राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद कांग्रेस के पास कोई 'प्लान बी' नहीं...

पार्टी की बिगड़ती हालत ने अफरातफरी को और बढ़ा दिया जिसकी वजह ले राहुल गांधी को अपना इस्‍तीफा सार्वजनिक करने पर मजबूर होना पड़ा.

राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद कांग्रेस के पास कोई 'प्लान बी' नहीं...

क्या गांधी वाकई जाएंगे? यह कांग्रेस के उस वरिष्‍ठ नेता का सवाल है जो कई बार मंत्री भी रह चुके हैं. उन्‍होंने कहा, 'मैंने उन्हें इतना व्याकुल तब भी नहीं देखा जब हालात बदतर थे.

पार्टी की बिगड़ती हालत ने अफरातफरी को और बढ़ा दिया जिसकी वजह से राहुल गांधी को अपना इस्‍तीफा सार्वजनिक करने पर मजबूर होना पड़ा. राहुल गांधी ने अपने ट्विटर बायो से भी 'कांग्रेस अध्‍यक्ष' हटा दिया जो उनकी पार्टी के लिए बड़ा इशारा था.

लेकिन पूरे गांधी परिवार के साथ, जिसमें मां और दो बच्चे अभी सक्रिय राजनीति में हैं, और ऐसा लगता है कि कांग्रेस को मालूम ही नहीं है कि किसी गांधी की सरपरस्‍ती के बिना पार्टी को कैसे आगे बढ़ना है. इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा है जब पूरा गांधी परिवार राजनीति में है, और उनमें से किसी का पार्टी के केंद्र में या इसका चेहरा नहीं होना विडंबना ही है.

मैंने इस कॉलम को लिखने से पहले कई वरिष्‍ठ नेताओं और गांधी परिवार के विश्‍वासपात्र लोगों से बात की, उन्‍होंने इस बात की पुष्टि की कि गांधी परिवार पार्टी के नए अध्‍यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया में शामिल नहीं होना चाहता. ऐसा यह सुनिश्चित करने के लिए कि नए पार्टी अध्‍यक्ष को गांधी परिवार का मुखौटा न समझा जाए.

सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा, दोनों ने ही राहुल गांधी को अध्‍यक्ष पद नहीं छोड़ने के लिए मनाने की तमाम कोशिशें की, लेकिन वो अपने फैसले पर अडिग रहे. राहुल ने कथित रूप से उनसे कहा, 'क्‍या आप चाहते हैं कि मैं अपने फैसले से पीछे हटकर अपनी फजीहत कराऊं. मैं फैसला कर चुका हूं.'

एक ओर राहुल गांधी ने जहां अपने फैसलों पर अडिग रहकर राजनीति में अपनी विश्‍वसनीयता को बनाए रखा, तो दूसरी ओर उनके इस दृढ़ निश्‍चय ने उनकी पार्टी की 'दयनीय' हालत की ओर सबका ध्‍यान खींचा है.

राहुल अब भी नाराज हैं, जैसा कि उनके पत्र में लिखा है: उन्‍होंने सामान्‍य रूप से लोकसभा चुनाव में हार की जिम्‍मेदारी तो ली साथ ही यह भी स्‍पष्‍ट किया की अन्‍य नेताओं को भी पार्टी के डूबने की जिम्‍मेदारी लेनी चाहिए. जैसा कि 7 जून को मैंने रिपोर्ट की थी, राहुल गांधी चाहते थे कि उनका इस्‍तीफा 'कामराज प्‍लान-2' के लिए मार्ग प्रशस्‍त करें ताकि पार्टी के वरिष्‍ठ नेता लोकसभा में पार्टी की दुर्गति की जिम्‍मेदारी लेते हुए अपने पदों से इस्‍तीफा दें और बड़े पैमाने पर पार्टी का पुनर्गठन हो सके.

लेकिन युवा कांग्रेस के कुछ नेताओं और कुछ सचिवों के अलावा किसी भी वरिष्‍ठ नेता ने ऐसा नहीं किया. राजस्‍थान के मुख्‍यमंत्री अशोक गहलोत, जो अपने राज्‍य में लोकसभा की सभी 25 सीटें हार गए, ने कहा कि गांधी का पत्र प्रेरणादायी और दिलचस्प था, हालांकि निश्‍चित रूप से उस पत्र से उन्‍हें कोई प्रेरणा नहीं मिली.

मध्‍य प्रदेश के मुख्‍यमंत्री कमलनाथ ने पार्टी की राज्‍य इकाई के अध्‍यक्ष पद से इस्‍तीफा देने की पेशकश की थी.

