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जिन जीविका दीदियों को नीतीश ने साधा, उन्हें साधने में कितना कामयाब होंगे तेजस्वी

महिला मतदाता जब-जब अधिक वोट करती हैं, तो एनडीए को फायदा मिलता है. जब पुरुष अधिक वोट करते हैं तो महागठबंधन को इसका फायदा मिलता है.

जिन जीविका दीदियों को नीतीश ने साधा, उन्हें साधने में कितना कामयाब होंगे तेजस्वी
CM दीदियों की संख्या 1 लाख से अधिक
  • महागठबंधन ने अपने घोषणापत्र में जीविका दीदियों को 30 हजार रुपये प्रति माह देने का वादा किया है
  • बिहार में 11 लाख से अधिक स्वयं सहायता समूह हैं जिनमें एक करोड़ चालीस लाख महिलाएं जुड़ी हुई हैं
  • महागठबंधन ने जीविका समूह की अध्यक्ष और कोषाध्यक्ष को भी भत्ता देने का ऐलान किया है लेकिन राशि स्पष्ट नहीं की
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पटना:

महागठबंधन ने अपना साझा घोषणा पत्र जारी कर दिया. महागठबंधन ने अपने घोषणापत्र में जीविका दीदियों के लिए कई ऐलान किए हैं. जीविका CM दीदियों को 30 हजार रुपये प्रति माह देने का ऐलान है. साथ ही जीविका समूह के अध्यक्ष, कोषाध्यक्ष को मानदेय देने का ऐलान भी किया गया है. मौजूदा सरकार ने जीविका स्वयं सहायता समूह से जुड़ी हुई महिलाओं को ₹10000 भेज कर उन्हें अपने पाले में करने की कोशिश की, तो अब महागठबंधन इन ऐलानों के जरिए जीविका दीदियों को साधने की कोशिश कर रहा है. 

CM दीदियों की संख्या 1 लाख से अधिक

वर्तमान में बिहार में 11 लाख से अधिक स्वयं सहायता समूह हैं जिनसे 1 करोड़ 40 लाख महिलाएं जुड़ी हुई हैं. इनमें CM दीदियों की संख्या 1 लाख से अधिक है, जिन्हें नियमित करने का वादा महागठबंधन ने किया है. इसके साथ जीविका समूह की अध्यक्ष, कोषाध्यक्ष को भी भत्ता देने का ऐलान किया है. इनकी संख्या 35 लाख के आसपास है. हालांकि, इन महिलाओं का भत्ता क्या होगा यह नहीं बताया गया है. लेकिन महागठबंधन की कोशिश जीविका से जुड़ी 35 लाख से अधिक महिलाओं को साधने की है. क्योंकि नीतीश कुमार की जीत की इन महिलाओं की बड़ी भूमिका मानी जाती है. 

दीदियों के सहारे एनडीए ने महिला मतदाताओं को साधा

जीविका दीदी के माध्यम से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपनी योजनाओं को लोगों तक पहुंचाया. योजनाओं के प्रचार प्रसार से लेकर उसे जमीन तक उतारने में सरकार इन दीदियों का सहयोग लेती रही है. इन दीदियों के सहारे एनडीए ने महिला मतदाताओं को साधा जिनके सहारे वे सत्ता तक पहुंचे. महिला मतदाता जब-जब अधिक वोट करती हैं, तो एनडीए को फायदा मिलता है. जब पुरुष अधिक वोट करते हैं तो महागठबंधन को इसका फायदा मिलता है. इसे पिछले चुनाव के परिणामों से भी समझा जा सकता है. पहले फेज में पुरुषों (56.8%) ने महिलाओं (54.4%) के मुकाबले 2.4% अधिक वोटिंग की. इस फेज में महागठबंधन ने 71 में से 47 सीटें जीत ली. दूसरे चरण में महिलाओं ने पुरुषों के मुकाबले करीब 6 फीसदी अधिक वोट डाले. तब 94 में से महागठबंधन 42 सीटें ही जीत पाया, एनडीए को ज्यादा सीटें मिली. तीसरे चरण में दोनों का अंतर 11% हो गया. और महागठबंधन को बुरी हार मिली. तीसरे चरण की 78 सीटों में से एनडीए को 52 सीटें मिली. यानी दो तिहाई. इसे समझा जा सकता है कि महिला मतदाता कितनी अहम है. महिला मतदाताओं का रुझान एनडीए की तरफ ज्यादा रहा है. उन्हें अपने पाले में लाना महागठबंधन की प्राथमिकता है. इसलिए वे भी अब उन्हीं जीविका दीदियों का सहारा ले रहे हैं जिनके सहारे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चुनाव में महागठबंधन को मात देते रहे हैं.

बिहार प्रदेश जीविका कैडर संघ के अध्यक्ष प्रदीप सिंह इन ऐलानों को नाकाफी मानते हैं. वे कहते हैं, "जीविका सिर्फ वोट बैंक बनकर रह गया है. पहले सरकार ने जीविका डॉन को चुनावी रिश्वत के रूप में दस - दस हजार दिए अब इसी की कार्ड को लेकर महागठबंधन ऐसे ऐलान कर रहा है. अगर यह दोनों वाकई सीरियस होते तो लोन ट्रैप से निकालने और स्वरोजगार की व्यवस्था के लिए प्रशिक्षण पर जोर देते."

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