अरविंद केजरीवाल, राष्ट्रीय हित पर कोई समझौता नहीं...

अरविंद केजरीवाल, राष्ट्रीय हित पर कोई समझौता नहीं...

मैं इस निष्कर्ष पर पहुंच चुका हूं कि आम आदमी पार्टी तथा अन्य राजनैतिक दलों में कोई अंतर नहीं रह गया है... उसके कुछ कारण निम्न हैं...

सर्जिकल स्ट्राइक : अरविंद केजरीवाल ने सर्जिकल स्ट्राइक के बारे में सुना और तुरंत ही भारतीय सेना को बधाई संदेश भेज दिया, लेकिन अभद्र तरीके से सरकार को नहीं भेजा - हालांकि सभी जानते हैं, हमारे लोकतंत्र में हमारी सशस्त्र सेनाएं सरकार की मंजूरी के बिना कुछ नहीं करतीं. इसलिए फैसला लेने वालों को भी श्रेय तो बराबर ही मिलना चाहिए, लेकिन चूंकि निर्णय लेने वालों के मुखिया नरेंद्र मोदी हैं, इसलिए उन्हें बधाई नहीं दी गई.

फिर, जैसे ही 'आप' के कुछ नेताओं ने उन सवालों को सुना, जो पाकिस्तानी प्रचार की वजह से उभर आए थे, उन्होंने एक मास्टरस्ट्रोक के बारे में सोचा. मोदी सर्जिकल स्ट्राइक को पंजाब में जीत हासिल करने के लिए इस्तेमाल करेंगे, तो हम लोगों के दिमाग में शक का बीज पैदा कर देते हैं, ताकि सभी मोदी-विरोधी वोट हमें मिल जाएं, और पंजाब जीता जा सके. इसीलिए, एक बेहद चतुराई से बनाए गए वीडियो में अरविंद केजरीवाल ने सेना तथा नरेंद्र मोदी की तारीफ की, लेकिन उनसे पाकिस्तान को जवाब देने के लिए सबूत साने लाने को भी कह दिया. अगर सरकार सबूत नहीं देती है, तो विश्वसनीयता खो देगी, और पंजाब में 'आप' जीत सकती है. और अगर सरकार सबूत दे देती है, तो सरकार को तुरुप का पत्ता अभी खर्च हो जाएगा (पंजाब में चुनाव से सात महीने पहले) और 'आप' इस वक्त के दौरान उस ख्याति को खत्म कर सकती है, जो बीजेपी ने इस दौरान हासिल की. चतुराई से उठाया गया राजनैतिक कदम...

लेकिन ज़्यादातर समझदार और अक्लमंद लोगों ने इस 'पहेली' के आर-पार देख लिया, और रणनीति फेल हो गई... दरअसल, केजरीवाल के वीडियो को डीजीएमओ की प्रेस कॉन्फ्रेंस को चुनौती तथा सेना से किए सवाल के रूप में देखा गया; उसे पाकिस्तान ने भी यह कहकर इस्तेमाल किया - 'पाक के प्रचार को भारत की राजधानी का मुख्यमंत्री भी सच बता रहा है...' लेकिन इसके बाद सीएनएन18 ने पाकिस्तान से एक खुलासा किया, और स्थापित कर दिखाया कि सर्जिकल हमला हुआ था, जिससे सेना की ओर से कोई भी गोपनीय तथा रणनीतिक जानकारी सार्वजनिक किए बिना भारतीय सैन्य कार्रवाई का होना साबित हो गया.

मेरे लिए, सबसे महत्वपूर्ण रहा, 'आप' ने सम्मान खो दिया. मेरे वे साथी, जिनके साथ मैंने तिरंगा लहरा-लहराकर गला बैठ जाने तक 'भारत माता की जय' के नारे लगाए थे, उन्होंने वोटों के बदले राष्ट्रीय सुरक्षा की तिजारत कर ली थी. मेरे लिए राष्ट्रीय सुरक्षा से कोई समझौता नहीं किया जा सकता.

