- भाजपा ने नितिन नबीन को कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाकर बिहार के कायस्थ समाज को राजनीतिक महत्व दिया है
- बिहार में कायस्थ समाज संख्या में छोटा है लेकिन शिक्षा, प्रशासन और मीडिया में इसकी मजबूत सामाजिक पहचान रही है
- नितिन नबीन के राष्ट्रीय स्तर पर उभरने से भाजपा में कायस्थ नेताओं का आत्मविश्वास और राजनीतिक प्रभाव बढ़ेगा
भारतीय जनता पार्टी (BJP) के शीर्ष नेतृत्व ने नितिन नबीन को कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाकर एक ऐसा दांव खेला है जिसका असर सिर्फ पार्टी या संगठन तक ही सीमित नहीं रह सकता. बिहार की राजनीति में, खासकर कायस्थ समाज के भीतर, इसे एक बड़ा राजनीतिक संकेत माना जा रहा है. एक तरफ इसे कायस्थ समाज के लिए सम्मान और अवसर के रूप में देखा जा रहा है, तो वहीं दूसरी तरफ इस फैसले को कई पुराने कायस्थ नेताओं के लिए खतरे की घंटी की तरह भी देखा जा रहा है. अब ऐसे में सवाल यही है कि नितिन नबीन के प्रभाव में आए बदलाव से बिहार की कायस्थ राजनीति कितनी बदलेगी?
इस समाज की मजबूत रही है पहचान
आपको बता दें कि बिहार में कायस्थ समाज संख्या में छोटा है, लेकिन उसकी सामाजिक पहचान मजबूत रही है. शिक्षा, प्रशासन, कानून और मीडिया जैसे क्षेत्रों में इस समाज की भूमिका अहम रही है.लेकिन जब बात सीधी राजनीति और सत्ता की आती है, तो कायस्थ समाज को हमेशा सीमित हिस्सेदारी ही मिली. बड़े पदों पर पहुंचने वाले नेता कम रहे और जो रहे भी, वे पूरे समाज की राजनीतिक ताकत नहीं बना सके. ऐसे में नितिन नबीन का राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचना कायस्थ समाज के लिए एक बड़ी बात मानी जा रही है.
बिहार के नेताओं के लिए बड़ा संदेश
नितिन नबीन को कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाना सिर्फ एक पद की घोषणा मात्र नहीं है. यह भाजपा का साफ संदेश है कि पार्टी अब बिहार से ऐसे नेताओं को आगे बढ़ा रही है,जो शहरी,पढ़े-लिखे और संगठन में काम करके आगे आए हैं. कायस्थ समाज के भीतर यह भावना बनी है कि अब उनकी बात दिल्ली तक सुनी जा रही है और आने वाले समय में उन्हें ज्यादा राजनीतिक मौके मिल सकते हैं. पहला असर यह होगा कि भाजपा में मौजूद कायस्थ नेताओं का आत्मविश्वास बढ़ेगा. वे संगठन और टिकट की राजनीति में अपनी बात ज्यादा मजबूती से रख सकेंगे.दूसरा असर यह हो सकता है कि कायस्थ समाज के युवा राजनीति की ओर आकर्षित हों. अब तक यह वर्ग राजनीति से दूरी बनाए रखता था, लेकिन नितिन नबीन का उदाहरण उन्हें प्रेरित कर सकता है.वहीं,नितिन नबीन का उभार कई पुराने कायस्थ नेताओं के लिए चिंता की बात भी है.
जो नेता वर्षों से राजनीति में हैं वो न संगठन में मजबूत हैं और न चुनावी जीत दिला पाए हैं, वे हाशिये पर जा सकते हैं.भाजपा में अब यह साफ संदेश दिया जा रहा है कि सिर्फ समाज का नाम लेकर राजनीति नहीं चलेगी.पार्टी उन्हीं को आगे बढ़ाएगी,जो जमीन पर काम करेंगे और नतीजे देंगे.ऐसे में कई पुराने चेहरे अब तक “कायस्थ प्रतिनिधि” कहकर अपनी जगह बनाए हुए थे, आगे कमजोर पड़ सकते हैं.
नितिन नबीन के उभार का असर सिर्फ भाजपा तक सीमित नहीं रहेगा. राजद, जदयू और कांग्रेस जैसी पार्टियां भी अब कायस्थ समाज को लेकर अपनी रणनीति पर दोबारा सोच सकती हैं. अगर भाजपा कायस्थ समाज को संगठित रूप में अपने साथ जोड़ने में सफल होती है,तो बाकी दलों के लिए उसे नजरअंदाज करना मुश्किल होगा. नितिन नबीन का कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष बनना बिहार की राजनीति में, खासकर कायस्थ समाज के लिए, एक नया मोड़ है. अवसर उन नए और सक्रिय नेताओं के लिए, जो राजनीति में आगे बढ़ना चाहते हैं और चेतावनी उन पुराने नेताओं के लिए, जो अब तक सिर्फ पहचान के सहारे टिके हुए थे.
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