- कार्तिकेय शर्मा, IIT खड़गपुर और IIM अहमदाबाद से पढ़ाई करने के बाद 2014 में आईपीएस बने
- पूर्णिया, शेखपुरा और गया में सख्त और परिणाम-उन्मुख कार्यशैली अपनाकर उन्होंने पुलिसिंग की प्रभावी छवि बनाई
- 2025 में पटना के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक बनाए गए, जहां उन्होंने अपराध नियंत्रण के लिए कई नई नीतियां लागू कीं
रात के सन्नाटे में सायरनों की आवाज़ गूंजती है. सड़कों पर पुलिस की गाड़ियां दौड़ रही हैं और उनके वायरलेस सेट से एक नाम बार-बार सुनाई देता है, “शर्मा साहब पहुंचे क्या?” यह वही नाम है जिसने राजधानी पटना की अपराध-गाथा को नई दिशा दी कार्तिकेय के शर्मा, बिहार कैडर के 2014 बैच के आईपीएस अधिकारी, जो आज पटना के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (SSP) हैं. लेकिन यह कहानी सिर्फ एक अफसर की नहीं, बल्कि उस यात्रा की है जो एक IITian और IIM ग्रेजुएट को कानून की अग्रिम पंक्ति तक लेकर आई.
IIT खड़गपुर और IIM अहमदाबाद से कर चुके हैं पढ़ाई
4 सितंबर 1988 को रांची में जन्मे कार्तिकेय शर्मा ने देश के दो शीर्ष संस्थानों, IIT खड़गपुर और IIM अहमदाबाद से पढ़ाई की. इंजीनियरिंग और प्रबंधन में डिग्रियां हासिल करने के बाद उन्होंने कॉर्पोरेट जगत का रास्ता नहीं चुना. उन्होंने देशसेवा की राह चुनी और UPSC परीक्षा पास कर 2014 में आईपीएस बने. बिहार कैडर मिलने के बाद उन्होंने सबसे पहले ज़मीनी स्तर पर काम करते हुए पुलिसिंग की असल परख की पूर्णिया, शेखपुरा और गया जैसे जिलों में वे अपनी सख्त, विवेकपूर्ण और परिणाम-उन्मुख कार्यशैली के लिए जाने गए.
14 जून 2025 को बिहार सरकार ने 18 आईपीएस अधिकारियों का तबादला किया, जिसमें कार्तिकेय शर्मा को पूर्णिया से राजधानी पटना भेजा गया. यह तबादला उस वक्त हुआ जब शहर में अपराध का ग्राफ लगातार बढ़ रहा था हत्या, लूट और छिनतई की घटनाएँ सुर्खियों में थीं. नए SSP के रूप में पदभार ग्रहण करते हुए शर्मा ने कहा था, “मेरी प्राथमिकता है कि पटना का हर नागरिक भय-मुक्त होकर रात में भी अपने घर से बाहर निकल सके.”
उनकी इस घोषणा के साथ ही पुलिसिंग की दिशा बदलती दिखाई दी. उन्होंने थानों की मॉनिटरिंग सख्त की, रात के पेट्रोलिंग दस्तों को नए निर्देश दिए, और हर वारदात पर खुद मौके पर पहुँचने की नीति अपनाई. कई पुराने मामलों की फाइलें उन्होंने खुलवाईं, और अपराधियों के नेटवर्क की जाँच के लिए इंटेलिजेंस यूनिट को सशक्त किया.
कार्तिकेय शर्मा की पहचान एक "एक्शन-ड्रिवन ऑफिसर" के रूप में बनी.
बरबीघा डकैती केस में उन्होंने 24 घंटे के भीतर दो करोड़ रुपये की सोने की लूट का खुलासा कर दिया.
गोपल खे़मका हत्याकांड में उन्होंने पूरी रात टीम के साथ काम कर आरोपी तक पहुँचने में सफलता पाई.
पटना एयरपोर्ट केस में संदिग्ध सैन्य पहचानपत्र रखने वाले व्यक्ति को गिरफ्तार कर बड़ी साजिश को नाकाम किया.