मेरा अतीत : एमरजेंसी भारत के इतिहास का काला अध्याय है. मैं भी उसके खिलाफ राष्ट्रीय संघर्ष में कूद पड़ा और हम जीत गए थे. देश खुशी से झूम उठा था. लेकिन खुशी ज़्यादा वक्त नहीं टिक पाई - जनता पार्टी के प्रयोग को जनता ने बेतहाशा समर्थन दिया, लेकिन नेताओं की सीमित क्षमताओं की वजह से देश के साथ धोखा हुआ. देश ने साफ देखा, राजनेता सभी सिद्धांतों को ताक पर रखकर चुनावी जीत पर ध्यान केंद्रित किए रहे. जेपी चुपचाप इस गिरावट को देखते रहे (अण्णा हजार की तरह). राजनीति से अच्छे लोगों ने बाहर निकलना शुरू कर दिया. और एमरजेंसी में हीरो बनकर सामने आए लालू और मुलायम जैसे नेताओं ने सामान्य राजनीति करनी शुरू कर दी, और कई चुनाव जीते. मैं युवा था, नातजुर्बेकार था, और नेताओं या उनके अनुयायियों तक मेरी कोई पहुंच नहीं थी, ताकि उन्हें बदल सकता, या यहां तक कि उन्हें देश की उस पीड़ा के बारे में बता पाता, जिससे देशवासी गुज़र रहे थे. सत्ता या शोहरत में मेरी कोई रुचि नहीं थी, सो, मैं शिक्षा के क्षेत्र में लौट गया, और सामान्य जीवन जीने लगा.

धोखा हुआ था देश के साथ...

आज : कई दशक बाद देश एक और राष्ट्रीय आंदोलन के लिए तैयार था. 'इंडिया अगेन्स्ट करप्शन' आंदोलन, आम आदमी पार्टी और दिल्ली की जीत कुछ सिद्धांतों पर हुई थी. उन चुनावी पंडितों तथा कमेंटरी करने वालों को मुंह की खानी पड़ी, जो कहते रहे थे कि पैसा खर्च किए बिना, ताकत इस्तेमाल किए बिना या बंटवारे की राजनीति किए बिना चुनाव नहीं जीते जा सकते. लगने लगा, राजनीति में भी साफ-सुथरा पैसा, सिद्धांत और शराफत अब हमारे सामने हैं. देश फिर खुशी से झूम उठा. वर्ष 2012 में मेरे जैसे बहुत-से लोगों ने नौकरियां छोड़ दीं - सैकड़ों वॉलन्टियर, जिनमें कुछ दिहाड़ी मज़दूर थे, जिनके माता-पिता की तबीयत ठीक नहीं थी, जो किसी पारिवारिक समस्या से जूझ रहे थे, जिन्होंने अपनी ज़मीन बेच डाली थी, जो अपनी पढ़ाई या नौकरी को लंबे समय के लिए विदा कहकर आए थे - ये सभी देश की सेवा करने पहुंच गए थे, अपनी ही सेवा करने वाले अड़ियल ज़िद्दी नेताओं की जगह...

दिल्ली में शानदार जीत हासिल करने के बाद नेतृत्व ने सारा श्रेय ले लिया, और घमंड में चूर होकर सोचने लगे कि चुनाव जीतने के सभी नुस्खे उन्हें मालूम हैं. निजी महत्वाकांक्षाएं, 'किसी भी तरीके से काम होना चाहिए' वाली सोच, और किसी भी कीमत पर चुनाव जीतना ही है - बस, यही सामने रह गया. राजनैतिक कुचक्र और महलों में पहुंच जाने के बाद के षड्यंत्र भीतर समाने लगे. पुराने सिद्धांतों से नए सिद्धांतों ने जगह छीन ली. और हम दहशत में थे कि नए सिद्धांत वास्तविक बनने लगे. समझौते शुरू हो गए थे.

सादगी, विनम्रता, शिष्‍टाचार और नई राजनीतिक संस्‍कृति की इच्‍छा का स्‍थान विरोधियों नरेंद्र मोदी, योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण और मीडिया के खिलाफ अभद्र भाषा शैली ने ले लिया. टीवी बहसों और बयानों में अहंकार, वीआईपी काफिले में सफर, हर गली में बैनर, निहायत छिछले स्‍तर पर जाकर हर एक पर आरोप मढ़ना, खुद को पीडि़त की तरफ पेश करना, आंतरिक मीटिंगों में बाउंसरों को रखना और अनेक अकाउंट का इस्‍तेमाल करते हुए सोशल मीडिया पर पुराने सहयोगियों का अपमान करते हुए सोशल मीडिया ट्रोल करते हुए दिखने लगे. सभी तरह की सादगी और शुचिता छोड़ दी गई. हर चीज जिसकी हम निंदा करते थे, अब हम वैसे ही हो गए.

