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पूर्णिया विधानसभा का सियासी गणित: भाजपा का गढ़, जहां 'पप्पू यादव फैक्टर' ने कांग्रेस को दिलाई बढ़त

उत्तर बिहार के मिथिला क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा, पूर्णिया शहर न केवल बिहार का चौथा सबसे बड़ा शहर और एक उभरता हुआ आर्थिक केंद्र है, बल्कि राजनीतिक रूप से भी इसका इतिहास बेहद दिलचस्प रहा है.

पूर्णिया विधानसभा का सियासी गणित: भाजपा का गढ़, जहां 'पप्पू यादव फैक्टर' ने कांग्रेस को दिलाई बढ़त
  • पूर्णिया विधानसभा बिहार का चौथा सबसे बड़ा शहर है और राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण शहरी-ग्रामीण मिश्रित क्षेत्र है
  • क्षेत्र की आबादी में हिंदू 75.19% और मुस्लिम 23.26 % हैं, साथ ही अनुसूचित जाति और जनजाति भी मौजूद हैं
  • 1952 से 2000 तक कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी का प्रभाव था, 2000 के बाद भाजपा ने लगातार 7 बार जीत हासिल की है
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उत्तर बिहार के मिथिला क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा, पूर्णिया शहर न केवल बिहार का चौथा सबसे बड़ा शहर और एक उभरता हुआ आर्थिक केंद्र है, बल्कि राजनीतिक रूप से भी इसका इतिहास बेहद दिलचस्प रहा है. 1951 में स्थापित पूर्णिया विधानसभा सीट, एक शहरी-बहुल क्षेत्र है, जहां लगभग 63.38 प्रतिशत मतदाता शहरी और 36.63 प्रतिशत मतदाता ग्रामीण क्षेत्रों से आते हैं. अब तक यहां 19 विधानसभा चुनाव (दो उपचुनाव सहित) हो चुके हैं. यह सीट आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए अपनी प्रतिष्ठा बचाने और महागठबंधन के लिए वापसी का प्रयास करने का केंद्र बन गई है.

वोट गणित और सामाजिक समीकरण

पूर्णिया एक हिंदू-बहुल क्षेत्र है, लेकिन यहां मुस्लिम मतदाताओं की भी महत्वपूर्ण उपस्थिति है. हिंदू आबादी 75.19 % है, मुस्लिम आबादी 23.26 % है. पूर्णिया विधानसभा क्षेत्र में अनुसूचित जाति (SC) की जनसंख्या लगभग 11.14% है, जबकि अनुसूचित जनजाति (ST) की जनसंख्या लगभग 5.99 % है. मुस्लिम मतदाता यहां की कुल मतदाता संख्या का लगभग 25.7% हैं. वहीं, ग्रामीण मतदाता 36.63% और शहरी मतदाता 63.38% हैं. 2020 के विधानसभा चुनावों में पूर्णिया विधानसभा क्षेत्र में कुल 3,12,793 मतदाता थे, जो 2024 के लोकसभा चुनावों में बढ़कर 3,29,903 हो गए.

कब-कब कौन जीता: भाजपा का वर्चस्व

पूर्णिया विधानसभा सीट ने विभिन्न राजनीतिक लहरें देखी हैं. 1952 से 1972 तक, कांग्रेस के कमलदेव नारायण सिन्हा ने लगातार छह बार जीत दर्ज की. 1980 से 1998 तक, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPM) के अजीत सरकार ने लगातार चार बार जीत हासिल की. वर्ष 2000 से भाजपा ने इस सीट पर अपना दबदबा कायम किया है और लगातार सात बार जीत दर्ज की है. विजय कुमार खेमका (BJP) 2015 से इस सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. भाजपा के विजय कुमार खेमका ने कांग्रेस प्रत्याशी को 32,000 से अधिक मतों के अंतर से हराया था.

माहौल क्या है?

यह सीट एक बार फिर हाई-वोल्टेज मुकाबले के लिए तैयार है, जिसका मुख्य कारण 'पप्पू यादव फैक्टर' है.2020 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने जीत दर्ज की थी, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी (पप्पू यादव) ने पूर्णिया विधानसभा क्षेत्र में बड़ी बढ़त हासिल कर ली. कांग्रेस के सदस्य लेकिन निर्दलीय सांसद पप्पू यादव की पूर्णिया क्षेत्र पर जबरदस्त पकड़ है. वह अब तक छह बार लोकसभा सांसद के रूप में चुनाव लड़ चुके हैं, जिनमें से चार बार पूर्णिया सीट से जीत हासिल की है. उनका मजबूत प्रभाव महागठबंधन के लिए इस सीट पर वापसी की उम्मीद जगाता है.

आगामी विधानसभा चुनाव में मुकाबला भाजपा के विजय कुमार खेमका और महागठबंधन (कांग्रेस/RJD) के बीच कड़ा रहने की उम्मीद है. जहां भाजपा अपनी सात बार की जीत की विरासत को बचाना चाहेगी, वहीं कांग्रेस, पप्पू यादव के प्रभाव को भुनाकर इस गढ़ में सेंध लगाने का प्रयास करेगी. शहरी अर्थव्यवस्था, विकास और रोजगार के मुद्दे यहां के चुनावी नतीजों पर अहम असर डालेंगे.

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