व की जानकारी. यह और बात है कि इसके बिना भी कई लोग पक्ष में और विपक्ष में दोनों के बारे में प्रमाणिक टिप्पणी करने का दावा करते रहते हैं. यह बात बीजेपी विरोधी विरोधी लिबरल पर भी लागू है और बीजेपी समर्थक लिबरल पर भी. वैसे ही जैसे आपको कट्टर हिन्दुत्व और नरम हिन्दुत्व में फर्क करना सिखाया गया है, जिसकी परिपाटी 1905 से चली आ रही है जब गरम दल और नरम दल के कारण कांग्रेस का विभाजन हुआ था. हिन्दुत्व अगर अमृत है तो कट्टर और नरम के फासले का क्या मतलब है, हिन्दुत्व अगर ज़हर है तो कट्टर और नरम का क्या मतलब है.

चुनाव से पहले की तमाम रिपोर्टिंग देखिये, योगी आदित्यनाथ ही मुख्यमंत्री की दावेदारी कर रहे थे. चुनाव के दौरान की तमाम रिपोर्टिंग देखिये, योगी आदित्यनाथ के समर्थक ही दावेदारी कर रहे थे. हिन्दू युवा वाहिनी के बगावत की खबर आती है, शांत हो जाती है, गोरखपुर में अमित शाह के रोड शो को नए मुख्यमंत्री यादगार बना देते हैं, चुनाव के बाद फिर लोग क्यों भूल गए कि योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे. चुनाव के दौरान उनके समर्थक जो बीजेपी में हैं और जो उनके भी हैं, डीजे गीत बनाकर बीजेपी की रैलियों में बजा रहे थे. योगी को सीएम बनाना है, गा रहे थे. पूरे चुनाव में तमाम दावेदारों के बीच किसी ने अपनी दावेदारी प्रखरता से की है तो वो योगी थे. ज़रूर केशव प्रसाद मौर्य की दाद दी जानी चाहिए क्योंकि उन्होंने प्रधानमंत्री और कामयाब अध्यक्ष अमित शाह के एकछत्र राज के नीचे अस्पताल में भर्ती होकर या अन्य गुप्त तरीकों से अपनी दावेदारी की. मौर्य मुख्यमंत्री नहीं बन पाए, लेकिन नए होने के बाद भी उन्होंने कोशिश योगी जी से कम नहीं की.

राजनीति को हमेशा हार और जीत के खांचे में नहीं देखना चाहिए. हार में भी कोई जीत रहा होता है, जीत में भी कोई हार रहा होता है. मुख्यमंत्री योगी के उभरने से जीत के इस क्षण में कौन हारा है, कोई हारा भी है या नहीं, इसके लिए आप उस प्रेस पर कैसे भरोसा कर सकते हैं जो सूत्रों के हवाले से राजनाथ सिंह, मनोज सिन्हा, स्वतंत्रदेव सिंह को मुख्यमंत्री बनवा रहा था. स्वतंत्र देव जी राज्यमंत्री बने. मनोज सिन्हा का नाम 18 मार्च की दोपहर के बाद तेज़ी से ग़ायब हो गया. मीडिया के संपर्क में जो सूत्र बैठे थे, उन्हें तो सांप सूंघ गया होगा जब योगी आदित्यनाथ का नाम सामने आया. एलान कुछ ऐसा था मानो दूसरी बार नोटबंदी की घोषणा हुई हो. असर भी कुछ वैसा ही है.

यूपी में बीजेपी की जीत पर जितनी समीक्षाएं छपी हैं, उससे कम योगी के एलान के बाद नहीं छपी हैं. हर घंटे योगी की समीक्षा करता हुआ एक लेख अवतरित हो रहा है. इन लेखों में योगी के पुराने बयानों का हवाला दिया जा रहा है. स्त्री विरोधी बयान, अल्पसंख्यक विरोधी बयान. उतनी ही तेज़ी के साथ योगी को मुस्लिम हितैषी बताने वाले किस्से भी सामने आ रहे हैं. कैसे मंदिर परिसर में मुसलमानों की दुकाने हैं, कैसे मुसलमान उनके करीबी हैं. एक तरह आलोचक हिन्दुत्व वाले फ्रेम को बड़ा कर रहे हैं, दूसरी तरफ समर्थक उनके सेकुलर फ्रेम को बड़ा कर रहे हैं. योगी जो भी हैं और जितने भी हैं, खुलकर हैं. गोरखपुर की जनता ने कुछ तो खास देखा होगा जो 1998 से योगी को चुनती आ रही है. योगी की भाषा और तेवर जिसका एक समय बीजेपी के बड़े नेता खुलकर बचाव नहीं करते थे, करते तो चुनाव से पहले उन्हें उम्मीदवार घोषित कर देते, मगर अब सब योगी का बचाव कर रहे हैं. योगी आदित्यनाथ की संघ परिवार और बीजेपी परिवार में इससे बड़ी जीत कभी नहीं हुई होगी.

योगी आदित्यनाथ की अपनी वेबसाइट भी है. दो साल पहले जब उनकी वेबसाइट की समीक्षा की थी तो मुझे एक स्वायत्त और निहायत व्यक्तिगत किस्म के नेता लगे थे. दो साल पहले उनकी वेबसाइट पर सिर्फ योगी ही योगी थे. 2014 के साल में बीजेपी के नेता की वेबसाइट से लेकर बैठक की दीवारों पर मोदी की तस्वीर तो होती ही थी, योगी की वेबसाइट पर सिर्फ योगी थे. प्रधानमंत्री की तस्वीर थी मगर प्रमुखता से नहीं. अब उनकी वेबसाइट पर प्रधानमंत्री की भी तस्वीर है और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की भी है.

मीडिया में योगी के जो बयान हैं वो भले उनकी छवि बनाने के प्रोजेक्ट के हिस्सा रहे हों लेकिन उनकी वेबसाइट पर मौजूद लेख थोड़ा अधिक प्रमाण के साथ समझने का मौका देते हैं. 30 से अधिक संगठनों के प्रबंधन का काम संभालते हैं. वे शायद बीजेपी के अकेले नेता रहे हैं जिनकी अपनी हिन्दू युवा वाहिनी है. उनकी वेबसाइट पर न बीजेपी का झंडा है, न संघ परिवार का. बीजेपी और संघ परिवार से स्वायत्त होते हुए भी वे हिन्दुत्व और संघ परिवार की राजनीतिक सोच से बाहर के नेता नहीं हैं. वे बीजेपी के सांसद हैं और काम बीजेपी के लिए ही करते हैं और मुख्यमंत्री बीजेपी के ही हैं. फिर भी वेबसाइट के सहारे भी योगी आदित्यनाथ की स्वायत्तता को समझना चाहिए. सांसद के तौर पर उनके तमाम कार्यों का ब्यौरा है. वेबसाइट पर लेख का एक कॉलम है, जिसमे नेपाल के बारे में कई लेख हैं. कई बार लगता है कि गोरखपुर से बैठकर योगी जी नेपाल की तरफ भी खूब देखते हैं. इसका कारण यह है कि उनके मंदिर परंपरा में नेपाल की आबादी का बड़ा हिस्सा आती है. आरक्षण, मातृशक्ति और नए राज्यों के पुनर्गठन को लेकर कुछ लेख हैं.

संदर्भ से अलग व्याख्या का ख़तरा हो सकता है, मगर कुछ बाते हैं जो आपके सामने पेश करना चाहता हूं. मातृशक्ति वाले लेख में वे लिखते हैं कि महिलाओं को आरक्षण देते समय इस बात पर विचार करना चाहिए कि इससे घर परिवार में उनकी भूमिका पर क्या असर पड़ा है. वे महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण दिये जाने का फैसले पर विचार करने की बात करते हैं, समर्थन नहीं करते हैं. महिलाओं को पुरुषों की तरह बनाने में और भी कई ख़तरे हैं जैसी बातों से आरक्षण की समीक्षा की बात करते हैं. वेबसाइट पर मौजूद लेख में क्रीमीलेयर और एक ही परिवार को बार-बार आरक्षण मिलने का विरोध करते हुए लिखा गया है कि यह समाज को बांटने वाला है, निकम्मापन बढ़ाता है. पूर्वी उत्तर प्रदेश और बुंदेलखंड को अलग राज्य के रूप में बनाये जाने के मसले पर गंभीरता से प्रयास किया जाना चाहिए, इसके समर्थन में भी एक लेख है.

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