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Abhishek Sharma Blog

'Abhishek Sharma Blog' - 49 News Result(s)
  • अभिषेक शर्मा का ब्लॉग : मिडिल क्लास कैसे चुनावों का एजेंडा सेट करता रहा है?

    अभिषेक शर्मा का ब्लॉग : मिडिल क्लास कैसे चुनावों का एजेंडा सेट करता रहा है?

    ज्यों-ज्यों मध्यम वर्ग बढ़ेगा विकास की कहानी भी आगे बढ़ेगी. किसी भी लोकतंत्र के लिये ये बड़ा शुभ संकेत है. मिडिल क्लास अब चुनावों में महिलाओं के लिये बेहतर जगह, रोजगार के अवसर और सामाजिक सुरक्षा के वादे मांगता है. ये सब इसलिये भी हो रहा है क्योंकि उसकी तरक्की के संग लोकतंत्र की बेहतरी का सीधा रिश्ता है.

  • कश्मीर ने वोटिंग का रिकॉर्ड क्यों बनाया

    कश्मीर ने वोटिंग का रिकॉर्ड क्यों बनाया

    कल तक जिन सियासी परिवारों के बारे में माना जाता था कि वो दिल्ली के इशारे पर चलते हैं अब वो खुद को कश्मीरियों की आवाज़ बता रहे हैं. वो चुनाव के ज़रिए ये साबित करना चाहते हैं कि दिल्ली उनको बातचीत के लिए टेबल पर बिठाए. 

  • चुनाव नतीजों का अनुमान लगाना मुश्किल क्यों होता है...?

    चुनाव नतीजों का अनुमान लगाना मुश्किल क्यों होता है...?

    मतदाता का मन जानने के लिए मीडिया के जो टूल हैं, बेहद पुराने हैं और उनमें विविधता की बड़ी कमी है. जो मीडियाकर्मी मतदाताओं का इंटरव्यू करते हैं, वे खास किस्म की पहचान से आते हैं. उनके अपने पूर्वाग्रह भी हैं.

  • सोशल मीडिया के गुरु घंटाल से सावधान

    सोशल मीडिया के गुरु घंटाल से सावधान

    मेटा की एक स्टडी कहती है कि ज्यादा खाने की समस्या से परेशान लोगों ने जब ऑनलाइन हेल्थ टिप्स लेने की कोशिश की है, तो इसका उन्हें नुकसान ही हुआ है. स्कूल से लेकर कॉलेज तक कहीं भी ये नहीं पढ़ाया जा रहा है कि अगर आप सोशल मीडिया या इंटरनेट की दुनिया में स्वास्थ्य से जुड़ी कोई जानकारी पढ़ रहे हैं, तो उसे कैसे प्रोसेस करें. उस जानकारी को तौलने के मापदंड कहीं भी नहीं सिखाए जा रहे हैं.

  • मनोरंजन की भागदौड़ में बहुत कुछ छूट रहा है, इसके बारे में जरा सोचिए

    मनोरंजन की भागदौड़ में बहुत कुछ छूट रहा है, इसके बारे में जरा सोचिए

    मिसाइल मैन और पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम को लेकर कई संस्मरण लिखे गए. इनमें से एक संस्मरण में उनके साथी ने लिखा कि कैसे अब्दुल कलाम कार यात्रा या किसी भी यात्रा के दौरान बाहर देखा करते थे. कुदरत के नजारे जैसे भी हों वो देखते थे. उनके एक सहयोगी को उन्होंने अक्सर फोन पर व्यस्त देखा तो कहा कि अब नई उम्र के लोग बाहर देखने या नजारों को आंखों में कैद करने में यकीन ही नहीं करते. अब्दुल कलाम तब शायद ही यह कल्पना कर रहे होंगे कि एक ऐसा दौर भी आएगा जब लोग खाने की टेबल पर भी अपने अपने मोबाइल के साथ पहुंचेंगे. ये नजारे अब बेहद आम हैं.

  • आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस और चुनावी धांधली

    आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस और चुनावी धांधली

    वर्ष 2024 में करीब 50 देशों में चुनाव हो रहे हैं. भारत भी उनमें से एक है. चुनाव में आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस (AI) के इस्तेमाल को लेकर अब दुनिया भर में चिंताएं हैं. सबसे ज्यादा डर चीन जैसे देशों से है, जिनके बारे में कहा जा रहा है कि उसके निशाने पर भारत, अमेरिका और दक्षिण कोरिया जैसे देशों के चुनाव हो सकते हैं. चुनाव में भावनाएं भड़काने और उम्मीदवारों के खिलाफ माहौल बनने में आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस को लेकर जो खतरे जताए जा रहे थे अब उनका असर दिख रहा है. 

  • कम मतदान के आधार पर चुनाव परिणाम की पहेली सुलझाना सही नहीं

    कम मतदान के आधार पर चुनाव परिणाम की पहेली सुलझाना सही नहीं

    कम मतदान की पहेली का एक मतलब ये भी निकाला जा सकता है कि मतदाता को कोई उत्साह नहीं है, क्योंकि उसको ये लगता है कि उसके वोट से कोई फर्क नहीं पड़ता. एक वजह ये भी हो सकती है कि वो परिणाम को लेकर पहले से ही आश्वस्त है...

  • राजनीति और फिल्म का रिश्ता इतना टिकाऊ क्यों नहीं है?

    राजनीति और फिल्म का रिश्ता इतना टिकाऊ क्यों नहीं है?

    कई कार्यकर्ता आपको ये शिकायत करते हुए मिल जाएंगे कि अभिनेता अपने स्वभाव को राजनीति के हिसाब से बदलने के लिए तैयार ही नहीं हैं. दूसरा पक्ष अभिनेताओं का भी है. वो राजनीति की जो चमक-दमक ऊपर से देखते हैं उसकी असलियत चुनाव जीतने के बाद उन्हें पता लगती है..

  • महाराष्ट्र की राजनीति को समझना हो, तो माढ़ा सीट के समीकरण को गौर से देखिए

    महाराष्ट्र की राजनीति को समझना हो, तो माढ़ा सीट के समीकरण को गौर से देखिए

    महायुति के अंदर एक तबका ऐसा है, जो सवाल कर रहा है कि पार्टी के लिए अगर सब कुछ हमने दिया है तो फिर 'बाहरी' उम्मीदवारों को मौका क्यों मिल रहा है.

  • चुनावी बॉन्ड खत्म करेंगे तो वैकल्पिक इंतजाम क्या होंगे?

    चुनावी बॉन्ड खत्म करेंगे तो वैकल्पिक इंतजाम क्या होंगे?

    भारत में चुनावी चंदे को सुधारने की कोशिश हो रही हैं. बढ़ते चुनावी खर्च की चिंता सिर्फ पार्टियों को ही नहीं, कारपोरेट घरानों को भी है. बॉन्ड स्कीम में कई पेंच हैं, उन पेंच को आने वाले वक्त में सुधारा जा सकता है. बॉन्ड ने कैश की जरूरत को कम किया था. लेकिन उसने जानने के अधिकार को कमजोर कर दिया था.

  • 'एक देश, एक चुनाव' को पार्टी से आगे जाकर देखना होगा

    'एक देश, एक चुनाव' को पार्टी से आगे जाकर देखना होगा

    बहस छिड़ चुकी है कि वक्त आ गया है, जब चुनाव का रूप बदला जाए. एक जीवित लोकतंत्र में चुनावों का रूप भारत ने बदलकर दिखाया है. EVM का इस्तेमाल हो या मतदाताओं तक चुनाव को ले जाना हो, बदलाव हर वक्त हो रहे हैं.

  • NDA 400 पार : वोटर मनोविज्ञान पिच पर खेल रहे PM मोदी

    NDA 400 पार : वोटर मनोविज्ञान पिच पर खेल रहे PM मोदी

    एक लोकतांत्रिक देश के तौर पर चुनाव और वोटर के दिमाग में क्या चल रहा है, इसका अध्ययन भले ही कम हो रहा हो लेकिन नेता इस बात को बखूबी समझ रहे होते हैं. उन्हें पता होता है कि कैसे और कब मनोवैज्ञानिक दबाव बनाना है.

