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This Article is From Feb 11, 2020

दिल्ली में केजरीवाल की जीत से पीके इतना खुश क्यों हैं?

जैसे ही चुनाव की घोषणा हुई, केजरीवाल की विकास पुरुष की छवि को मजबूत करने के लिए सबसे पहले आम आदमी पार्टी सरकार का रिपोर्ट कार्ड जनता के सामने पेश किया गया और हर क्षेत्र में करीब 25 हजार लोगों के बीच में ये रिपोर्ट कार्ड बांटा गया.

दिल्ली में केजरीवाल की जीत से पीके इतना खुश क्यों हैं?
अरविंद केजरीवाल और प्रशांत किशोर
पटना:

दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी (AAP) और अरविंद केजरीवाल की जीत से कुछ लोग खुश हैं, कुछ दुःखी. जो खुश हैं, उनमें से कुछ की खुशी की वजह चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर का उनके साथ काम करना है, जबकि भारतीय जनता पार्टी (BJP), बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनके समर्थक इसलिए दुःखी हैं, क्योंकि प्रशांत किशोर एक और राज्य में उन्हें मात देने में कामयाब रहे हैं.

लेकिन आखिर प्रशांत किशोर की क्या भूमिका रही क्योंकि माना यही जाता हैं या अमूमन जीतने के बाद लोग यही कहते हैं कि जीत चेहरे के कारण हुई. लेकिन आप पार्टी के सूत्रों की माने तो लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद केजरीवाल और प्रशांत किशोर में पहली बार दिल्ली को लेकर औपचारिक मुलाकात हुई. जिसमें एक सहमति बनी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाने पर रखकर राजनीति का कोई फायदा नहीं और अगर सत्ता में बने रहना है तो सिर्फ और सिर्फ काम की बदौलत ऐसा संभव हो सकता है. इसलिए जून महीने के बाद केजरीवाल ने जहां एक ओर आक्रामक रूप से मोहल्ला क्लिनिक, स्कूल, बिजली और पानी के बिल को मुद्दा बनाया वहीं दूसरी और लंबित काम जैसे सीसीटीवी लगाया जाने लगा , बस में महिलाओं की मुफ्त यात्रा की घोषणा की गई. इन सबका एक उद्देश्य था कि अरविंद केजरीवाल की विकास पुरुष के रूप में छवि मजबूत की जाए, जो जनता के साथ निरंतर संवाद करते रहते हैं.

जैसे ही चुनाव की घोषणा हुई, केजरीवाल की विकास पुरुष की छवि को मजबूत करने के लिए सबसे पहले आम आदमी पार्टी सरकार का रिपोर्ट कार्ड जनता के सामने पेश किया गया और हर क्षेत्र में करीब 25  हजार लोगों के बीच में ये रिपोर्ट कार्ड बांटा गया. इसके अलावा अरविंद केजरीवाल की तरफ से हर विधानसभा के 15 हजार प्रभावशाली लोगों को एक पत्र भी भेजा गया, जिसमें सरकार की उपलब्धि और आने वाले दिनों में काम की चर्चा की गई थी. लगे हाथ अगले 5 वर्षों में क्या करेंगे उसकी भी 10 गारंटी जारी कर दी गई.

लेकिन प्रशांत किशोर और केजरीवाल दोनों को मालूम था कि भाजपा इतनी आसानी से हार मानने वाली नहीं. जैसे जेएनयू में मारपीट की घटना हुई और मांग की जाने लगी कि केजरीवाल चुप क्यों हैं तो इन लोगों को अभ्यास हो गया कि यह उन्हें ट्रैप करने के लिए है. वैसे ही शाहीन बाग को भी लेकर भी भाजपा उन्हें वहां जाने की चुनौती देती रही. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जैसे ही चुनाव प्रचार की कमान संभाली और तीन सौ से ज्यादा सांसद, केंद्रीय मंत्री, भाजपा और सहयोगी पार्टियों के मुख्यमंत्रियों के साथ प्रचार में उतरे तो आम आदमी पार्टी को लग गया कि भाजपा यह चुनाव जीतने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है. इसके बाद आप ने प्रचार संभल-संभल करना शुरू किया और इसका इतंजार करने लगे कि भाजपा गलती करे. भाजपा सांसदों ने जैसे ही अरविंद केजरीवाल पर हिंदू विरोधी होने का आरोप लगाया तो वो TV चैनलों पर बैठकर हनुमान चालीसा का पाठ करने लगे. उन्हें जैसे ही देशद्रोही कहा गया, तब पार्टी के उम्मीदवार और कार्यकर्ता विरोध मार्च पर निकल गए, जिससे जनता की सहानुभूति मिलती रही. जिस दिन राम जन्मभूमि ट्रस्ट की घोषणा हुई तो अरविंद केजरीवाल ने प्रचार छोड़कर दिल्ली के सारे अखबारों को केवल इसलिए इंटरव्यू दिया कि उनके इंटरव्यू को भी प्रमुखता मिले. 

भाजपा द्वारा मुख्यमंत्री पद के लिए चेहरे का ऐलान ना करना भी केजरीवाल  के पक्ष में रहा, क्योंकि उनके बार-बार चुनौती  देने के बावजूद कोई भी भाजपा की तरफ से उनके साथ बहस के लिए आगे नहीं आया. 

अब प्रशांत किशोर को मालूम है कि उनकी असल चुनौती पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में होगी लेकिन उसके पहले उन्हें ये फैसला लेना हैं कि बिहार में आख़िर उनकी क्या भूमिका होगी?

मनीष कुमार NDTV इंडिया में एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर हैं...

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