आइंस्टाइन के E=mc2 (c स्कवॉयर) के पहले से ही वैज्ञानिकों ने जान लिया था कि परमाणु में असीमित ऊर्जा निहित है. यह जानकारी रेडियोधर्मिता (रेडियोएक्टिविटी) से मिली थी. (1945 में आंइस्टीन ने एक लेख लिखकर अपने आपको परमाणु ऊर्जा प्राप्ति का पिता मानने से इनकार किया था. उनका मानना था कि इस प्रक्रिया में उनकी भूमिका अप्रत्यक्ष रही है) बर्लिन (जर्मनी) के कैसर विलियम इंस्टीट्यूट में रसायनशास्त्री ओट्टो हान और लिसे माइटनेर यूरेनियम के परमाणुओं पर प्रहार करके उनके रेडियोधर्मी उत्त्पादों का अध्ययन करते आ रहे थे. बाद में इनके साथ एक और रसायनशास्री फ्रिट्ज़ स्त्रासमान भी जुड़ गए. मूलतः भौतिकशास्त्री लिसे माइटनेर यहूदी थे तो 1938 में बंदी बनाए जाने से पहले ही उन्होंने जर्मनी छोड़ दिया. हान और स्त्रासमान अपने प्रयोग में जुट रहे. यूरेनियम के परमाणुओं पर अटैक करते-करते उन्होंने पाया कि परमाणु लगभग दो बराबर भागों में टूट गया है.
उन्हें यक़ीन नहीं हो रहा था कि उनका प्रयोग सफल हो गया है. हालांकि इसके क्या परिणाम होंगे, इसका एहसास उन्हें कतई नहीं था. (ओट्टो हान ने किसी भी तरह एटम बम के निर्माण में सहयोग नहीं दिया) इन परिणामों को सबसे पहले महसूस किया उनके पुराने साथी रही लिसे माइटनेर ने, इन्होंने ही अपने भांजे ओट्टो फ्रिश्च के साथ मिलकर उसे Nuclear Fission (नाभिकीय विखंडन) नाम दिया. ये जान गए कि इसमें ऊर्जा निकलती है और टूटे हुए भाग भयंकर बेग से भागते हैं. ठीक यही प्रयोग पेरिस और अमेरिका में भी दोहराए गए. अमेरिका में इटली के भौतिक विज्ञानी एनारिका फर्मी के प्रयोग में एक बात और सामने आई, वह थी कि नाभिकीय विखंडन की इस प्रक्रिया में दो नए न्यूट्रॉन निकलते हैं, वे भी आगे विखंडन करने की क्षमता रखते हैं.
इसी से श्रृंखला अभिक्रिया (Chain Reaction) और परमाणु बम की कल्पना हुई. अब तक के प्रयोगों ने बता दिया था कि परमाणु विखंडित होता है, विखण्डन से ऊर्जा निकलती है और यह चेन रिएक्शन में हो सकता था. इस घटनाक्रम को दो अन्य वैज्ञानिकों ने आइंस्टाइन को बताया और उनसे आग्रह किया कि वे अपनी मित्र बेल्जियम की महारानी को पत्र लिखकर आगाह करें कि बेल्जियम कांगो के क्षेत्र हिटलर के हाथों में न पड़ने पाएं क्योंकि ये क्षेत्र यूरेनियम के प्रचुर भंडार थे. आइंस्टाइन ने ऐसा किया लेकिन इससे पहले एक पत्र उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति एफ डी रुजबेल्ट को भी एक पत्र लिख दिया. इस पत्र का उद्देश्य भी जर्मनी द्वारा परमाणु हथियारों के निर्माण के बारे में आगाह करना था.
रुजबेल्ट ने एटम बम के निर्माण की दिशा में पहला क़दम उठाया और एक न्यूक्लियर कमिटी गठित कर दी. 1942 में इस योजना ने रफ़्तार पकड़ी और मैनहैट्टन योजना बनाई गई. दिसंबर 1942 को मानव इतिहास में सफलतापूर्वक श्रृंखला नाभिकीय अभिक्रिया (Nuclear Chain Reaction) को अंजाम दिया गया. मैनहैट्टन योजना के आगे तमाम सवाल उभरे, उनमें से कुछ थे कि बम के लिए यूरेनियम या प्लूटोनियम की कितनी मात्रा रखनी होगी? कितनी ऊर्जा पैदा होगी, उसका परीक्षण हवा, ज़मीन या पानी, कहाँ होगा? बम का आकार क्या होगा... इसके लिए एक अलग जगह निर्धारित की गई. न्यू मैक्सिको में एक गांव लॉस बेगास के पास वीरान जगह का चुनाव किया गया. इमारत के नाम पर यहां सिर्फ मैकडॉनल्ड रेंच हाउस था. यहाँ जो लैबोरेटरी बनाई गई, कोलंबिया विवि. में भौतिकविज्ञानी जे. रॉबर्ट ओपनहाइमर को डायरेक्टर नियुक्त किया गया.
