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नरकटियागंज विधानसभा : बिहार की सीमावर्ती सीट पर कांटे की टक्कर के आसार

नरकटियागंज विधानसभा क्षेत्र का अस्तित्व 2008 में परिसीमन के बाद सामने आया. तब से अब तक यहां 2010, 2014 (उपचुनाव), 2015 और 2020 में चुनाव हुए हैं. दिलचस्प तथ्य यह है कि मुस्लिम मतदाताओं की संख्या करीब 30 प्रतिशत होने के बावजूद भाजपा ने चार में से तीन चुनावों में जीत हासिल की है.

नरकटियागंज विधानसभा : बिहार की सीमावर्ती सीट पर कांटे की टक्कर के आसार

पश्चिम चंपारण जिले की नरकटियागंज विधानसभा सीट, उत्तर बिहार की राजनीति में खास महत्व रखती है. यह क्षेत्र वाल्मीकि नगर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है और नरकटियागंज प्रखंड के साथ लौरिया ब्लॉक की पांच पंचायतों को मिलाकर गठित किया गया है. भूगोल और इतिहास की दृष्टि से यह इलाका उतना ही रोचक है, जितना राजनीति के लिहाज से.

कहां से हुई है  “नरकटियागंज” नाम की उत्पत्ति
नरकटियागंज को उत्तर-पश्चिम बिहार का एक प्रमुख वाणिज्यिक और प्रशासनिक केंद्र माना जाता है. यह अनुमंडल मुख्यालय भी है और पटना से लगभग 280 किलोमीटर दूर स्थित है. कहा जाता है कि “नरकटियागंज” नाम की उत्पत्ति स्थानीय शब्द “नरकटिया” से हुई, जो एक प्रकार की घास है. पुराने समय में यहां दलदली भूमि थी, जिसे धीरे-धीरे व्यापार और बस्ती के लिए विकसित किया गया.

यह इलाका परिवहन के लिहाज से भी महत्वपूर्ण है. बरौनी-गोरखपुर रेलखंड पर स्थित नरकटियागंज जंक्शन उत्तर बिहार का अहम रेलवे स्टेशन है. सड़क मार्ग से यह बेतिया (39 किमी), बगहा (35 किमी) और रक्सौल (70 किमी) जैसे कस्बों से जुड़ा हुआ है. यहां गंडक और उसकी सहायक नदियां खेतों को उपजाऊ बनाती हैं, जहां धान, मक्का और गन्ना मुख्य फसलें हैं.

मुस्लिम मतदाताओं की संख्या करीब 30 प्रतिशत
नरकटियागंज विधानसभा क्षेत्र का अस्तित्व 2008 में परिसीमन के बाद सामने आया. तब से अब तक यहां 2010, 2014 (उपचुनाव), 2015 और 2020 में चुनाव हुए हैं. दिलचस्प तथ्य यह है कि मुस्लिम मतदाताओं की संख्या करीब 30 प्रतिशत होने के बावजूद भाजपा ने चार में से तीन चुनावों में जीत हासिल की है.

2010 के पहले चुनाव में भाजपा प्रत्याशी सतीश चंद्र दुबे ने कांग्रेस उम्मीदवार आलोक प्रसाद वर्मा को 20,228 मतों से हराया. 2014 में सतीश दुबे लोकसभा चले गए तो उपचुनाव में भाजपा की रश्मि वर्मा ने कांग्रेस के फखरुद्दीन खान पर 15,742 वोटों से जीत दर्ज की. हालांकि, 2015 में कांग्रेस ने वापसी की और विनय वर्मा ने भाजपा की वरिष्ठ नेता रेनू देवी को 16,061 वोटों से हराकर सीट जीत ली. 2020 में भाजपा ने फिर से कब्जा जमा लिया और रश्मि वर्मा ने कांग्रेस के विनय वर्मा को 21,134 मतों से शिकस्त दी.

2020 के नतीजे बताते हैं कि रश्मि वर्मा को 75,484 वोट (45.85 प्रतिशत) मिले, जबकि कांग्रेस के विनय वर्मा को 54,350 वोट (33.02 प्रतिशत) हासिल हुए. इस चुनाव में निर्दलीय रेनू देवी ने 7,674 वोट (4.66 प्रतिशत) पाए. शेष मत छोटे दलों और अन्य निर्दलीयों में बंट गए. उस बार कुल मतदान 62.02 प्रतिशत रहा, जो औसत से ज्यादा माना जाता है.

2020 में यहां कुल 2,65,561 मतदाता पंजीकृत थे, जिनमें लगभग 40,232 अनुसूचित जाति और 4,037 अनुसूचित जनजाति से संबंधित थे. मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 80 से 85 हजार के बीच आंकी जाती है, यानी लगभग 30 प्रतिशत. 2024 के लोकसभा चुनावों तक मतदाताओं की संख्या बढ़कर 2,79,043 हो गई.

भाजपा ने 2020 में स्पष्ट बढ़त के साथ यह सीट जीती थी, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में स्थिति थोड़ी बदली. एनडीए की बढ़त यहां घटकर केवल 7,035 वोट रह गई. यह आंकड़ा बताता है कि आगामी विधानसभा चुनाव में मुकाबला कहीं ज्यादा कड़ा हो सकता है.

भाजपा के पक्ष में संगठनात्मक मजबूती, सवर्ण मतदाताओं का स्थायी समर्थन और लगातार जीत का सिलसिला काम करता दिखता है. दूसरी ओर, कांग्रेस मुस्लिम वोटों और परंपरागत समर्थन पर भरोसा करती है. रेनू देवी जैसे बागी उम्मीदवार भी समीकरण बिगाड़ सकते हैं.

इससे अंदाजा लगाया जा रहा है कि नरकटियागंज की लड़ाई 2025 में बेहद रोचक होगी. भाजपा भले ही मजबूत स्थिति में दिख रही हो, लेकिन मुस्लिम और कांग्रेस समर्थक वोटरों का ध्रुवीकरण खेल बदल सकता है. साथ ही, लोकसभा चुनाव के नतीजों ने भी संकेत दिया है कि भाजपा की बढ़त उतनी सहज नहीं रही, जितनी 2020 में थी.

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