  • मुंबई क्या सीखे सिंगापुर से...?

    मुंबई क्या सीखे सिंगापुर से...?

    मुंबई के पानी की इस कहानी से आपको यह अंदाज़ा हो जाएगा कि शहर का पानी प्रबंधन ठीक-ठाक सोचा गया था, लेकिन अब मामला गंभीर हो चला है. शहर को पानी देने वाली झीलें अब आधे से नीचे के निशान पर हैं. BMC अंदाज़ा लगा रही है कि उसे कब से कितनी पानी कटौती करनी है.

  • नींद, स्कूल, टाइम और हम..., छिड़ी नई बहस

    नींद, स्कूल, टाइम और हम..., छिड़ी नई बहस

    राज्यपाल रमेश बैंस ने चिंता जताई थी कि छोटे स्कूली बच्चों की नींद पूरी नहीं हो रही है. लिहाजा उन्हें लेट स्कूल जाना चाहिए. राज्यपाल की बात में संवेदना है, लेकिन ऐसा लगता है इस भाषण ने नई बहस छेड़ दी है.

  • गूगल ज्ञान लेकर खुद डॉक्टर न बनें तो बेहतर

    गूगल ज्ञान लेकर खुद डॉक्टर न बनें तो बेहतर

    जानकारियों की बहुतायत क्या आपको किसी जंजाल में फंसा रही है? क्या आप गूगल सर्च करके अपनी समस्याओं को बढ़ा-चढ़ा कर देखने लगे हैं? या फिर आप वही उत्तर चुन रहे हैं जो आपको सुविधाजनक लग रहे हैं.

'Abhishek Sharma Blog' - 3 Video Result(s)
  • 20 min, 29 sec
    • June 26, 2014
  • 19 min, 16 sec
    • December 27, 2013
  • 16 min, 13 sec
    • December 27, 2013
'Abhishek Sharma Blog' - 49 News Result(s)
  • अभिषेक शर्मा का ब्लॉग : मिडिल क्लास कैसे चुनावों का एजेंडा सेट करता रहा है?

    अभिषेक शर्मा का ब्लॉग : मिडिल क्लास कैसे चुनावों का एजेंडा सेट करता रहा है?

    ज्यों-ज्यों मध्यम वर्ग बढ़ेगा विकास की कहानी भी आगे बढ़ेगी. किसी भी लोकतंत्र के लिये ये बड़ा शुभ संकेत है. मिडिल क्लास अब चुनावों में महिलाओं के लिये बेहतर जगह, रोजगार के अवसर और सामाजिक सुरक्षा के वादे मांगता है. ये सब इसलिये भी हो रहा है क्योंकि उसकी तरक्की के संग लोकतंत्र की बेहतरी का सीधा रिश्ता है.

  • कश्मीर ने वोटिंग का रिकॉर्ड क्यों बनाया

    कश्मीर ने वोटिंग का रिकॉर्ड क्यों बनाया

    कल तक जिन सियासी परिवारों के बारे में माना जाता था कि वो दिल्ली के इशारे पर चलते हैं अब वो खुद को कश्मीरियों की आवाज़ बता रहे हैं. वो चुनाव के ज़रिए ये साबित करना चाहते हैं कि दिल्ली उनको बातचीत के लिए टेबल पर बिठाए. 

  • चुनाव नतीजों का अनुमान लगाना मुश्किल क्यों होता है...?

    चुनाव नतीजों का अनुमान लगाना मुश्किल क्यों होता है...?

    मतदाता का मन जानने के लिए मीडिया के जो टूल हैं, बेहद पुराने हैं और उनमें विविधता की बड़ी कमी है. जो मीडियाकर्मी मतदाताओं का इंटरव्यू करते हैं, वे खास किस्म की पहचान से आते हैं. उनके अपने पूर्वाग्रह भी हैं.