उनके इस नेतृत्व में चल रही मैनहैट्टन योजना में सवा लाख से ज्यादा लोग शामिल थे. 1943 से 1945 तक दो वर्ष लगे और चार बम बनकर तैयार हुए. यूरेनियम से बने बम को लिटिल बॉय नाम दिया गया. प्लूटोनियम से बने बम को फैटमैन नाम दिया गया. जुलाई में सब कुछ तैयार था. अब परीक्षण की बारी थी. परीक्षण के लिए कोड नाम दिया गया 'ट्रिनिटी'. ईसाइयत में ट्रिनिटी (त्रिदेव) यानी ईश्वर, ईश्वर के पुत्र और पवित्र आत्मा शामिल हैं. हिंदुइज़्म में 'त्रिदेव' ब्रह्मा-विष्णु-महेश को कहते हैं. जुलाई में होने वाली इस प्रक्रिया से पहले ही जर्मनी, जिसको ध्यान में रखकर ये बम बनाए गए थे, ने मई में आत्मसमर्पण कर दिया था. अब परमाणु बम का क्या काम?
विनोबा भावे ने कहा है विज्ञान जब राजनीति के साथ मिलती है तो विनाश का जन्म होता है. सभी शीर्ष वैज्ञानिक चाहते थे कि परमाणु बमों की जानकारी सोवियत रूस (जो उस समय मित्र राष्ट्रों के साथ था) भी दी जानी चाहिए. अमेरिका ने ऐसा नहीं किया. इसी दौरान रुजबेल्ट की मौत हो चुकी थी. ट्रूमैन अमेरिका के नए राष्ट्रपति बने. उनका मानना था कि जर्मनी ने सही तो जापान पर बम गिराकर युद्ध समाप्त किया जाए. अब परीक्षण की बारी आई, 16 जुलाई, 1945, समय सुबह 5:29... प्लूटोनियम वाले 'the Gadget' (जो आगे फैटमैन बना) को एक टावर पर रखा गया. इस योजना के डाइरेक्टर ओपनहाइमर कई किलोमीटर दूर से इसे देख रहे थे। बम जब फटा तो उससे इतती ऊर्जा (प्रकाश) निकली कि ओपनहाइमर को गीता का श्लोक याद आया;
दिवि सूर्यसहस्रस्य भवेद्युगपदुत्थिता।
यदि भाः सदृशी सा स्याद्भासस्तस्य महात्मनः॥
आकाश में हज़ारों सूर्यों के एकसाथ उदय होने से जो प्रकाश उत्पन्न होगा, वह भी उस विषरूप के सदृश शायद ही हो. बम के विस्फोट से आसमान में विशाल बादल (कुकुरमुत्ते की आकृति) बने, जिसे देखकर ओपनहाइमर के मुंह से फिर निकला.
कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो
लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्त:
मैं लोकों का नाश करने वाला महाकाल हूँ. इस समय लोकों को नष्ट करने के लिए प्रवृत्त हुआ हूं. युवाल नोआ हरारी ने 'सेपियंस' में इसे पिछले 500 सालों के सबसे बड़ा और चमोत्कर्ष का क्षण कहा है. उनके अनुसार मनुष्य न सिर्फ इतिहास की दिशा मोड़ने बल्कि उसके अन्त करने के सामर्थ्य से लैस हो गया. इंसान स्वयं ईश्वर बन गया था. वह मिनटों में दुनिया को नष्ट कर सकता है. "मैं ही ईश्वर" हूँ वाली अनुभूति अमेरिका में आ गई. 20 दिन बाद जापान के दो शहर इस महाकाल की शक्ति की त्रासदी झेली. बमों की इस भयानक और विनाशक क्षमता से व्यथित ओपनहाइमर जीवनभर मानसिक यंत्रणा में रहे. उन्होंने कहा था कि यदि युद्धरत देशों के शस्त्रागार में एटम बम जमा होते रहे तो मानवजाति मुझे शाप देगी.
बाद में जब उन्होंने रेडियोधर्मिता के खतरों को पहचाना तो हाइड्रोजन बम के विकास का विरोध किया. न्यूयॉर्क में जन्मे ओपनहाइमर जर्मन-यहूदी थे. गीता के ये श्लोक अंग्रेजी में याद किए थे लेकिन वे संस्कृत (भाषा) जानते थे. गीता का अध्ययन कर रखा था. भारतीय दर्शन से प्रभावित थे. इसलिए लॉस वेगास में उन्हें गीता के श्लोक याद आए. बाद के सालों में अमेरिकी में उन्हें कम्युनिस्ट माना जाने लगा और देश के लिए ख़तरा घोषित कर दिया.
(16 जुलाई 1945 में सुबह 5:29 मिनट पर ये परीक्षण किया गया था.)
(संदर्भ;- आइंस्टाइन और ब्रह्माण्ड, गुणाकर मुले, दिल्ली विवि. से प्रकाशित)
(अमित एनडीटीवी इंडिया में असिस्टेंट आउटपुट एडिटर हैं)
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