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This Article is From Aug 01, 2017

प्राइम टाइम इंट्रो : छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ कब तक?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 01, 2017 22:21 pm IST
    • Published On अगस्त 01, 2017 22:17 pm IST
    • Last Updated On अगस्त 01, 2017 22:21 pm IST
जब लाखों करोड़ों युवा पहली बार मतदाता बनने की उम्र में पहुंच रहे होते हैं तब उनका सामना दो तीन प्रकार के सिस्टम से होता है. एक लाइसेंस बनाते वक्त, दूसरा दसवीं और बारहवीं के इम्तहान के वक्त. रिश्वत देकर लाइसेंस बनाने या इम्तहान में पर्चा लीक होने, पैसे देकर पास होने के अनुभवों का उन पर कितना बुरा असर पड़ता होगा. जिस सिस्टम पर पहले दिन से भरोसा बनना चाहिए, उसके साथ इन युवाओं के रिश्ते की शुरुआत अविश्वास से होती है. यही अनुभव जब उसे मेडिकल और इंजीनियरिंग के इम्तहान के वक्त होता होगा तो उसका यकीन गहरा हो जाता होगा कि इस देश में कुछ बनना है तो यही तरीका है. हो सकता है यही हताशा का एक कारण भी हो. इसलिए हमें इसकी मांग करनी ही चाहिए कि भारत में इम्तहान का सिस्टम ऐसा है जिसमें कोई सेंध न लगा सके.

हर साल बोर्ड के इम्तहान होते हैं. मीडिया में तरह तरह की ख़बरें छपती हैं. एक राज्य को लेकर ज़्यादा चर्चा होती है, बाकी की नहीं इसलिए अगर आप सभी राज्यों की खबरों को निकाल कर देंखें तो ज़्यादा बड़ी समस्या का दर्शन करते हैं. इन ख़बरों से भारतीय परीक्षा प्रणाली की जो छवि बनती है वो अच्छी नहीं है.

महाराष्ट्र, केरल, बंगाल, मध्य प्रदेश राजस्थान, बिहार, हिमाचल प्रदेश,हरियाणा, तमिलनाडु, उड़ीसा और जम्मू-कश्मीर की ख़बरें बताती हैं कि पर्चे लीक होते हैं, लीक होने की अफवाह भी उड़ती है और इम्तहान रद्द होते हैं.

इसी साल मार्च में महाराष्ट्र में जब बोर्ड इम्तहान हो रहे थे तो अखबार लिख रहे थे कि लगातार तीसरे वर्ष प्रश्न पत्र लीक हुआ है. मराठी का प्रश्न पत्र लीक हो गया. 14 मार्च 2017 के ही इंडिया टुडे पर ख़बर है कि  मोबाइल फोन पर 12वीं का गणित का पर्चा लीक हो गया. हिन्दुस्तान टाइम्स ने तो हेडलाइन बनाई है कि एचएचसी की परीक्षा के पांच दिनों में पांच पर्चे लीक हो गए.

16 मार्च 2017 के इंडियन एक्सप्रेस में शिमला से ख़बर छपी है कि पेपर लीक की खबरों के कारण हिमाचल बोर्ड ने 12वीं के फिजिक्स, कंप्यूटर साइंस के पेपर रद्द कर दिये हैं. मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को विधानसभा में प्रश्न पत्रों की चोरी पर बयान देना पड़ा. सदन को बताया है कि एक स्कूल का डबल लॉक तोड़ा गया और हर विषय के 60 प्रश्न पत्र गायब पाए गए.

2015 में बिहार के वैशाली ज़िले विद्या निकेतन में नकल की इस तस्वीर से पूरा देश सदमे में आ गया था. बिहार बोर्ड की टॉपर ने विषय को झकझोर दिया था. बिहार की परीक्षा में विवाद 2016 में भी रहा. उड़ीसा में नकल न करने देने पर छात्रों ने टीचर को ही कमरे में बंद कर दिया. जम्मू-कश्मीर में इस साल फरवरी में 10वीं की साइंस परीक्षा में नकल की इतनी ख़बर आई कि कुछ केंद्रों पर रद्द करनी पड़ गई. इस साल जब राजस्थान में बारहवीं परीक्षा के पहले दिन ही पर्चा लीक होने की खबरों से अधिकारी परेशान हो गए, बाद में पता चला कि अफवाह थी.

