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This Article is From Aug 23, 2017

बिहार में लालू यादव की 'भाजपा भगाओ रैली' को लेकर कांग्रेस में क्यों है असमंजस...

आगामी रविवार को पटना के गांधी मैदान में आरजेडी आयोजित कर रही 'भाजपा भगाओ रैली'

बिहार में लालू यादव की 'भाजपा भगाओ रैली' को लेकर कांग्रेस में क्यों है असमंजस...
कांग्रेस में लालू यादव की भाजपा भगाओ रैली में शिरकत को लेकर असमंजस है.
  • ममता बनर्जी, अखिलेश यादव और बीएसपी के सतीश मिश्रा के भाग लेने की संभावना
  • कांग्रेस की तरफ से रैली में भागीदारी को लेकर अब तक पुष्टि नहीं हुई
  • कांग्रेस के लालू विरोधी और समर्थक गुटों में सहमति नहीं
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पटना: राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) आगामी रविवार को पटना के गांधी मैदान में राज्य में बाढ़ के बावजूद 'भाजपा भगाओ रैली' करेगी. इस रैली में कई पार्टियों के नेता जिसमें पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भाग लेंगे. बीएसपी अध्यक्ष मायावती तो भाग नहीं लेंगी लेकिन उनकी पार्टी की तरफ से सतीश मिश्रा रैली में आ सकते हैं.

कांग्रेस की तरफ से अब तक इस बात की पुष्टि नहीं हुई है कि पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी या उपाध्यक्ष राहुल गांधी भाग लेंगे या नहीं. दिल्ली में पार्टी के नेता कह रहे हैं कि इस रैली में राहुल उपस्थित रहेंगे. हालांकि बिहार कांग्रेस अध्यक्ष अशोक चौधरी का कहना है कि फिलहाल पार्टी की तरफ से यह सूचना नहीं आई है कि आखिर कौन-कौन इस रैली में भाग लेने के लिए आएगा. अगले एक-दो दिनों में स्थिति साफ होने की संभावना है.

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बिहार कांग्रेस में इस रैली को लेकर नेताओं के अलग-अलग विचार हैं. लालू समर्थक नेताओं का मानना है कि नीतीश कुमार द्वारा पाला बदलने के बाद पार्टी के पास 'लालू शरणम गच्छामि' के अलावा क्या विकल्प है? इस गुट के नेता तर्क देते हैं कि लालू सबसे भरोसेमंद सहयोगी साबित हुए हैं और उनको नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. पार्टी ने उनकी रैली से किनारा किया तो विपक्षी एकता के राष्ट्रीय स्तर के प्रयासों को झटका लगेगा जो आखिरकार कांग्रेस के हित में नहीं है. वहीं जब नीतीश के साथ मैडम सोनिया गांधी ने मंच साझा किया था तो लालू और अन्य गैर बीजेपी नेताओं के साथ क्यों नहीं?

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उधर कांग्रेस के लालू विरोधी गुट के नेताओं का तर्क है कि अगस्त 2015 में जब सोनिया गांधी ने नीतीश और लालू के साथ मंच साझा किया था तब वह महागठबंधन की रैली थी और उसमें सभी दलों ने अपनी क्षमता से समर्थक जुटाए थे. यह नेता मानते हैं कि बिना बाढ़ प्रभावित इलाकों का दौरा किए हुए रैली में जाना विरोधियों को बैठे बिठाए आलोचना का एक मुद्दा दे सकता है. मंच पर लालू यादव का राहुल गांधी के साथ गले मिलना पार्टी को महंगा पड़ सकता है. लालू यादव ने कभी भी बिहार के कांग्रेस नेताओं से सम्मानजनक व्यवहार नहीं किया.

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हालांकि समर्थक हों या विरोधी, फिलहाल सब मानते हैं कि कांग्रेस अकेले चुनाव मैदान में एक भी सीट नहीं जीत सकती क्योंकि नीतीश के नेतृत्व वाली एनडीए में जितने भी दल हैं उन सबके अपने मजबूत नेता हैं और उनका जनधार भी अच्छा है. इन हालात में लालू के बिना कांग्रेस चुनाव में जा नहीं सकती और लालू के साथ जाने पर कांग्रेस विधायकों के एक बड़े गुट में मौजूद असंतोष विद्रोह का रूप भी ले सकता है.

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