मीडिया मैनेजमेंट कठोर शब्‍दों, ड्रामा, एक्टिंग और आरोप मढ़ने के इर्द-गिर्द होता है. अच्‍छी या बुरी खबर मायने नहीं रखती. बस मीडिया का कुशलता से उपयोग करते हुए उसके कीमत एयर और प्रिंट टाइम में जगह बनाना आना चाहिए. मीडिया तो नौसिखिया है, उसको एक्‍शन और विवाद की जरूरत है. इसका अपने हिसाब से इस्‍तेमाल कीजिए. हमारे कई समर्थकों या लोगों ने जो आप में रुचि ले रहे थे, उन्‍होंने हमको अब गंभीरता से लेना बंद कर दिया.

आप अगले आम चुनाव में गठबंधन बनाकर बीजेपी को चुनौती देने वाली मुख्‍य पार्टी बनकर उभरना चाहती है. इसलिए हर चीज के लिए मोदी पर सीधे हमले की रणनीति का इस्‍तेमाल किया जाने लगा ताकि केजरीवाल उनके मुख्‍य विरोधी बनकर उभरें. ऐसे में मोदी को ''कायर और मनोरोगी'' बताकर आपको जबर्दस्‍त मीडिया अटेंशन मिला और आपको पीएम के मुकाबले पेश किया गया. इस सीधे हमले से हो सकता है कि आपको जबर्दस्‍त रणनीतिक लाभ मिला हो लेकिन इसके कुछ नुकसान भी हुए. आपने देश पर प्रभाव डालने वाले कई घटनाओं और घटनाक्रमों को नजरअंदाज कर दिया क्‍योंकि मोदी को उनके लिए जिम्‍मेदार नहीं ठहराया जा सकता.

स्‍वराज : दिल्‍ली चुनाव के बाद सबसे पहली क्षति 'स्‍वराज' की हुई. यहां तक कि इसको पार्टी संविधान से भी हटा दिया गया. क्षेत्रीय नेताओं को पनपने की अनुमति नहीं दी गई. दिल्‍ली में निवार्चित हुए विधायक राज्‍यों का दौरा कर रहे हैं वहां की लोकल यूनिटों के रहनुमा बने हुए हैं. एक अक्‍टूबर, 2015 को महाराष्‍ट्र (सर्वश्रेष्‍ठ कमेटी और टीम) को भंग कर दिया गया और अब दिल्‍ली से किसी द्वारा संचालित किया जा रहा है. गुजरात, महाराष्‍ट्र, पंजाब, गोवा और अन्‍य राज्‍यों की भी यही हालत है. मैंने अरविंद केजरीवाल की किताब में 'स्‍वराज' की इस नई परिभाषा की खोज की लेकिन निराशा ही हुई.

पहले पार्टी में यह कहा गया कि 'पर्सनालिटी कल्‍ट' के लिए कोई जगह नहीं है. अब उसकी जगह पार्टी का नया सिद्धांत है-'पार्टी में केवल एक आवाज होनी चाहिए.' किसी भी स्‍वतंत्र आवाज को केवल हटाना ही नहीं चाहिए बल्कि इस तरह से निकाल फेंकना चाहिए ताकि कोई और आवाज उठाने की हिम्‍मत ही नहीं कर सके. मेरिट का स्‍थान वफादारी ने ले लिया. एक वालंटियर पर आधारित पार्टी का नया सिद्धांत है-''एक जाएगा तो दस आएंगे.''

पारदर्शिता और सहभागिता : मार्च, 2015 में जिस मीटिंग में योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण को पार्टी से बाहर निकाला गया था, मैंने उस मीटिंग के मिनट्स जारी करने का आग्रह किया था. लेकिन ऐसा करने से इनकार कर दिया गया. मैंने अपनी अंतरात्‍मा की आवाज पर एक ब्‍लॉग लिखा. मैं जानता था कि इसके बाद वे मेरे पीछे पड़ जाएंगे और मेरा राजनीतिक करियर खत्‍म हो जाएगा. उसके बावजूद मैंने ब्‍लॉग लिखने का निर्णय किया. लेकिन मैंने यह नहीं सोचा था कि वे इसके बाद मेरे खिलाफ ऐसे छिछले स्‍तर पर उतरकर झूठे निजी आरोप लगाएंगे और मुझसे द्वेष भाव के चलते पूरी महाराष्‍ट्र इकाई को भंग कर देंगे. उस मीटिंग के मिनट्स आज तक जारी नहीं किए गए.