  • सोशल मीडिया के गुरु घंटाल से सावधान

    सोशल मीडिया के गुरु घंटाल से सावधान

    मेटा की एक स्टडी कहती है कि ज्यादा खाने की समस्या से परेशान लोगों ने जब ऑनलाइन हेल्थ टिप्स लेने की कोशिश की है, तो इसका उन्हें नुकसान ही हुआ है. स्कूल से लेकर कॉलेज तक कहीं भी ये नहीं पढ़ाया जा रहा है कि अगर आप सोशल मीडिया या इंटरनेट की दुनिया में स्वास्थ्य से जुड़ी कोई जानकारी पढ़ रहे हैं, तो उसे कैसे प्रोसेस करें. उस जानकारी को तौलने के मापदंड कहीं भी नहीं सिखाए जा रहे हैं.

  • मनोरंजन की भागदौड़ में बहुत कुछ छूट रहा है, इसके बारे में जरा सोचिए

    मनोरंजन की भागदौड़ में बहुत कुछ छूट रहा है, इसके बारे में जरा सोचिए

    मिसाइल मैन और पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम को लेकर कई संस्मरण लिखे गए. इनमें से एक संस्मरण में उनके साथी ने लिखा कि कैसे अब्दुल कलाम कार यात्रा या किसी भी यात्रा के दौरान बाहर देखा करते थे. कुदरत के नजारे जैसे भी हों वो देखते थे. उनके एक सहयोगी को उन्होंने अक्सर फोन पर व्यस्त देखा तो कहा कि अब नई उम्र के लोग बाहर देखने या नजारों को आंखों में कैद करने में यकीन ही नहीं करते. अब्दुल कलाम तब शायद ही यह कल्पना कर रहे होंगे कि एक ऐसा दौर भी आएगा जब लोग खाने की टेबल पर भी अपने अपने मोबाइल के साथ पहुंचेंगे. ये नजारे अब बेहद आम हैं.

  • आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस और चुनावी धांधली

    आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस और चुनावी धांधली

    वर्ष 2024 में करीब 50 देशों में चुनाव हो रहे हैं. भारत भी उनमें से एक है. चुनाव में आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस (AI) के इस्तेमाल को लेकर अब दुनिया भर में चिंताएं हैं. सबसे ज्यादा डर चीन जैसे देशों से है, जिनके बारे में कहा जा रहा है कि उसके निशाने पर भारत, अमेरिका और दक्षिण कोरिया जैसे देशों के चुनाव हो सकते हैं. चुनाव में भावनाएं भड़काने और उम्मीदवारों के खिलाफ माहौल बनने में आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस को लेकर जो खतरे जताए जा रहे थे अब उनका असर दिख रहा है. 

  • कम मतदान के आधार पर चुनाव परिणाम की पहेली सुलझाना सही नहीं

    कम मतदान के आधार पर चुनाव परिणाम की पहेली सुलझाना सही नहीं

    कम मतदान की पहेली का एक मतलब ये भी निकाला जा सकता है कि मतदाता को कोई उत्साह नहीं है, क्योंकि उसको ये लगता है कि उसके वोट से कोई फर्क नहीं पड़ता. एक वजह ये भी हो सकती है कि वो परिणाम को लेकर पहले से ही आश्वस्त है...

  • राजनीति और फिल्म का रिश्ता इतना टिकाऊ क्यों नहीं है?

    राजनीति और फिल्म का रिश्ता इतना टिकाऊ क्यों नहीं है?

    कई कार्यकर्ता आपको ये शिकायत करते हुए मिल जाएंगे कि अभिनेता अपने स्वभाव को राजनीति के हिसाब से बदलने के लिए तैयार ही नहीं हैं. दूसरा पक्ष अभिनेताओं का भी है. वो राजनीति की जो चमक-दमक ऊपर से देखते हैं उसकी असलियत चुनाव जीतने के बाद उन्हें पता लगती है..

  • महाराष्ट्र की राजनीति को समझना हो, तो माढ़ा सीट के समीकरण को गौर से देखिए

    महाराष्ट्र की राजनीति को समझना हो, तो माढ़ा सीट के समीकरण को गौर से देखिए

    महायुति के अंदर एक तबका ऐसा है, जो सवाल कर रहा है कि पार्टी के लिए अगर सब कुछ हमने दिया है तो फिर 'बाहरी' उम्मीदवारों को मौका क्यों मिल रहा है.

  • चुनावी बॉन्ड खत्म करेंगे तो वैकल्पिक इंतजाम क्या होंगे?

    चुनावी बॉन्ड खत्म करेंगे तो वैकल्पिक इंतजाम क्या होंगे?

    भारत में चुनावी चंदे को सुधारने की कोशिश हो रही हैं. बढ़ते चुनावी खर्च की चिंता सिर्फ पार्टियों को ही नहीं, कारपोरेट घरानों को भी है. बॉन्ड स्कीम में कई पेंच हैं, उन पेंच को आने वाले वक्त में सुधारा जा सकता है. बॉन्ड ने कैश की जरूरत को कम किया था. लेकिन उसने जानने के अधिकार को कमजोर कर दिया था.

  • 'एक देश, एक चुनाव' को पार्टी से आगे जाकर देखना होगा

    'एक देश, एक चुनाव' को पार्टी से आगे जाकर देखना होगा

    बहस छिड़ चुकी है कि वक्त आ गया है, जब चुनाव का रूप बदला जाए. एक जीवित लोकतंत्र में चुनावों का रूप भारत ने बदलकर दिखाया है. EVM का इस्तेमाल हो या मतदाताओं तक चुनाव को ले जाना हो, बदलाव हर वक्त हो रहे हैं.

  • NDA 400 पार : वोटर मनोविज्ञान पिच पर खेल रहे PM मोदी

    NDA 400 पार : वोटर मनोविज्ञान पिच पर खेल रहे PM मोदी

    एक लोकतांत्रिक देश के तौर पर चुनाव और वोटर के दिमाग में क्या चल रहा है, इसका अध्ययन भले ही कम हो रहा हो लेकिन नेता इस बात को बखूबी समझ रहे होते हैं. उन्हें पता होता है कि कैसे और कब मनोवैज्ञानिक दबाव बनाना है.

  • मुंबई क्या सीखे सिंगापुर से...?

    मुंबई क्या सीखे सिंगापुर से...?

    मुंबई के पानी की इस कहानी से आपको यह अंदाज़ा हो जाएगा कि शहर का पानी प्रबंधन ठीक-ठाक सोचा गया था, लेकिन अब मामला गंभीर हो चला है. शहर को पानी देने वाली झीलें अब आधे से नीचे के निशान पर हैं. BMC अंदाज़ा लगा रही है कि उसे कब से कितनी पानी कटौती करनी है.

  • नींद, स्कूल, टाइम और हम..., छिड़ी नई बहस

    नींद, स्कूल, टाइम और हम..., छिड़ी नई बहस

    राज्यपाल रमेश बैंस ने चिंता जताई थी कि छोटे स्कूली बच्चों की नींद पूरी नहीं हो रही है. लिहाजा उन्हें लेट स्कूल जाना चाहिए. राज्यपाल की बात में संवेदना है, लेकिन ऐसा लगता है इस भाषण ने नई बहस छेड़ दी है.

  • गूगल ज्ञान लेकर खुद डॉक्टर न बनें तो बेहतर

    गूगल ज्ञान लेकर खुद डॉक्टर न बनें तो बेहतर

    जानकारियों की बहुतायत क्या आपको किसी जंजाल में फंसा रही है? क्या आप गूगल सर्च करके अपनी समस्याओं को बढ़ा-चढ़ा कर देखने लगे हैं? या फिर आप वही उत्तर चुन रहे हैं जो आपको सुविधाजनक लग रहे हैं.

'Abhishek Sharma Blog' - 3 Video Result(s)
  • 20 min, 29 sec
    • June 26, 2014
  • 19 min, 16 sec
    • December 27, 2013
  • 16 min, 13 sec
    • December 27, 2013
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