विज्ञापन
This Article is From Feb 21, 2024

बहनो और भाइयो...अलविदा

Asad Ur Rahman Kidwai
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    फ़रवरी 21, 2024 22:21 pm IST
    • Published On फ़रवरी 21, 2024 22:21 pm IST
    • Last Updated On फ़रवरी 21, 2024 22:21 pm IST

साल 1952 : रेडियो सीलॉन के लिए आधे घंटे का एक रेडियो प्रोग्राम बनना है. 7-8 गानों के इस हफ़्तावार प्रोग्राम को प्रोड्यूस करने, गाने चुनने, श्रोताओं की चिट्ठियां छांटने और उन्हें एक सूत्र में पिरोते हुए स्क्रिप्ट लिखने के साथ साथ आवाज़ भी देनी थी. मेहनताना कम था और काम ज़्यादा तो ये माथापच्ची कोई बड़ा और तजुर्बेकार रेडियो आर्टिस्ट भला क्यों करता. उस ज़माने के मशहूर रेडियो उद्घोषक हमीद सायानी ने ये काम अपने छोटे भाई 20 साल के नौजवान अमीन सायानी को सौंपा. उस ज़माने के बंबई में अमीन सायानी रेडियो सीलॉन के लिए प्रोग्राम की शुरुआत करते हैं. चूंकि अंग्रेज़ी गानों की हिट परेड में हफ़्ते में 400 चिट्ठियां आती हैं इसलिए ये मनाते हैं कि हफ़्ते में श्रोताओं की कम से डेढ़ सौ फ़रमाइशी चिट्ठियां आ जाएं तो बात बन जाए. लेकिन बात ही नहीं इतिहास बनने वाला था. पहले ही प्रोग्राम में 9,000 चिट्ठियां आईं. और फिर तो चिट्ठियों का ऐसा सैलाब आया कि एक हफ़्ते में 65,000 तक चिट्ठियां आती थीं. बिनाका गीतमाला का जादू ऐसा चला कि प्रोग्राम आधे घंटे से एक घंटा का हुआ.

बुधवार को रात 8 बजे से 9 बजे तक जब बिनाका गीतमाला आता तो हिंदुस्तान के कोने-कोने में सब कुछ थम सा जाता था- जिनके घरों में रेडियो थे वो अपने घरों और जिनके पास नहीं थे वो दुकानों या दूसरे ठिकानों पर जाकर घंटे भर पाबंदी से हिंदी फ़िल्मी गीतों की हिट परेड सुनते. अपनी सूचियां बनाते और अगले हफ़्ते कौन से गाने किस जगह पर रहेंगे इसका अंदाज़ा लगाकर इनाम जीतते.

गीतमाला की ज़बरदस्त लोकप्रियता की एक वजह ये भी थी कि भारतीय श्रोता हिंदी फ़िल्मी गाने सुनने के लिए तरस गए थे क्योंकि उस समय के सूचना और प्रसारण मंत्री डॉ बी वी  केसकर ने आकाशवाणी पर हिंदी फ़िल्मी गीतों को अश्लील, घटिया और पाश्चात्य बताते हुए पाबंदी लगा दी थी.

बिनाका गीतमाला की लोकप्रियता इतनी बढ़ी कि कुछ संगीत निर्देशक फ़रमाइशों की फ़र्ज़ी चिट्ठियां भेजने लगे. जब अमीन सायानी को इस बात का एहसास हुआ तो उन्होंने इससे निपटने के लिए देश भर में रेडियो क्लब खुलवाए, जहां फ़िल्मी गानों के रसिक हर हफ़्ते अपने पसंदीदा गाने बताते. इस तरह देश भर में क़रीब 400 रेडियो क्लब बने.

अमीन सायानी को अंग्रेज़ी, हिंदी और उर्दू समेत कई ज़बानें आती थीं लेकिन उन्होंने रेडियो के लिए आसान हिंदुस्तानी भाषा अपनाई जो उन्हें विरसे में अपनी मां स्वतंत्रता सेनानी कुलसूम सायानी से मिली थी जिन्हें महात्मा गांधी ने हिंदुस्तानी भाषा के प्रचार-प्रसार का ज़िम्मा सौंपा था.

आसान हिंदुस्तानी ज़बान में 'बहनो और भाइयो' कहती हुई अमीन सायानी की खनकती, जादुई आवाज़ ने सिर्फ़ गीतमाला ही नहीं बल्कि हिंदी और अंग्रेज़ी में न जाने कितने मक़बूल प्रोग्राम किए. एस कुमार्स का फ़िल्मी मुक़दमा, सैरिडॉन के साथी, बॉर्नवीटा क्विज़ कॉन्टेस्ट, फ़िल्मों के विज्ञापन और संगीत के कार्यक्रमों की कॉम्पेयरिंग हर महफ़िल में उनकी आवाज़ गूंजती रही. कुल मिलाकर इस दिलकश आवाज़ ने 54,000 से ज़्यादा रेडियो प्रोग्राम किए.

उनका रेडियो सफ़र, उनकी संगीत यात्रा हिंदी फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर के दिग्गजों के साथ साथ शुरू हुई. लता मंगेशकर, मोहम्मद रफ़ी, रोशन, किशोर कुमार, मदन मोहन, आशा भोसले वग़ैरह के साथ उनकी बातचीत हिंदी फ़िल्म संगीत की समृद्ध धरोहर का हिस्सा है.

फिर भी अमीन सायानी की पहचान गीतमाला ही था जो 1952 से जो शुरू हुआ तो रेडियो सीलॉन पर 42 साल तक लगातार चलता रहा. रेडियो सीलॉन से सफ़र रुका तो चार साल बाद 2 साल के लिए विविध भारती पर भी ये प्रोग्राम आया. अमीन सायानी हिंदी फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर, उसके चढ़ाव और उतार के हमसफ़र भी रहे और गवाह भी और अपनी आवाज़ से संगीत के इस सुरीले सफ़र की तारीख़ महफ़ूज़ कर गए.

मिर्ज़ा ग़ालिब ने शायद उन्हीं के लिए कहा था

देखना तक़रीर की लज़्ज़त कि जो उसने कहा
मैंने ये जाना कि गोया ये भी मेरे दिल में है

1932 में जन्मे अमीन सायानी 91 साल की उम्र में अलविदा कह गए. रेडियो के यादगार दौर का ख़ात्मा हुआ है. एकजादुई आवाज़ ख़ामोश ज़रूर हुई है लेकिन उसकी गूंज हमेशा क़ायम रहेगी.

(लेखक एनडीटीवी में सीनियर एडिटर-आउटपुट हैं)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com