अब यह तय माना जा रहा है कि बिहार विधानसभा चुनाव समय पर ही होंगे. चुनाव आयोग ने आज कोराना संकट के मद्देनजर दिशानिर्देश जारी कर दिए हैं. ईवीएम पर बटन दबाने के लिए मतदाताओं को दस्ताने दिए जाएंगे. इससे साफ है कि मत पत्रों से चुनाव कराने की मांग भी खारिज हो गई है. इसी के साथ सियासी घमासान जोर पकड़ने जा रहा है.
बिहार चुनाव में एक प्रमुख खिलाड़ी लोक जनशक्ति पार्टी है. उसके नेता चिराग पासवान पहली बार आगे आकर कमान संभाल रहे हैं. अभी तक रामविलास पासवान ही पार्टी का चेहरा होते थे, लेकिन चिराग पासवान अपने पिता के नक्शेकदम पर ही चल रहे हैं. हर चुनाव से पहले रामविलास पासवान सीटों के बंटवारे को लेकर जिस तरह पैंतरे दिखाते हैं वैसे ही चिराग भी दिखा रहे हैं. लेकिन इस बार हालात थोड़े अलग हैं.
नीतीश कुमार और चिराग पासवान के बीच बातचीत बंद है. चिराग खुद कह चुके हैं कि वे कई बार नीतीश को फोन कर चुके हैं लेकिन मुलाकात या बात नहीं हुई. रामविलास पासवान के जन्मदिन पर नीतीश कुमार ने बधाई बहुत देर से दी और वो भी ट्वीट के जरिए. पासवान की राज्यसभा सीट के समय भी नीतीश ने कहा कि इस बारे में बीजेपी से बात हुई होगी. जबसे पशुपति पारस सांसद बने, बिहार की जेडीयू-बीजेपी सरकार में एलजेपी का कोई मंत्री भी नहीं है. चिराग की पिछले दिनों पटना यात्रा के दौरान खबर उड़ी कि वे सरकार से समर्थन वापस लेने जा रहे हैं. हालांकि बाद में उन्होंने इसका खंडन किया. इस यात्रा से पहले बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने चिराग पासवान को फोन किया था.
इस बीच, जीतनराम मांझी ने महागठबंधन छोड़ दिया है. वे जल्दी ही एनडीए में शामिल हो सकते हैं. ऐसे में चिराग पासवान पर भी दबाव है. नीतीश कह चुके हैं कि गठबंधन बीजेपी और एलजेपी का है, जेडीयू-एलजेपी का नहीं. ऐसे में बीजेपी के बीच-बचाव पर काफी हद तक एनडीए की एकता का दारोमदार है.इस साल की शुरुआत से ही चिराग पासवान ने 'बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट' का नारा दे दिया. घोषणापत्र के लिए समितियां बना दीं. यह उनके तेवर दिखाने के लिए एक बड़ा इशारा है.
अब बात करते हैं असली मुद्दे की. ये है सीटों का बंटवारा. बीजेपी और जेडीयू के बीच लोक सभा चुनाव में 17-17 का फार्मूला चला. बाकी छह सीटें एलजेपी को दे दी गईं. विधानसभा चुनाव में बीजेपी चाहेगी कि बराबरी का बंटवारा हो जबकि जेडीयू बड़े भाई का खिताब अपने पास रखने के लिए बीजेपी से चार-पांच सीटें ज्यादा लड़ना चाहेगी. उधर, मांझी और पासवान दोनों को सीटें देनी होंगी. बीजेपी सूत्रों ने कहा है कि वे चाहते हैं कि बराबरी का बंटवारा हो और पासवान और मांझी को दोनों पार्टियां अपने-अपने हिस्से से सीटें दे दें. कोशिश होगी कि जेडीयू 105-110 सीटों पर लड़े. बीजेपी सौ सीटों पर और एलजेपी 25-30. जीतन राम मांझी को 7-9 सीटें मिल जाएं. हालांकि चिराग 35-36 सीटों पर नजर गड़ाए हैं.
बीजेपी और जेडीयू के बीच भी सीटों के बंटवारे को लेकर तयशुदा फार्मूला रहा है. 2005 और 2010 में बीजेपी ने दोनों ही बार 102 सीटों पर चुनाव लड़ा और 55 और 91 सीटें जीतीं जबकि जेडीयू ने क्रमश: 139 और 141 सीटें लड़ीं और 88 और 115 सीटें जीतीं. 2015 में बीजेपी और जेडीयू के रिश्ते टूटे और बीजेपी ने पासवान और मांझी के साथ चुनाव लड़ा. तब बीजेपी ने पहली बार 157 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन केवल 53 सीटें ही जीत पाईं. पासवान को 42 सीटें दी गईं जिनमें वे केवल दो जीते जबकि जीतनराम मांझी को 21 सीटें दी गईं और वे एक सीट ही जीत पाए. उपेंद्र कुशवाह को 23 सीटें दी गईं जिनमें उन्हें केवल दो सीटों पर जीत हासिल हुई.
राजधानी पटना में ये खबरें भी तैर रही हैं कि चिराग पासवान से कांग्रेस ने संपर्क साधा था. प्रशांत किशोर से भी उनकी मुलाकातों की बातें होती हैं पर अमूमन चुनाव के समय सीटों के बंटवारे के वक्त इस तरह की बातें होती हैं. यह जरूर है कि एलजेपी को एनडीए में बनाए रखने की जिम्मेदारी नीतीश ने बीजेपी पर डाल दी है. एनडीए की एकता बनाने के लिए अगर कोई कुर्बानी देनी होगी तो वो बीजेपी को ही देनी होगी. हालांकि जानकार यह भी कह रहे हैं कि बिहार चुनाव में इस बार परिणाम चाहे जो हो लेकिन असली खेल तो चुनाव के बाद ही होगा.
(अखिलेश शर्मा NDTV इंडिया के राजनीतिक संपादक हैं)
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