2015 में तमिलनाडु में गणित का पर्चा लीक हो गया, चार शिक्षक भी गिरफ्तार किए गए. बंगाल में इसी साल मार्च की माध्यमिक परीक्षा में फिजिकल साइंस का पर्चा लीक होने की बात अधिकारियों ने मान ली. टेलीग्राफ ने लिखा है कि अधिकारी कहते हैं कि पर्चा लीक नहीं हुआ है मगर व्हाट्स पर जो प्रश्न पत्र घूम रहा है वो फिजिकल साइंस का ही प्रश्न पत्र है. अप्रैल 2017 में दसवीं क्लास का गणित का पेपर आउट हो गया. परीक्षा रद्द हुई और जांच के आदेश दिए गए. मध्यप्रदेश में केमिस्ट्री और फिजिक्स का पर्चा भी व्हाट्स अप पर आने की अफवाह उड़ी थी.     

बताइये ग्यारह राज्यों की बोर्ड परीक्षाओं का ये हाल है. अगर पेपर लीक होना अखिल भारतीय समस्या है तो इसे दूर करने की गारंटी हर राज्य को देनी चाहिए. ईमानदार परीक्षा प्रणाली के बग़ैर ईमानदार व्यवस्था की संस्कृति बन ही नहीं सकती है. मैं नहीं कह रहा कि अख़बार में लीक होने की ख़बर छपी है वो सभी सही हैं, हो सकता है न हो लेकिन हर साल इन खबरों का लौट आना बताता है कि चोरी कराने वाले गिरोह परीक्षा केंद्रों के आसपास ही रहते हैं. हर इम्तहान के बाद छात्रों का समूह दो वर्गों में बंट जाता है. एक जिसने नकल नहीं की, दूसरा जिसने नकल की. नकल करने वालों को स्मार्ट समझने की परंपरा पर रोक लगनी चाहिए. दसवीं और बारहवीं की परीक्षा के बाद मेडिलक प्रवेश परीक्षा की खबरों को खंगालने बैठा तो स्थिति उतनी ही भयानक नज़र आईं.

मेडिकल की तैयारी करने वाले छात्र अपनी हड्डी गला देते हैं, मां बाप का कितना पैसा ख़र्च होता है, और जब इन्हें पता चलता होगा कि नीट की परीक्षा में धांधली हुई है, तो वो खुद को कितना असहाय पाते होंगे. अगर एक छात्र भी व्यापम के तरीके से एडमिशन पा जाए तो यह सैंकड़ों ईमानदार छात्रों के साथ नाइंसाफी है. हम कैसे इन ख़बरों को लेकर सामान्य हो सकते हैं. हर साल जब 19-20 साल के लड़के चोरी और धांधली की शिकायत लेकर दिल्ली के मीडिया हाउस के बाहर भटकते मिलते हैं तो उन्हें देखकर दुख होता है. हम क्यों नहीं सरकार से एक फुल प्रूफ परीक्षा प्रणाली की मांग कर सकते हैं.

एक ईमानदार छात्र को आप कैसे समझायेंगे कि पैसा देकर कोई डॉक्टर बन गया. फिर कंपटीशन का क्या मतलब है. क्या इन खबरों के बाद नीट परीक्षा से जुड़े किसी अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई हुई. इसकी कोई खबर हमारे हाथ नहीं लगी. अलग-अलग अखबारों के ये हेडलाइन एक जगह जमा कर देखने पर पता चलता है कि मेडिकल प्रवेश परीक्षा में सेंध की गुज़ाइश लगती है. शातिर लोगों के गिरोह हर साल आते हैं और किसी मेहनती छात्र का हक उड़ा ले जाते हैं. क्या हमें एक ईमानदार और भरोसेमंद परीक्षा प्रणाली नहीं मिल सकती जिसमें एक भी छात्र के साथ धोखा न हो.

26 जुलाई के अखबारों में एक ख़बर छपी, National Eligibility Cum Entrance Test (NEET) की पोस्ट ग्रेजुएट परीक्षा आयोजित करने के लिए जिस अमरीकी कंपनी को ठेका दिया गया है, उसने माना है कि परीक्षा के सिस्टम को कोई हैक कर सकता है. क्या सरकार से यह सवाल पूछना ठीक होगा कि जब भारत एक साथ 108 उपग्रह अंतरिक्ष में भेज सकता है तो क्या मेडिकल प्रवेश परीक्षा खुद आयोजित नहीं कर सकता है. क्या परीक्षाएं भी प्राइवेट एजेंसियों से होने लगी हैं. फिर लीक होने की जवाबदेही किसकी होगी, कैसे भरोसा पैदा होगा कि प्राइवेट कंपनी ने किसी के साथ सौदा नहीं किया होगा. दिल्ली पुलिस क्राइम ब्रांच सेंट्रल रेंज की चार्जशीट से पता चलता है कि दिल्ली पुलिस ने चंडीगढ़ और नोएडा सेंटर की जांच की, अच्छी जांच की है, मगर इसी तरह की जांच अगर देश भर में हो जाती तो जाने कितने भरम टूटते और कितना भरोसा. पहले नीट परीक्षा के सिस्टम को समझिये.