स्‍वच्‍छ धन : इस मामले में भी क्षति देखने को मिली. मैं जब पार्टी में था तो चंदे देने वालों से आग्रह होता था कि एक रुपये के चंदे को भी उजागर किया जाएगा और हम बैलेंस शीट बनाने और आय एवं खर्च के ब्‍यौरे का विवरण तैयार करने में तत्‍पर रहते थे. यह आरोप लगाया गया कि चुनाव आयोग को दिए गए वित्‍तीय विवरण और चंदे की सूची में 14 करोड़ का अंतर देखने को मिला. इसलिए पिछले 13 हफ्तों के लिए चंदे की सूची को वेबसाइट से हटा दिया गया. अब बैलेंस शीट और खर्च के विवरण को 31 मार्च, 2014 के बाद से प्रदर्शित नहीं किया गया. इसका मतलब यह हुआ कि पिछले 30 महीने से अकाउंट का ब्‍यौरा नहीं दिया गया है.

सुशासन : दिल्‍ली में सुशासन की हालत खस्‍ता है. फ्लाईओवर, सड़कें, अस्‍पताल बनाने और बड़े काम करने के बजाय छोटे-मोटे कार्य मसलन एक मॉडल क्‍लासरूम, एक स्‍कूल में एसी लगाने और कुछ मोहल्‍ला क्‍लीनिक जैसे उदाहरणों को पेश किया जा रहा है. मैं दिल्‍ली में सैकड़ों ऐसे लोगों से मिला जिनकी आप की भारी जीत में बड़ी भूमिका थी, उनमें अब नाराजगी है और वे छला हुआ महसूस कर रहे हैं. विधायक पार्टी कार्यों के लिए अन्‍य राज्‍यों में यात्राएं कर रहे हैं. शीर्ष नेतृत्‍व पंजाब, गोवा और गुजरात और चुनाव जीतने पर ध्‍यान केंद्रित कर रहा है. नतीजतन दिल्‍ली विधानसभा जीत में पार्टी का 54 प्रतिशत वोट शेयर घटकर एमसीडी उपचुनावों में घटकर 29 प्रतिशत रह गया. दिल्‍ली को पार्टी का गढ़ माना जाता है और युवाओं को पार्टी की रीढ़ माना जाता है. लेकिन पिछले दिल्‍ली यूनिवर्सिटी चुनावों में देखने को मिला कि अपने अनुकूल ओपिनियन पोल के जोर-शोर के प्रचार-प्रसार की मानक रणनीति पद्धति को अपनाने के बावजूद आप को कामयाबी नहीं मिली.

मेरा मकसद :  मैं अहम मसलों को इस आशा के साथ उठाता रहूंगा कि पार्टी इस पर गौर करेगी और इसको सुधारने का काम करेगी. यदि नए भारत का यह प्रयोग असफल हो गया यह केवल चुनाव जीतने तक ही रह गया तो इससे देश का नुकसान होगा और फिर किसी नए पार्टी या आंदोलन पर भरोसा करने में लोगों को दशकों लग जाएंगे. मैं समझता हूं कि बीजेपी या कांग्रेस में देश के कायांतरण करने का सामर्थ्‍य नहीं है.

कईयों द्वारा पार्टी छोड़े जाने या निकाले जाने के इतर मैंने किसी अन्‍य पार्टी को ज्‍वाइन नहीं किया. कोई नया ग्रुप नहीं बनाया. मेरा कोई निजी या राजनीतिक मकसद नहीं है (मैंने चुनावी राजनीति छोड़ दी है). मेरी किसी शख्‍स के साथ कोई समस्‍या नहीं है. मेरा मकसद पूरी तरह से निस्‍वार्थ भाव से भरा है-यानी पार्टी पर नजर रखना क्‍योंकि देश अन्‍य किसी विफलता को बर्दाश्‍त नहीं कर सकता.

मैं आध्‍यात्‍मिक विकास के लिए ध्‍यान, अध्‍ययन और लिखता रहता हूं. राष्‍ट्र-निर्माण में अपने योगदान के लिए मैं सूखा प्रभावित महाराष्‍ट्र के बीड जिले के 15 गांवों के विकास के लिए अपनी तरफ से यथासंभव कोशिश कर रहा हूं. बौद्धिक स्‍तर पर मैं अंतररात्‍मा की आवाज के आधार पर भूमिका अदा करने का इच्‍छुक हूं.  मेरे लिए हमेशा से राष्‍ट्र सबसे पहले, उसके बाद पार्टी और अंत में व्‍यक्तियों का स्‍थान रहा है.

(मयंक गांधी  नवंबर, 2015 में आम आदमी पार्टी के नेशनल एक्‍जीक्‍यूटिव की सदस्‍यता से इस्‍तीफा दे चुके हैं)
 
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