राहुल गांधी ने यह भी लिखा था कि उन्‍हें लगता है कि वो मोदी से अकेले लड़ रहे हैं. इसके अलावा अमेठी जैसी परंपरागत सीट हार जाने ने उनके निश्‍चय को और दृढ़ किया. उनके करीबी सूत्र कहते हैं कि वो अब पार्टी की नाकामियों के लिए खुद जिम्‍मेदार नहीं बनना चाहते.

सोनिया गांधी ने भी पार्टी के कोषाध्‍यक्ष व अपने करीबी सहयोगी अहमद पटेल को कहा है कि वो नए अध्‍यक्ष की चयन प्रक्रिया में शामिल होना चाहेंगी.

तो अब कांग्रेस के लिए आगे क्‍या? वरिष्‍ठ नेताओं को डर है कि पार्टी टूट न जाए. अध्‍यक्ष पद के लिए स्‍वाभाविक पसंद माने जाने वाले पंजाब के मुख्‍यमंत्री 77 वर्षीय कैप्‍टन अमरिंदर सिंह कह चुके हैं कि किसी युवा को यह जिम्‍मेदारी लेनी चाहिए. दलित नेताओं में सुशील कुमार शिंदे भी एक विकल्‍प हो सकते हैं लेकिन आदर्श रूप से देखें तो पार्टी को अध्‍यक्ष पद और कांग्रेस कार्य समिति (CWC) के सभी सदस्‍यों के चयन के लिए चुनाव कराना चाहिए.

वर्तमान में CWC के सदस्‍यों में केवल 6 चुने हुए सांसद हैं, बाकी सभी राज्‍यसभा के सदस्‍य हैं, उनमें से कुछ ने तो 35 साल पहले चुनाव लड़ा था.

राजस्‍थान के उप मुख्‍यमंत्री सचिन पायलट पार्टी में राहुल गांधी के विकल्‍प के दावेदार हैं लेकिन वरिष्‍ठ नेता किसी ऐसे नेता को शक्ति देने को लेकर सशंकित हैं जिसे महत्‍वाकांक्षी माना जाता है. सचिन पायलट चाहेंगे कि अशोक गहलोत को अध्‍यक्ष बनाया जाए जिससे उनका राजस्‍थान का मुख्‍यमंत्री बनने का सपना साकार हो जाए लेकिन लगता नहीं कि गहलोत तैयार होंगे.

राहुल गांधी कामराज-2 को लागू करना चाहते थे ताकि संगठनात्‍मक चुनाव हो सकें. लेकिन अब भी, जब गांधी परिवार पीछे हट चुका है, कांग्रेस के वरिष्‍ठ नेता अब भी चुनाव से बचना चाह रहे हैं. वो चाहते हैं कि 5-6 नेताओं की समूह बने जो एक समिति का गठन करे और वो समिति कांग्रेस को चलाए. कांग्रेस कार्यसमिति की 10 जुलाई को बैठक बुलाई गई है जिसमें राहुल गांधी के इस्‍तीफे को स्‍वीकार किया जाएगा और नई व्‍यवस्‍था तय की जाएगी. महत्‍वपूर्ण यह है कि गांधी परिवार इस बैठक में शामिल नहीं होगा क्‍योंकि वो निजी यात्रा पर विदेश में होंगे.

एक युवा कांग्रेस नेता ने कहा, 'कम्‍यूनिस्‍ट पार्टी के पोलित ब्‍यूरो की नकल करना एक और आफत की तरह ही होगा, आप समिति के जरिए राजनीति नहीं कर सकते. जब इस पार्टी ने एक गांधी की नहीं सुनी, तो आखिर क्‍यों कोई नेता इस समिति की बात मानेगा.

युवा नेताओं और वरिष्‍ठों में विभाजन अब ज्‍यादा स्‍पष्‍ट दिखता है. पहले सोनिया गांधी दखल देतीं और सुनिश्‍च‍ित करतीं कि राहुल उनकी सुनें, लेकिन अब गांधी नहीं हैं.

एक वरिष्‍ठ नेता ने कहा कि यदि पार्टी में अफरातफरी कुछ समय तक जारी रहती है तो शायद प्रियंका गांधी अध्‍यक्ष बनने के लिए राजी हो जाएं. पार्टी गांधी के सहारे की उम्‍मीद में रहती है.

तीन महीनों के बाद हरियाणा, महाराष्‍ट्र और झारखंड में चुनाव होने हैं. ऐसे में उन चुनावों की तैयारी करने की बजाय कांग्रेस इन चीजों में उलझी है जबकि बीजेपी पार्टी के सदस्‍यता अभियान के लॉन्‍च और प्रचार में लगी है.

स्वाति चतुर्वेदी लेखिका तथा पत्रकार हैं, जो 'इंडियन एक्सप्रेस', 'द स्टेट्समैन' तथा 'द हिन्दुस्तान टाइम्स' के साथ काम कर चुकी हैं...

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