नेशनल इग्ज़ामिनेशन बोर्ड नीट की परीक्षा आयोजीत करता है. अंडर ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट की परीक्षा नीट के तहत होती है. अंडर ग्रेजुएट नीट परीक्षा में 10-11 लाख छात्र शामिल होते हैं. पोस्ट ग्रेजुएट नीट परीक्षा में तीन लाख के करीब छात्र शामिल होते हैं. ये तीन लाख वो छात्र हैं जो पांच साल की मेडिकल पढ़ाई पढ़ चुके होते हैं. पीजी के लिए करीब 25000 सीट होती हैं जिनमें से दस ग्यारह हज़ार ही सरकारी होते हैं. प्राइवेट कालेजों से पीजी करना करोड़ों का खेल है इसलिए हर डॉक्टर सरकारी सीट के लिए तैयारी करता है. सरकार की 10-11000 पीजी सीट में से 6-7000 ही क्लिनिकल होती है यानी जिसमें आप प्रैक्टिस कर सकते हैं.


एक एक सीट के लिए मारामारी होती है. डॉक्टर मेडिकल कालेज में एडमिशन लेते ही यानी पहले ही साल से पी जी की तैयारी शुरू कर देता है. जब उसे यह पता चले कि इसमें भी कुछ लोग एजेंट सब एजेंट के ज़रिये उनकी मेहनत पर डाका डाल रहे हैं तो वे कितने हताश होते होंगे. दिसंबर 2016 में हुई पी जी नीट की परीक्षा में धांधली की शिकायत पर दिल्ली पुलिस ने जांच शुरू की तो कई ऐसी बातें सामने आई हैं जो हैरान करने वाली हैं.

पीजी नीट की परीक्षा का ठेका अमरीका की एक कंपनी प्रोमेट्रिक को दिया गया. इस कंपनी ने पुलिस को बताया है कि उसके सॉफ्टवेयर से छेड़छाड़ हो सकती है. पुलिस जांच कर रही थी कि परीक्षा का सॉफ्टवेयर हैक हो सकता है या नहीं. 20 पन्ने की चार्जशीट में हैंकिंग से लेकर फिक्सिंग के ख़तरनाक किस्से हैं. चार्जशीट है, दोष साबित नहीं हुआ है. हम इस चार्जशीट के बहाने परीक्षा प्रणाली को समझने का प्रयास कर रहे हैं. दिल्ली पुलिस पर ज़िम्मेदारी होगी कि वो इस चार्जशीट को साबित भी करे. पुलिस को पता चला कि आरोपियों ने हैकिंग की योजना इम्तहान शुरू होने से बहुत पहले बना ली थी. छात्रों से पैसे लेकर उन्हें यह भी कहा गया कि किस सेंटर का चुनाव करें, उसके आगे का वे लोग देख लेंगे. इस संबंध में दिल्ली पुलिस ने चार लोगों को गिरफ्तार भी किया है.


दिल्ली पुलिस ने चार लोगों को गिरफ्तार भी किया है. चंडीगढ़ और नोएडा के परीक्षा केंद्रों के दो सुपरवाइज़र ने कुछ छात्रों की मदद की है. जिस सर्वर से परीक्षा हो रही थी, उसे हैक कर इनकी मदद की गई. पूछताछ के दौरान पुलिस को पता लगा कि परीक्षा के लिए Prometric Testings Pvt Ltd को ठेका दिया गया है.

चार्जशीट के अनुसार इस कंपनी ने CMS IT Services Pvt Ltd के साथ करार किया कि वो इंजीनियर और साइट सुपरवाइज़र और अन्य स्टाफ उपलब्ध कराए ताकि एग्ज़ाम लैब तैयार हो सके. CMS IT Services Pvt Ltd ने M/S Apex Services के साथ करार किया कि परीक्षा केंदरों में टेक्निकल स्टाफ की ज़रूरत पड़ेगी उसकी व्यवस्था करे. पुलिस का मानना है कि इतनी कड़ी बनती चली गई कि कई एजेंट और सब एजेंट इस सिस्टम में पैदा हो गए जो छात्रों को खोजने लगे कि पैसे मिल जाए तो उसे अच्छा रैंक दे दिया जाए. पहला चरण है उम्मीदवार का मिलना. उम्मीदवार मिलते ही

सब एजेंट अपने सीनियर एजेंट को बता देता था. सीनियर एजेंट माता पिता या छात्र के संपर्क में आ जाता है. ये एजेंट साइट के सुपरवाइज़र, इंज़ीनियर के संपर्क में रहते हैं. उम्मीदवार को बताया जाता है कि कौन सा परीक्षा केंद्र चुने. जहां अधिकारी उसे नकल करने में मदद सकते हैं.

परीक्षा आयोजित करने वाली कंपनी पुलिस को उस सॉफ्टवेयर के बारे में नहीं बता सकी जिसके सहारे परीक्षा को हैक किया गया है. पैसे देने वाले छात्र को इंटरनेट के ज़रिये एग्ज़ाम कंप्यूटर का एक्सेस दे दिया गया और एग्ज़ाम हाल से बाहर के कंप्यूटर से जोड़ दिया गया. ये तो पोस्ट ग्रेजुएट परीक्षा का हाल है करीब तीन लाख के करीब छात्र हिस्सा लेते हैं. इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर के मुताबिक इस रास्ते से कोई 200 छात्रों के पास होने की आशंका है. जिस परीक्षा प्रणाली पर लाखों छात्रों और उनके परिवारों पर इतना भरोसा है वो भरोसा टूटा कैसे. किसकी वजह से. इस मामले को उठाने वाले आनंद राय का दावा है कि अमरीकी कंपनी को बिना टेंडर के ही परीक्षा आयोजित करने का ठेका दे दिया गया. आनंद राय ही लगातार दो तीन साल से यह मामला उठा रहे हैं.

इस बार जब एमबीबीएस के लिए नीट की परीक्षा के लिए छात्र छात्राएं परीक्षा केंदर पहुंते तो उनकी सख्ती से जांच की गई. कपड़े उतरवाकर जांच हुई. कपड़े कतर दिये गए. केरल की घटना है मगर चोरी न हो, कोई नकल न कर सके इसके लिए ऐसी चेकिंग हुई कि वाकई सबको लगा होगा कि उनके साथ धोखा नहीं होगा. अब नकल खत्म. बकायदा ड्रेस कोड जारी हुआ कि परीक्षा केंदर पर कैसे पहुंचना है. केरल के कन्नूर में थोड़ा ज़्यादा हो गया मगर छात्रों को एक ऐसी परीक्षा प्रणाली का इंतज़ार तो है ही जिस पर आंख मूंद कर भरोसा किया जा सके. नीट पीजी का हाल तो देख लिया आपने, अब अखबारों की खबरों में नीट अंडर ग्रुजेएट परीक्षा का हाल देखिये.

पटना पुलिस सीबीएसई की अनुमति का इंतज़ार कर रही है ताकि जिस ट्रंक में प्रश्न पत्र लाए गए उनकी फोरेंसिक जांच हो सके. 7 मई को पटना के 32 और गया के 20 पर नीट की परीक्षा आयोजित की गई थी. पुलिस का दावा है कि उसने प्रश्न पत्र लीक करने की कोशिश को नाकाम कर दिया. इस सिलसिले में कई लोगों को गिरफ्तार किया गया था. आप 41 मई 2017 का टाइम्स ऑफ इंडिया देख सकते हैं. पटना के दैनिक जागरण में एक दिन पहले पन्ने पर खबर छपती है कि सरगना से तीन करोड़ की डील हुई थी परीक्षा पास कराने के लिए.

एक खबर के हेडलाइन में कहा गया है कि पांच गिरोह हैं जो 20 लाख में पास कराने की गारंटी लेते हैं. कई जगह से ऐसी भी खबरें छपी हैं कि पैसा लेकर सेंटरों ने ठगा कई अभ्यर्थियों को, 145 की जगह 120 प्रश्नों के ही उत्तर उपलब्ध कराए. इस साल मई में आयोजित नीट यूजी परीक्षा की जांच गोवा पुलिस कर रही है, राजस्थान की एटीएस कर रही है और पटना पुलिस कर रही है. आनंद राय ने जब दिल्ली पुलिस को शिकायत की तो मौखिक जवाब मिला कि अभी नीट पी जी की जांच में ही इतना व्यस्त हैं कि नीट यूजी की जांच में उतना ध्यान देना संभव नहीं है.

