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This Article is From Aug 15, 2014

अखिलेश की कलम से : दिल से बोले, खुल कर बोले प्रधानमंत्री

Akhilesh Sharma
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  • Updated:
    नवंबर 20, 2014 13:07 pm IST
    • Published On अगस्त 15, 2014 16:23 pm IST
    • Last Updated On नवंबर 20, 2014 13:07 pm IST

लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण ये इशारा कर रहा है कि देश के लिए आने वाले पांच साल कैसे होंगे। जनता से सीधा संवाद बिना लाग−लपेट के अपनी बात और परिवार के मुखिया जैसे अंदाज़ में घर के सदस्यों क्या करें− क्या न करें जैसी हिदायतें। आरोप− प्रत्यारोप टांग खिंचाई और उपहास उड़ाने की बातें चुनाव खत्म होते ही हवा हो गई हैं। अब बहुमत नहीं सहमति से आगे बढ़ने की बात है।

प्रधानमंत्री के संबोधन में तमाम पूर्व प्रधानमंत्रियों और सरकारों की तारीफ सुनकर हो सकता है, उन लोगों को आघात लगा हो जो कहते रहे हैं कि मोदी सिर्फ अपना ढोल पीटने में ही यकीन करते हैं। गांव−गरीब−मजदूर−किसान सबके लिए कुछ न कुछ करने की बात चाहे समाजवाद के किसी नारे की तरह सुनाई दे, मगर संदेश साफ है समाजवादी नीतियों और उनके तहत बने सरकारी ढांचों से ऊपर उठने का वक्त आ गया है।

जवाहरलाल नेहरू नहीं सरदार पटेल के बताए रास्ते पर देश को ले जाने का संकेत है। जर्जर और पुराने हो चुके योजना आयोग को खत्म कर नई व्यवस्था बनाने का एलान। मोदी का भाषण पुरानी लकीरों को मिटा कर अपनी लकीर बड़ी करने की कोशिश नहीं है, बल्कि अपनी नई रेखा की नींव रख रहा है।
ग्राम स्वराज और पंचायती राज जैसे विचारों की उपयोगिता और उनके अमल पर पुरानी बहस के बीच सांसदों को सीधे गांव से जोड़ना एक नए विचार की शुरुआत है। समस्याएं गिनाना नहीं बल्कि उनके समाधान सुझाना नेतृत्व की कसौटी होती है। इसमें मोदी अपने पहले भाषण कामयाब होते दिख रहे हैं।

राष्ट्रीय चरित्र के निर्माण के लिए देश के मुखिया को लोगों को नसीहत देनी हो ये नौबत ही क्यों आई ये अलग बहस है। मगर नई कार्य संस्कृति दलालों−बिचौलियों पर लगाम कसने और मंत्रियों को एजेंडे के मुताबिक काम करने के लिए कड़े निर्देश इस दिशा में महत्वपूर्ण पहल माने जा सकते हैं।

ज़ाहिर है फैसलों पर अमल के तरीके और रफ्तार से सरकार और सबसे बढ़ कर खुद प्रधानमंत्री मोदी की प्रामाणिकता तय होगी, लेकिन गुजरात में बारह साल का उनका शासनकाल ये ज़रूर बता देता है कि इसमें वह पीछे नहीं रहते।

बदली सरकार शासन तंत्र और कमर्चारियों में विश्वास जगा पाती है या नहीं ये भी प्रधानमंत्री मोदी की एक बड़ी चुनौती है। ये जरूर है कि प्रधानमंत्री मोदी का आज का भाषण इस भरोसे को वापस लाने की दिशा में पहला मगर ठोस कदम है।

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