कल रात ट्विटर पर एक बड़ी खबर आई. फ्रांस की समाचार एजेंसी एएफपी ने ब्रेकिंग न्यूज चलाई कि नाइजीरिया ने अनिश्चितकाल के लिए ट्विटर पर प्रतिबंध लगा दिया है. पता चला कि ट्विटर ने वहां के राष्ट्रपति मुहम्मद बुहारी का एक ट्वीट कुछ समय के लिए हटा दिया था. इस ट्वीट में राष्ट्रपति ने देश के दक्षिण-पूर्वी हिस्से के उन लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की बात की थी जिन पर सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का आरोप है. कई लोगों ने इस ट्वीट की शिकायत की थी और इसे ट्विटर की एब्यूजिव बिहेवियर नीति का उल्लंघन माना था जिसके बाद ट्विटर ने उनका ट्वीट हटा दिया. जिसके बाद नाइजीरिया ने यह कार्रवाई की. सरकार के फैसले के तुरंत बाद ट्विटर की साइट पर रोक लग गई और लोग ट्वीट नहीं कर पाए. वहां ट्विटर बहुत लोकप्रिय है. उसके करीब चार करोड़ यूजर हैं.
इधर, भारत में आज जब लोग सुबह सो कर उठे तो पता चला कि देश के उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू के ट्विटर अकाउंट से ब्लू बैज हटा दिया गया. यह एक नीला सही का निशान होता है. यह बताने के लिए कि यह अकाउंट अधिकृत है. थोड़ी देर में पता चला कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत समेत आरएसएस के कई नेताओं के साथ भी ऐसा ही हुआ. भारत सरकार ने इस पर तीखा एतराज जताया. आईटी मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि उपराष्ट्रपति देश का दूसरा सबसे बड़ा संवैधानिक पद है. बिना पूर्व सूचना के इस पद पर आसीन व्यक्ति के ट्विटर अकाउंट के साथ ऐसी छेड़छाड़ की कार्रवाई गलत है. यह पूछा कि क्या ट्विटर ऐसा अमेरिका के राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के साथ कर सकता है. सूत्र ने यहां तक कहा कि ऐसा लगता है कि ट्विटर भारत सरकार के धैर्य की परीक्षा ले रहा है. दोपहर में सरकार ने ट्विटर को नोटिस भेज दिया और कहा कि यह अंतिम चेतावनी है कि वह जल्द से जल्द आईटी कानून के तहत नए नियमों का पालन करे नहीं तो उसको मिला कवच छिन सकता है और किसी भी आपत्तिजनक ट्वीट के लिए भारतीय कानूनों के तहत उसके खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है.
हालांकि नाइजीरिया के कदम के बाद ट्विटर पर ही यह बहस छिड़ गई कि अगर नाइजीरिया ट्विटर पर प्रतिबंध लगा सकता है तो भारत क्यों नहीं. तथाकथित टूल किट के मामले में ट्विटर से खार खाए बैठे सत्तारूढ़ भाजपा के समर्थकों में बहुत गुस्सा है. उन्हें लगता है कि ट्विटर पर उनकी बात दबाई जाती है और उनके तथा भाजपा नेताओं के साथ सौतेला व्यवहार किया जाता है. वे ट्विटर के काम करने के तरीके पर वामपंथी विचारधारा के हावी होने का आरोप लगाते हैं. कुछ लोग तो केंद्र सरकार की ही आलोचना करते हैं कि वह ट्विटर के खिलाफ सख्त कदम क्यों नहीं उठा रही और आखिर कब तक ट्विटर के हाथों शर्मिंदगी झेलती रहेगी. आरएसएस नेताओं ने ट्विटर के इस कदम को डिजिटल सामंतवाद करार दिया.
लेकिन यहां यह स्पष्ट करना जरूरी है कि भारत नाइजीरिया नहीं है. भारत सरकार चाह कर भी ऐसी कठोर कार्रवाई नहीं कर सकती. भारत एक मजबूत लोकतंत्र है. यहां अपनी कानून-व्यवस्था है. अदालतें हैं. कहने का मतलब यह नहीं कि नाइजीरिया में ऐसा सब नहीं है. लेकिन भारत से दूसरे देशों की, बड़े निवेशकों की कुछ ऐसी अपेक्षाएं हैं जो शायद नाइजीरिया से न हों. कोई भी विदेशी निवेशक यह नहीं चाहेगा कि भारत किसी प्राइवेट कंपनी की बाहें मरोड़े. ऐसी किसी भी कार्रवाई से निवेश के माहौल पर विपरीत असर पड़ सकता है. यह भारत की लोकतांत्रिक छवि के भी खिलाफ होगा जिस पर पिछले कुछ साल से कई आलोचक लगातार सवाल उठा रहे हैं.
पर इसका मतलब यह भी नहीं है कि किसी विदेशी कंपनी को मनमानी करने की छूट दे दी जाए. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को लेकर केवल भारत चिंतित नहीं है. दुनिया के कई अन्य देशों में उन्हें लेकर नए कानून-कायदे बन रहे हैं. भारत ने भी ऐसा ही किया है. सोशल मीडिया के लिए नया ऐथिक्स कोड बनाया है जिसके अनुसार कुछ कदम उठाने हैं. ट्विटर को छोड़ बाकी सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म उनका पालन करने पर सहमत हो गए हैं. इसीलिए आज फिर से ट्विटर को पत्र लिख कर अंतिम चेतावनी दी गई है.
एक दूसरी बहस यह भी है कि सोशल मीडिया पर थर्ड पार्टी या उपयोगकर्ता की विषय वस्तु के लिए कौन जिम्मेदार है. कथित टूल किट मामले में ट्विटर ने संपादक की भूमिका निभाते हुए बीजेपी नेताओं के टूल किट वाले ट्वीट को मैन्युपलेटेड मीडिया करार दे दिया. ट्विटर ने ऐसा किस आधार पर किया यह स्पष्ट नहीं किया. इसी ट्विटर पर हर रोज ऐसी सैंकड़ों पोस्ट की जाती है जिनकी विश्वसनीयता पर संदेह होता है. ट्विटर उनकी सत्यता की जांच क्यों नहीं करता? यही कारण है कि एक विशिष्ट विचारधारा के लोग ट्विटर की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हैं.
सोशल मीडिया की बढ़ती ताकत से कोई इनकार नहीं कर सकता. भारत की तकरीबन आधी आबादी सोशल मीडिया पर है. इस मीडिया ने परंपरागत मीडिया को पीछे छोड़ दिया है. केंद्र तथा राज्य सरकारें इसका बड़े पैमाने पर प्रयोग लोगों तक पहुंचने और उनकी बातों को सुनने के लिए कर रही हैं. सोशल मीडिया ने गवर्नेंस को ताकत दी है. ऐसे समय जब परंपरागत मीडिया की साख पर सवाल उठ रहे हैं, सोशल मीडिया ने आम आदमी की आवाज को मुखर किया. यह लोकतंत्रिक व्यवस्था तथा शासन में पारदर्शिता लाने का एक बड़ा माध्यम बन चुका है. लेकिन जैसा हर माध्यम के साथ होता है, निरंकुश ताकत भी दमन का एक कारण बन सकती है. इसीलिए कहा जा रहा है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को भी देश के नियम, कायदे और कानून के हिसाब से ही काम करना होगा.
(अखिलेश शर्मा NDTV इंडिया के एक्जीक्युटिव एडिटर हैं)
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