नीट एमबीबीएस और नीट पीजी की परीक्षा व्यवस्था पूरी तरह चोरी मुक्त नहीं है. सिस्टम ऐसा होना चाहिए कि अफवाह की भी गुज़ाइश न रहे और कोई किसी को ठग नहीं पाए. अखबारों की क्लिपिंग देखते हुए लग रहा था कि हर राज्य में इस परीक्षा को लेकर गिरोहों का अपना सिस्टम है. ये तब है जब इसी तरह से व्यापम घोटाला हुआ था. यहां तक कि एम्स की प्रवेश परीक्षा भी संदिग्ध हो जाती है.

इसी 15 जून को सीबीआई ने एम्स एमबीबीएस का प्रश्न पत्र लीक होने के आरोप में मामला दर्ज किया है. 28 मई को परीक्षा हुई थी. दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार, एम्स और सीबीआई को एम्स पेपर लीक के मामले में स्टेटस रिपोर्ट मांगी थी. आनंद राय इस मामले में याचिका कर्ता हैं और प्रशांत भूषण वकील हैं. 16 अगस्त को अगली सुनवाई है. सीबीआई ने कई जगहों पर छापेमारी भी की है. 2003 में एम्स की परीक्षा को लेकर बड़ा घोटाला सामने आया था. मुख्य आरोपी रंजीत डॉन का नाम याद होगा जो बैंक, इंजीनियरिंग, मेडिकल के प्रश्न पत्र लीक करता था. कई बड़े लोग उसके क्लाइंट होते थे जो अपने बच्चों को पैसे के दम पर डॉक्टर इंजीनियर बना देना चाहते थे. सीबीआई की जांच हुई थी. 100 करोड़ का धंधा था यह. 2003 के बाद 2017 में सीबीआई फिर एम्स परीक्षा की जांच कर रही है.

मुझे पता है कि ये सवाल नेताओं के बेकार के आरोप प्रत्यारोप जितने महत्वपूर्ण नहीं हैं लेकिन सोचिये कि पैसा देकर बिना पढ़ाई के कोई डॉक्टर बन जाए और आपका इलाज करने लगे. बात सिर्फ डॉक्टर बनने का नहीं है, सरकार ने जनता का पैसा एक ऐसे छात्र पर खर्च किया जो पैसे देकर चोरी के रास्ते से डॉक्टर बना है. एक बार वो चोरी के रास्ते से डॉक्टर बनेगा तो डॉक्टरी की नैतिकता का पालन कैसे करेगा. इस देश में राजनीतिक कारणों से व्यापम घोटाले पर ठीक से बहस नहीं हुई लेकिन होनी चाहिए थी. सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई से कहा है कि जल्दी से सभी मामलों में चार्जशीट फाइल कीजिए और हार्ड डिस्क की रिपोर्ट भोपाल के सीबीआई ट्रायल कोर्ट में जमा कीजिए. 31 अक्टूबर तक सीबीआई से कहा गया है कि सभी केस में चार्जशीट फाइल करनी है. व्यापम मामले में 200 से अधिक एफआईआर दर्ज है. आनंद राय का कहना है कि 2500 आरोपी बनाए गए थे. 2000 गिरफ्तार भी हुए थे.

व्यापम का भांडा तो फूट गया मगर कहीं ऐसा न हो कि नीट को लेकर भी इस तरह का घोटाला हो रहा हो. हिन्दू अखबार की रिपोर्ट है 4 अप्रैल 2017 की. मध्यप्रदेश विधान सभा में सीएजी की एक रिपोर्ट रखी गई. इसमें कहा गया कि राज्य सरकार ने परीक्षाओं के लिए उचित रेगुलेटरी फ्रेमवर्क रखा ही नहीं जिसकी वजह से उम्मीदवारों का भविष्य खराब हुआ. व्यापम एक विभाग है,नियामक संस्था नहीं है. नियमों को ताक पर रखकर अफसरों की नियुक्तियां की गईं. सरकार ने ये भी डेटा नहीं रखा कितनी परीक्षाएं हुई हैं. पता चलता है कि पारदर्शिता की घोर कमी है.

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