
बिहार की मोहिउद्दीननगर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र राज्य के 243 विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है.यह सीट सामान्य श्रेणी की सीट है. यह सीट हमेशा से ही बिहार के राजनीतिक बदलावों का आईना रही है. उजियारपुर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली ये सामान्य श्रेणी की सीट हर चुनाव में कड़े मुकाबले का गवाह बनती है. इस सीट के इतिहास की बात करें तो इसका राजनीतिक सफर 1952 में शुरू हुआ. आजादी के बाद इस क्षेत्र पर कांग्रेस पार्टी का बहुत प्रभाव रहा. 1990 तक कांग्रेस का ही गढ़ रही.
रोचक रहा है इस सीट का इतिहास
इस क्षेत्र को शहर धरहरा के नाम से भी जाना जाता था, जिसे सूफी संत शाह अफार मोहीउद्दीन के सम्मान में मोहीउद्दीनगर के नाम से जाना गया. उन्हें मध्यकालीन काल में चुनार के शाह कासिम सलमान का वंशज माना जाता है. यहां पर आमिना बीबी का किला भी मौजूद है, जो सूफी संत की पत्नी के नाम पर है.
ये सीट जीतना किसी भी उम्मीदवार के लिए बड़ी चुनौती
इस सीट पर बीजेपी, जेडीयू,एलजेपी और आरजेडी-कांग्रेस के गठबंधन के बीच हमेशा से ही कड़ा मुकाबला देखने को मिला. इस सीट पर 1990 के बाद से कोई पार्टी लंबे समय तक अपनी पकड़ नहीं बना पाई. इससे यह पता चलता है कि यहां की जनता हर बार नए नेतृत्व को मौका देने से पीछे नहीं हटती. बीजेपी विधायक राजेश कुमार के लिए ये सीट बचाना और आरजेडी की पिछली विधायक एज्या यादव या किसी अन्य के लिए भी इस सीट को जीतना बड़ी चुनौती है.
1990 तक इस सीट पर रहा कांग्रेस का कब्जा
1952 में कांग्रेस के राम स्वरूप प्रसाद राय यहां से पहले विधायक बने. इस सीट के इतिहास में बिहार विभूति के नाम से विख्यात डॉ. अनुग्रह नारायण सिंह का भी नाम दर्ज है, जिन्होंने 1985 से 1990 तक इस विधानसभा का प्रतिनिधित्व किया, लेकिन इसके बाद तो जैसे यहां कांग्रेस को नजर ही लग गई. वह इस सीट पर कभी वापसी नहीं कर पाई. इस सीट पर कांग्रेस के साथ आरजेडी, जनता दल , बीजेपी, लोजपा, जनता पार्टी, संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी और निर्दलीय उम्मीदवार भी कब्जा जमा चुके हैं.
2020 में बीजेपी ने इस सीट पर जमाया था कब्जा
इस सीट पर व्यक्तिगत कद और जातीय समीकरणों का बड़ा प्रभाव रहा है. 2020 का विधानसभा चुनाव बेहद रोमांचक था, जहां बीजेपी के राजेश कुमार सिंह ने जीत दर्ज की थी. उन्होंने आरजेडी के एज्या यादव को हराया था.इससे पहले इस सीट के समीकरण बिल्कुल अलग थे. तब एज्या यादव ने राजेश सिंह को हरा दिया था. उस समय वह निर्दलीय के रूप में लड़े थे.
इस सीट पर मतदाताओं का गणित भी समझ लें
इस सीट पर जातीय प्रभाव हमेशा से रहा है. ये एक सामान्य सीट है, लेकिन यादव वोटर बाहुल्य है.यहां यादव वोटर 30 फीसदी से अधिक है, जो किसी भी चुनाव का रुख पलटने की क्षमता रखता है. यही कारण है कि आरजेडी को इस क्षेत्र में मजबूत पकड़ का लाभ हमेशा मिला. करीब 15 फीसदी के आसपास मुस्लिम वोटर हैं. ये मुस्लिम और यादव मिलकर आरजेडी के लिए बड़ा वोट बैंक तो खड़ा कर ही देते हैं. 2011 की जनगणना और 2020 की मतदाता सूची के विश्लेषण के आधार पर मोहिउद्दीननगर विधानसभा में अनुसूचित जाति के मतदाताओं की संख्या लगभग 45,464 है, जो कुल मतदाताओं का लगभग 17.19 फीसदी है.अनुसूचित जनजाति के मतदाताओं की संख्या बेहद कम, लगभग 26 है, जो कुल मतदाताओं का सिर्फ 0.01 फीसदी है. आधिकारिक मतदाता सूची विश्लेषण के अनुसार, मुस्लिम मतदाताओं की संख्या लगभग 14,546 है, जो कुल मतदाताओं का लगभग 5.5 फीसदी है। मोहिउद्दीननगर की पहचान एक पूरी तरह से ग्रामीण निर्वाचन क्षेत्र के रूप में है. 2011 की जनगणना के अनुसार, मोहिउद्दीननगर में ग्रामीण मतदाताओं की संख्या 264,479 है, जो कुल मतदाताओं का 100 फीसदी है।
शहरी मतदाताओं की संख्या जीरो
इस सीट की एक और खास बात ये है कि इस सीट पर शहरी मतदाताओं की संख्या जीरो है. 2020 के विधानसभा चुनाव के मुताबिक- मोहिउद्दीनगर में मतदाताओं की कुल संख्या 264,479 थी. 2020 के विधानसभा चुनाव के दौरान, यहां कुल 385 मतदान केंद्र बनाए गए थे.
गौरतलब है कि बिहार में दो चरणों में विधानसभा चुनाव होने हैं, जिसमें पहला चरण 6 नवंबर को और दूसरा चरण 11 नवंबर को होना है। वोटों की गिनती 14 नवंबर को की जाएगी.
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