अपराध रोकथाम की दिशा में उन्होंने 15 थानों में नए SHO की नियुक्ति की और सख्त निर्देश दिए “पुलिस की उपस्थिति केवल वर्दी में नहीं, कार्रवाई में दिखनी चाहिए.”
डिजिटल सर्विलांस को बढ़ावा देते रहे हैं कार्तिकेय शर्मा
शर्मा की कार्यशैली में तकनीक का भी बड़ा योगदान है. उन्होंने डिजिटल सर्विलांस, CCTV ट्रैकिंग और साइबर इन्वेस्टिगेशन यूनिट को सक्रिय किया. उनके निर्देश पर अब हर बड़ी वारदात का डेटा तुरंत क्राइम रिकॉर्डिंग सिस्टम में अपडेट होता है, जिससे अपराधियों की पहचान और गिरफ्तारी तेज़ी से हो सके. पटना के कंकड़बाग के व्यापारी राजीव अग्रवाल कहते हैं, “पहले पुलिस सिर्फ़ रिपोर्ट लेने तक सीमित थी, अब गश्त दिखती है, जवाबदेही भी है. शर्मा साहब के आने के बाद फर्क महसूस होता है.” वहीं एक छात्रा कहती हैं, “रात में घर लौटना अब पहले जितना डरावना नहीं लगता.”
इन बयानों से साफ झलकता है कि कार्तिकेय शर्मा ने न केवल अपराधियों पर नकेल कसी, बल्कि नागरिकों में पुलिस पर विश्वास भी लौटाया. लेकिन हर ईमानदार अधिकारी की तरह, उनके रास्ते में भी चुनौतियां हैं. पटना जैसा शहर, जहां सियासी दबाव, भीड़भाड़ और प्रशासनिक जटिलताएं रोज़ाना सामने आती हैं, वहाँ सिर्फ़ सख्ती से काम नहीं चलता धैर्य और संतुलन दोनों चाहिए. उनके करीबी सहयोगी बताते हैं कि शर्मा अपनी टीम से अपेक्षा करते हैं कि हर कार्रवाई “कानून की किताब और नैतिकता की रेखा” के भीतर रहे.
हर ऑपरेशन से पहले ‘रिस्क-मेट्रिक्स' बनवाते हैं: कार्तिकेय शर्मा
उनकी एक खास पहचान यह भी है कि वे अफसर कम, “थिंकिंग लीडर” ज़्यादा हैं. पुलिसिंग में IIT-IIM बैकग्राउंड उनकी दृष्टि को तकनीकी और विश्लेषणात्मक बनाता है. वे डेटा से निर्णय लेते हैं, और हर ऑपरेशन से पहले ‘रिस्क-मेट्रिक्स' बनवाते हैं. कार्तिकेय शर्मा का मानना है कि “कानून व्यवस्था डर से नहीं, भरोसे से चलती है.” और यही सोच शायद उन्हें पारंपरिक पुलिसिंग से अलग बनाती है. वे मानते हैं कि पुलिस और जनता के बीच का रिश्ता साझेदारी का होना चाहिए तभी अपराध का स्थायी समाधान संभव है.
पटना जैसे महानगर में, जहाँ अपराध, राजनीति और व्यवस्था एक जटिल त्रिकोण बनाते हैं, वहाँ कार्तिकेय शर्मा जैसे अफसर उम्मीद की एक किरण हैं. उनकी कहानी बताती है कि अगर सिस्टम में नीयत और नेतृत्व दोनों मजबूत हों, तो बदलाव संभव है. पर सवाल अब भी बना हुआ है क्या बिहार की व्यवस्था ऐसे अधिकारियों को उतना समर्थन दे पाएगी, जितना वे जनता को सुरक्षा देने का वादा करते हैं? क्योंकि कार्तिकेय शर्मा की कहानी केवल एक पुलिस अधिकारी की जीवनी नहीं, बल्कि एक ऐसे भारत की झलक है जो बेहतर कानून व्यवस्था और ज़िम्मेदार शासन की तलाश में है जहां वर्दी केवल अधिकार का प्रतीक नहीं, भरोसे की पहचान बन सके.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं