नरेंद्र मोदी को पीएम के तौर पर शायद इस बात का अंदाज़ा भी नहीं होगा कि विपक्ष नहीं, बल्कि संसद में उन्हीं की सरकार के एक बड़े मंत्री और एक पुराने सांसद भ्रष्टाचार के मसले पर आमने-सामने होंगे।
ये शायद नरेंद्र मोदी सरकार की अभीतक की सबसे शर्मनाक स्थिति है कि जब वित्तमंत्री जेटली डीडीसीए के मसले पर संसद में सफाई देते हैं और कीर्ति आज़ाद अपने इसी मंत्री के मसले पर सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं।
ना खाऊंगा ना खाने दूंगा का नारा देने वाले नरेंद्र मोदी को अब इसपर जवाब देना होगा। मामला जितना अरुण जेटली बनाम केजरीवाल है उतना ही अरुण जेटली बनाम कीर्ति आज़ाद भी है। अब ये मामला क़ानून और अदालत तक पहुंच चुका है। इसका साफ मतलब ये भी है कि इससे जुड़ी कानूनी कार्रवाई मोदी सरकार को आगे भी शर्मसार करती रहेगी।
फ़ैसला नरेंद्र मोदी के हाथ में है कि वो इस स्थिति में लग रहे दाग़ को और धारणा को कैसे बदलेंगे। बयानों की राजनीति तो चलती रहेगी लेकिन जवाबदेही अब नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की है।
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